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View of भारतीय राष्ट्रवाद एवं पश्चिमी नेशन लिज्म की अवधारणा का तुलनात्मक अध्ययन

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ACCENT JOURNAL OF ECONOMICS ECOLOGY & ENGINEERING

Peer Reviewed and Refereed Journal IMPACT FACTOR: 2.104 (INTERNATIONAL JOURNAL) UGC APPROVED NO. 48767, (ISSN NO. 2456-1037)

Vol. 03, Issue 01,January2018 Available Online: www.ajeee.co.in/index.php/AJEEE

1

भारतीय राष्ट्रवाद एवं ऩश्चिमी नेशन लऱज्म की अवधारणा का तुऱनात्मक अध्ययन अलभषेक लसंह

दर्शन एवॊ धमश ववभाग, कार्ी ह ॊदू ववश्वववद्याऱय, वाराणसी

साॊस्कृतिक राष्ट्रवाद ब ुआयामी सॊकल्ऩना ै जो

राष्ट्र की उत्ऩत्त्ि, क्रममक ववकास को राजनैतिक उऩागम से इिर सॊस्कृति में देखने का प्रयास करिी

ै। भारि ववश्व का प्राचीनिम राष्ट्र ै। ऩत्श्चमी

जगि में राष्ट्र का समानार्थी को ई र्ब्द न ॊ ै।

यद्यवऩ कुछ ववद्वान नेर्न को राष्ट्र का समानार्थी

बिािे ैं। िर्थावऩ राष्ट्र एवॊ नेर्न में ऩयाशप्ि भेद ै। साॊस्कृतिक राष्ट्रवाद की अवधारणा के

सम्यक्मूल्याॊकन के मऱए "राष्ट्र" और "नेर्न" में भेद को दृत्ष्ट्िऩाि करना आवश्यक ै।

यूरोऩ में नेर्न स्िेि का उदय ऩुनजाशगरण के बाद ुआ। यूरोऩ में मध्ययुग अन्धकार का युग माना जािा ै त्जन् ोंने ऩोऩ द्वारा थर्थयोक्रेसी र्थी।

नेर्नस्िेि में से कुऱररज्म अतनवायश ह ॊसा र्था

क्योंकक ईसाई ररऱ जन में ववज्ञान एवॊ ऩुनजाशगरण के मूल्यों से एक द्वन्द्व चऱ र ा र्था। इसी

द्वन्द्व से आधुतनक नेर्न का उदय ै। भारि में

इसके ववऩर ि धमश नैतिक तनयमों, प्रकृति एवॊ

ववज्ञान से सकारात्मक रूऩ से जुडा र ा ै। त्जिने

भी प्राचीन भारिीय वैज्ञातनक, गणणिज्ञ, खगोऱववद्, थचककत्सक एवॊ व्याकरणाचायश ुए वो वस्िुि् ऋवि

और मुतन र्थे।

इसीमऱए धमश का राष्ट्र के सार्थ एक सकारात्मक और स योगात्मक सम्बन्ध र ा त्जससे

मार सॊस्कृति समृद्ध ुई। ऩॊडिि द नदयाऱजी के

अनुसार, "राष्ट्र का ववकास सॊस्कृति के आधार ऩर ोिा ै, त्जसमें भािा, भोजन, वस्र, ऩरम्ऩरािक सत्म्ममऱि न ॊ ोिी, अवऩिु य प्राकृतिक भौगोमऱक कारकों से प्रभाववि एक ववर्ेि प्रकार की

चेिना ोिी ै राष्ट्र का ववकास प्रकृति जन्य ै, त्जसे मारे य ाॉ दैवीय क ा गया ै। य स ज नैसथगशक ै, मानव तनयोत्जि न ॊ ै। राष्ट्र का

ववकास भाव भूमम चेिना के सार्थ स ज रूऩ से

ोिा ै, जो ऱौककक दृत्ष्ट्ि, सॊस्कृति के सार्थ प्रकि

ोिा ै।

जब कोई बाह्य सत्िा या सॊस्कृति इसमें

अवरोध उत्ऩन्न करने या अऩने अनुसार बदऱने का

प्रयास करिी ै िो राष्ट्र में सॊकि उत्ऩन्न ोिा ै।

य सवाऱ मन में आिा ै कौन सी चेिना राष्ट्र बनािी ै ? उत्ऩत्त्ि के ऩीछे एक ववर्ेि दृत्ष्ट्ि, एक ववर्ेि प्रयोजन ोिा ै। व राष्ट्र की चेिना की

