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Tantra Sidhi

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Academic year: 2021

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(1)

HOLIKA DAHAN - CHANDAALINI SADHNA VIDHAAN

होली पर्व की अप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं.

जीवन की अवशयकता की प्राप्ति का मागग सुगम हो सके और कम प्रयासों में

सफलता की प्राप्ति हो.आस हेतु व्यप्ति को काल गणना का ज्ञान होना चाप्तहए.जब हम

ईप्तचत समय का चयन कर तदनुरूप प्रयोग कर सके. प्तवप्तशष्ठ मुहूतग में की गयी

साधना का प्रभाव भी ईतना ही तीक्ष्ण और प्तवप्तशष्ठ होता ह.. होली की राप्तरि का

प्रयोग प्तवप्तभन्न प्रकार की साधना हेतु प्तकया जाता ह..साधक की ऄपनी मनोकामना

होती ह., कोइ सौंदयग साधनाओ ं को संपन्न करना चाहता ह.,कोइ यप्तिणी,ऄप्सरा का

प्रत्यिीकरण,कोइ षट्कमग में सफलता के प्तलए आसका प्रयोग करना चाहता ह. तो

कोइ देवत्व की प्राप्ति हेतु,प्तकसी का ई्े्य वशीकरण प्तसप्तधि होता ह. तो कोइ ऄ्

प्तसप्तधि यों की प्राप्ति को सुगम करना चाहता ह.. कहने का ऄथग ये ह.

की साधक की

मनसा पूर्ती के लिए ये अद्भुर्त रालि है

.

हम हमारी कामना ऄनुसार प्तकसी भी साधना को आस राप्तरि में संपन्न कर पररणाम

की प्राप्ति कर सकते हैं.सदगुरुदेव प्रदत्त,र्तंि कौमुदी,ब्िॉग अथवा ग्रुप में लकसी

भी भाई द्वारा अनुभूर्त साधना को संपन्न कर हम सफिर्ता की प्रालि कर सकर्ते

हैं.

लगभग हममें से सभी ने प्तकसी ना प्तकसी साधना का चयन अज की राप्तरि के प्तलए

प्तकया प्तह होगा,अप्तखर आतना बहुमूल्य समय हम ससे क.से व्यथग जाने देंगे. आसप्तलए

मैंने प्तकसी प्तवशेष प्रयोग को ना देने का प्तह मन बनाया था कयूंप्तक ईससे साधक के

मन में दुप्तवधा ईत्पन्न होती. प्तकन्तु बहुत से साधक के मेल अये थे तीव्र धन प्राप्ति

और वशीकरण शप्ति की सप्तममप्तलत प्राप्ति हेतु.ऄतः मैं ये साधना ईसी हेतु यहााँ दे

रहा हूाँ जो की पूणग तांप्तरि क साधना ह. जो प्तनयमों से परे ह..और होप्तलका दहन की

राप्तरि को मारि ३ मािा करके आस मंरि में शप्ति ईत्पन्न की जा सकती ह.,प्तफर ज.से

ज.से भप्तवष्य में अप आस मंरि को करेंगे,अपको स्वतः ही धन की प्राप्ति होते जायेगी.

वस्तुतः ये मंरि कइ प्तनयमों को प्तशप्तथलता देता ह. और शायद आसप्तलए बहुत से

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साधक को ये रुप्तचकर भी लगेगा. शाम को भोजन नहीं करना ह..और होप्तलका दहन

की राप्तरि का मतलब अज की राप्तरि का

९.३२ से सुबह ३.५६ तक का मुहूतग पूणग

साधनामय ह..ऄतः हम आसी मुहूतग का कोइ भी काल खंड प्रयोग कर सकते हैं,और

ईसके बाद या पहले प्तकसी भी ऄन्य साधना को संपन्न कर सकते हैं.साधना के पूवग

यप्तद कुछ ना खाया जाये तो बेहतर ह..