ऩ चान ोिा ै। भारि के सन्दभश में एकात्मिा की

दृत्ष्ट्ि, ऩरस्ऩर ऩूरकिा अर्थाशत्स – अत्स्ित्व का

स्वभाव और ऩूणशिा की प्रात्प्ि राष्ट्र का ववर्ेि

प्रयोजन ै।

राष्ट्र कैसे खडा ोिा ै? राष्ट्र अऩनी

चेिना के आधार ऩर आवश्यकिानुसार अऩनी

सॊस्र्थाओॊ का ववकास करिा ै। जैसे ऩररवार, ऩॊचायि एवॊ राज्य आहद सॊस्र्थाओॊ का समय- समय ऩर राष्ट्र ववकास करिा ै। भारि की य ववर्ेि

चेिना भारि को जम्मू-कश्मीर से कन्या कुमार

िक जोडिी ै, त्जसे प्राचीन समय में मारे

मनीवियों ने अनुभव ककया।

उत्तरं यत समुद्रस्य हहमाद्रचिैव दक्षऺणं।

वषष तद भारतम्नाम भारती यत्र संततत।।

“भारि की एकिा के मूऱ आधार” नामक ऩुस्िक में

िॉ० राधा कुमुद मुखजी ने उन आधारों का ववस्िृि

वणशन ककया ै जो भारिीय साॊस्कृतिक, राष्ट्रवाद और एकात्मिा को ऩररभाविि करिे ैं। बऱूथचस्िान में ह ॊगऱाऱज, बाॊग्ऱादेर् में ठाकेश्वर और उनके

बीच में 52 र्त्क्िऩीठ ो या भगवान मर्व के

द्वादर् ज्योतिशमऱॊग ो य मार साॊस्कृतिक एकात्मिा का बोध करािे ैं क्योंकक य सॊरचना

ककसी व्यत्क्ि या सॊस्र्था द्वारा योजनाऩूवशक न ॊ ुई अवऩिु राष्ट्र की चेिना की स्वाभाववक अमभव्यत्क्ि के रूऩ में ववकमसि ुई ै।

राष्ट्र की चेिना की ऩ चान में ववमभन्न ऐति ामसक आख्यानों से भी प्राप्ि ोिी ै। उथचि – अनुथचि का बोध कराने वाऱे ये आख्यान भारि की

थचति ( आत्मित्व) को प्रकि करिे ैं। एक ओर

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2 भाई के मऱए त्याग करने वाऱे ऱक्ष्मण एवॊ भरि

भारि की थचति को स्वीकार ै िो दूसर ओर रावण जैसे भाई से ववद्रो कराने वाऱे ववभीिण को

भी स्वीकार ककया गया ै, ककन्िु दुयोधन को न ॊ।

ऩाण्िव स ै, क्योंकक व भारि की

थचति के अनुकूऱ ैं। भारि की य थचति के

अनुकूऱ ै। भारि की य थचति आध्यात्त्मक ै जो

त्याग, कृिज्ञिा एवॊ आत्मीयिा ऩर आधाररि ै मानव के आऩसी सम्बन्धि र्था प्रकृति, ऩयाशवरण के

सार्थ सम्बन्ध को ऩरस्ऩर ऩूरक, अन्योन्य एवॊ

ऩरस्ऩर अवऱम्बी रूऩ में देखिी ै। वैहदकयज्ञों की

ऩरस्ऩर ो या तनष्ट्कान कमश ो या भत्क्ि सभी में

थचति की अनुकूऱिा प्रतिबबत्म्बि ोिी ै। ' थचति' का प्रकि करण करने की र्त्क्ि ' ववराि' ै, जो

ववमभन्न प्रकार की सॊस्र्थाओॊ ऩरम्ऩराओॊ के माध्यम से प्रकि ोिा ै जो सॊस्कृति के रूऩ में स ज रूऩ से प्रकि ोिा ै।

भारि की थचति एकात्मक ै, जबकक द्वन्द्वा बाद यूरोऩ की थचति का आधार ै। चा े ऩूॉजीवाद – माक्सशवाद का द्वन्द्व ो या माक्सश के

वगश सॊघिश का ो, ेगऱ के प्रत्ययवाद में चेिना का

द्वन्द्व ो बाइबबऱ में गौि और िववऱ का द्वन्द्व भी ै। द्वन्द्व उनके थचन्िन दर्शन और व्यव ार में सवशर व्याप्ि ै और य उनकी राष्ट्र य चेिना