पलिम लदशा की और मुख करके साधना की जाएगी,िाि या पीिे वस्त्र का

माि आज प्रयोग करना है. दीपक लर्ति के र्तेि का प्रयोग होगा,धूप बत्ती का

लनषेध रहेगा.उड़द के बड़े और कुछ लमष्ठान को भोग के रूप में प्रयुक्त करना है.

गुरु पूजन,मंि जप,गणपलर्त पूजन के पिार्त आप इस मंि की ३ मािा मूंगा या

रुद्राक्ष मािा से करें.

ॎ नमो ईच्छछष्ट चंडाच्िच्न पुरपाटण क्षोभणी अकर्षषणी अकर्षषणी अकषषय

अकषषय द्रव्य अनय अनय ह्रीं फट् स्वाहा ||

Om namo uchchhisht chandaalini purpaatan kshobhni

aakarshini aakarshini aakarshay aakarshay

drawya aanay aanay hreem phat swaha

साधना पूरी होने के बाद अप ऄगले प्तदन भोग अप्तद को सुनसान स्थान पर रख दें

और बाद में आस मंरि को प्तबना नहाये,शौचाप्तद के प्तलए जाते हुए भी कर सकते हैं,प्तबना

कुल्ला प्तकये,प्तबना मुह धोये भी खाने के बाद भी कर सकते हैं. ऄथागत शुलिर्ता

अशुलिर्ता का ध्यान रखना अलनवायय नहीं है.इसका र्तात्पयय ये है की भलवष्य में

लबना मािा अथवा मािा के माि १ मािा ही करना है,लफर िाहे आप जप जप

स्थि पर बैठ कर करें अथवा लबस्र्तर पर,या झूठे मुंह की अवस्था में

.

हााँ ये प्तवधान ह. जरुर ऄजीब कयूंप्तक आसमें शुरू के ७ प्तदनों तक गंदे स्वप्न अप्तद

दृप्त्गोचर होते हैं.प्तकन्तु ८ वे प्तदन से अपके जप के प्रभाव से यही शुभ संकेतों में

पररवप्ततगत हो जाते हैं जो की नकारात्मकता समाि होकर सकारात्मकता का ईदय

बताती ह..धन के आकषयण और वशीकरण की र्तीक्ष्ण शलक्त की प्रालि होना इस

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साधना के द्वारा संभव हो जार्ती है.इसी मंि की लसलि के बाद कई अघोर और

र्तीव्र कायों का सम्पादन भी लकया जार्ता है.लजसके लिए अिग लवधान है.लजन

पर हम भलवष्य में ििाय करेंगे.अज की रारि ी आस लघु प्तकन्तु प्तवलिण प्तवधान को

अप प्रयोग कर लाभ पायें,यही कामना करता हूाँ.

HOLASHTAK KE KUCHH TAANTRIK PRAYOG

जय सदगुरुदेव ,

प्तप्रय स्नेही स्वजन,

ऄप्तत प्तवप्तश् और महत्वपूणग प्तदवस प्तक शुरुअत हो रही ह.

होप्तलका्क

जो प्तक

होली के पूवग सात प्तदन पहले से प्रारंभ होकर धुरेंडी तक चलते हैं,

एक तो तंरि प्तदवस और ईस पर होप्तलका्क ज.से प्तदवस, तो कयों ना

आसका साथगक और सदुपयोग

साधकों के प्तलए ही तो आस तरह के प्तदवस की ईपयोप्तगता होती ह. कयोंप्तक

साधक ही ईस िण प्तवशेस को जानकर, समझ कर आसका ईपयोग करने से नहीं

चूकते, वे जानते हैं प्तक जो कायग ऄन्य प्तदनों मे संभव ना हो, वो सब कायग या

प्तसप्तधि आन प्तवशेस प्तदवस मे संपन्न हो ही जाते हैं .