ै। विशमान समय में ऩॊर्थ आहद के आधार ऩर कुछ सीमायें खडी करके कुछ राज्य खडे ो गये ैं जो

अऩने आऩको राष्ट्र क िे ैं। इनके द्वारा राष्ट्र की

एकात्मिा बाथधि ो र ै, जैसे ार्थ और ऩैर अऱग कर हदया गया ै।

इससे कभी र्ात्न्ि न ॊ ो सकिी। म विश अरववन्द का प्रमसद्ध कर्थन ै, " भारि अवश्य अखण्ि ोगा क्योंकक भारि की चेिना एक ै। जब

िक इसे बाध्यरूऩ से खत्ण्िि ककया जायेगा राष्ट्र की नयी सीमायें गढ जायेगी िब िक सॊघिश बना

र ेगा, र्ात्न्ि स्र्थावऩि न ॊ ो सकिी। जब कोई राष्ट्र अऩनी ऩ चान भूऱ जािा ै और अऩनी

सॊस्कृति, आदर्श और ऩरम्ऩरा को क ॊ और से

जोडने का प्रयास करिा ै िब नव स्वयॊ र्ात्न्ि

की अनुभूति कर सकिा ै न दूसरों को र्ान्ि

र ने दे सकिा ै।

आज य ऩाककस्िान की अर्ात्न्ि का

मूऱकारण ै जो अरब की ऩरम्ऩरा और आदर्श में

अऩने मूऱ में खोज र ा ै। आज ऩाककस्िान में

कुछ थचन्िकों के नये बीमार में इसी अखण्ि चेिना

का प्रकि करण ो र ा ै। आधुतनक एकिममक जगि य मानिा ै कक कोई र्ब्द अऩने सार्थ उस सॊस्कृति, दर्शन के ऐति ामसक सन्दभश को मऱये

ोिा ै त्जस मूऱभािा में उसकी व्युत्ऩत्त्ि ुई ै।

साॊस्कृतिक राष्ट्रवाद की व्युत्ऩत्त्ि सॊस्कृि भािा में

ुई ै। सॊस्कृि भारि की भािा ै।

अि् भारि में राष्ट्र को ककस रूऩ में देखा

समझा और ववकमसि ुआ य ाॉ के मनीवियों ने

अऩने अनुभवों से ऩररभाविि व्यक्ि ककया देखना

आवश्यक ै। राष्ट्र के सन्दभश में भारिीय ववचारकों

द्वारा द गयी ऩररभािा अमभकृि ऩररभािा मानी

जानी चाह ए। दुभाशग्य वर् औऩतनवेर्क का अखण्ि

में बिहिर् ह िोंके मऱए भारिीय अवधारणों, र्ब्दों

की भ्रामक व्याख्या की गयी। अि् राष्ट्र को

भारिीय सन्दभश में समझने की आवश्यकिा ै।

भारिीय सन्दभश में राष्ट्र सॊस्कृति के सार्थ अन्योन्य ऩरस्ऩर ऩूरक ै इसीमऱए भारिीय राष्ट्र साॊस्कृतिक राष्ट्र ै।

ववचारधारा के िौर ऩर इसका अध्ययन करने के मऱए इसको साॊस्कृतिक राष्ट्रवाद की सॊज्ञा

से अमभह ि ककया जािा ै। वेद, उऩतनिदों, वेदाॊग, साह त्य में राष्ट्र की अवधारणा को व्याऩक वणशन ममऱिा ै। ध्रुव िे राजा वरणो ध्रुव देवों बृ स्ऩति्, ध्रुवॊ ि इन्द्राश्चत्ग्न राष्ट्र धारयिाॊ ध्रुवम्।। (ऋग्वेद) अर्थाशत्वरूण राष्ट्र को अववचऱ करे, बृ स्ऩति

स्र्थातयत्व प्रदान करें, इन्द्र राष्ट्र को सुदृढ करें और अत्ग्न राष्ट्र को तनश्चऱ रूऩ से धारण करें।

आधुतनक समय में स्वामी वववेकानन्द, म विश अरववन्द ने राष्ट्र के वविय में ब ुि ववस्िार से

वणशन ककया ै। वासुदेव र्रण अग्रवाऱ ने भारिीय थचन्िन ऩरम्ऩरा में राष्ट्र के ववचारको 3 ित्व में

तनधाशरण करिे ैं।

1. भू भाग

2. समाज के अन्ि्करण में उस भूभाग के

प्रति श्रद्धा का भाव ोना चाह ए। इसीमऱए भारिीय सॊस्कृति में मािृभूमम, वऩिृभूमम

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3 कीअवधारणा ै।मािा भूमम ऩूरोऽ म ऩृथर्थत्या (अर्थवशवेद)

3. िीसरा ित्व ै सॊस्कृति। द घशकाऱ िक र ने के कारण समाज में सॊस्कृति तनममशि

ोिी ै।

जब कोई समाज जारों साऱ िक र िा ै िो

समाज की गतिववथधयाॉ, कऱाओॊ के ववकास आऩसी

सॊवाद के कारण ववर्ेि िर की समझ सामॊजस्य र्त्क्ि ववकमसि ोिी ै। त्जसमें म आऩसी

मिभेद के सार्थ भी र सकिे ैं। य मार सॊस्कृति ै। वववा , ऩररवार, सभा, सममतियाॉ, ग्राम, राज्य आहद सॊस्र्थाओॊ का ववकास ोिा ै।

ऱोककऱा, गायन आहद का ववचार से सारा मॊर्थन चऱिे ुए एक बोध सामॊजस्य बैठाने की प्रकक्रया

चऱिी र िी ै त्जसके कारण सॊस्कृतिका ववकास ोिा ै िर्था समाज में वे मूल्य बोध आदर्श बन जािे ै, उन मूल्यों को प्राप्ि करने मऱए ववर्ेि

व्यवस्र्था का सृजन ोिा ै।

उदा रण के मऱए भारिीय सॊस्कृति में

आश्रम व्यवस्र्था, िीन ऋण ( देवऋण, वऩिृऋण व ऋविऋण) की व्यवस्र्था, 16 सॊस्कारों की व्यवस्र्था, ऩुरुिार्थश एवॊ वणश व्यवस्र्था के माध्यम से सॊस्कृति

की रक्षा एवॊ सॊवधशन ोिा र्था। इन व्यवस्र्थाओॊ के

भीिर व चेिना का कायश र ै त्जसे प्रारम्भ में

थचति के रूऩ में तनरुवऩि ककया गया र्था। त्जसके

अनुरूऩ समाज र्रु, ममर भाव भी ऩैदा ोिा ै।

ऱोक जीवन में ऩुरुिार्थश, अनुभूतियों के

ऩररप्रेक्ष्य में साॊस्कृतिक गतिववथधयाॉ चऱिी र िी

ैजो सॊस्कृति, ऱोक कऱाओॊ से ऱेकर राष्ट्र य स्िर ऩर व्याऩक रूऩ से अमभव्यत्क्ि ोिी ै त्जससे

भीिर एक बोध ोिा ै व बोध सार रूऩ साॊस्कृतिक राष्ट्रवाद ै। ववकास की अवधारणा के

सन्दभश में उनकी प्रासॊथगकिा की खोज करने का

प्रयास करना चाह ए।

सन्दभष सूिी:-

1. गोऱवऱकर, माधव सदामर्व : राष्ट्र (1992), जानकी

प्रकार्न, नई हदल्ऱ ।

2. ठेंगडी, दिोऩन्ि: राष्ट्र थचॊिन (1981), केर्व कुहि, जबऱऩुर।

3. म विश अरववन्द: भारिीय सॊस्कृति के आधार (1957), श्री अरववन्द आश्रम, ऩाण्िुचेर ।

4. मुखजी, राधा कुमुद: भारि की मूऱभूि एकिा

(2009), सस्िा साह त्य मण्िऱ प्रकार्न नई हदल्ऱ । 5. स्वामी वववेकानन्द: प्राच्य और ऩाश्चात्य (1940), श्री

राम कृष्ट्ण आश्रम नागऩुर।

6. उऩाध्याय, द नदयाऱ: राष्ट्र जीवन की हदर्ा (1960), ऱोकह ि प्रकार्न, ऱखनऊ।

7. मधोक, बऱराज: ह न्दू राष्ट्र (1971), भारिी सदन, नई हदल्ऱ ।

8. उऩाध्याय, द नदयाऱ: एकात्म मानववाद (2004), जागृति प्रकार्न, नोएिा।

9. जायसवाऱ, कार्ीप्रसाद (2012), ववश्वववद्याऱय प्रकार्न, वाराणसी।

10. स्वामी करऩारी: माक्सशवाद और रामराज्य ( सम्वि ् 2066), गीिा प्रेस गोरखऩुर।

11. राय, गुऱाब: भारिीय सॊस्कृति की रुऩरेखा ( सम्वि्

2009), साह त्य प्रकार्न मॊहदर, ग्वामऱयर।

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