भाआयों बहनों म. जानती हूं प्तक ऄब अप सब हमेशा त.यार ही रहते हैं

साधना करने के प्तलए--- :)

वषग के महत्वपूणग प्तदवस दारुण राप्तरि जो प्तक होली दहन के प्तदन को कहा गया

. महाराप्तरि याप्तन महाप्तशव राप्तरि , मोह राप्तरि , याप्तन कृष्णजन्मा्मी, और महाप्तनशा

याप्तन प्तदवाली . आसके ऄलावा प्तवप्तश् प्तदनों मे जो प्तक दीघगकालीन प्तदवस हैं वे

नवरारि ी (दोनों) और श्रावणमास . आस तरह हमारे पास साधनाओ ं के प्तलए बहुत

समय प्तमलता ह. .

परन्तु जब दीघगकालीन साधनाओ ं प्तक बात अती ह. तो सबसे पहले

ध्यान अता ह. समय का प्तक समय कहााँ ह. , ऑप्तफस, प्तबजप्तनस, टूर और घर के

(4)

ऄन्य कायग... वही ऄनु भ.याजी वाली बात... टेम नाय ह. ... :)

प्तकन्तु भाआयों बहनों कया हम एक प्तदन मे ही सफलता पूवगक साधना कर

सकते हैं ? कया एक प्तदन मे ही प्तसप्तधि प्राि हो सकती ह. ? नहीं ना !

मेरे पास कुछ स ंसे म.सेज अते ह., प्तक कोइ एक प्तदन प्तक ससी साधना

करवा दीजे प्तजससे प्तक मेरी धन समबन्धी समस्या हल हो जावे, या मेरी शादी प्तक

समस्या, या कोटग प्तक समस्या, या प्तबजनस मे नुकशान प्तक भरपाइ हो जाये .

अश्चयग होता ह. प्तक हम जानबूझकर ससा क.से कह या कर सकते हैं,

भाआयों म. जानती हूं प्तक अपकी मजबूरी कभी स ंसा करवाती ह. और ये सच भी

ह., कुछ प्रयोग स ंसे ह. जो एक ही प्तदन् मे ऄप्तत तीक्ष्ण और शीघ्र प्रभावकारी हैं .

प्तकन्तु वो अपको कुछ समय के प्तलए ही अराम देंगे. ज.से बीमारी मे अप तुरंत

ददग से अराम के प्तलए दवाइ ले लेते हैं प्तकन्तु समझ दार लोग गोली नहीं ऄप्तपतु

टीके का प्रबंध करते हैं, जो प्तक लाआफ टाआम के प्तलए होता ह... ह. ना :)

चलो ऄब हम मुख्य बात पर अते हैं प्तक दीघगकालीन साधना

अव्यक ह. या लघु प्रयोग ! तो समय प्तवशेष प्तक ईपयोप्तगता को समझा जाये तो

तो लघु प्रयोग भी लाभकारी हैं . परन्तु भाआयों प्तजन्हें प्तसफग साधना के कइ

ऄलग-ऄलग अयामों को छूना ह. या प्तसप्तधि के ममग को समझना ह. वे ऄव्य

ज्यादा से ज्यादा समय साधना मे ही लगाते भी हैं

और दीघगकालीन साधनाओ को ही ऄपनाते हैं... :) याप्तन टीके का

ही प्रयोग करते ह., प्तकन्तु प्तजनके पास समय प्तक कमी ह. या प्तजन्हें मजबूरीवश

तुरंत अव्यकता ह. वे लघु साधना कर भी ऄपने जीवन प्तक समस्याओ ं को

सरल करते ह... और आसके प्तलए हमें समय प्तवशेस को समझना चाप्तहए.... ह.

ना ... :)

सदगुरुदेव ने आस प्तवषय पर ऄनेक बार समझाया ह., िण के महत्व को, समय

के महत्व को, प्तक एक साधक क.से ईस िण को पकड़ कर ईसका सदुपयोग

करता ह... क.से वो ईस िण को ऄपने प्तलए प्रभावकारी बना लेता ह...

(5)

ऄनेकों बार गुरुदेव भजन रोककर या समयानुसार समय देखकर दीिाएं और

प्रयोग करवा प्तदया करते थे...

तो कयों ना हम भी ईन िणों को पकड़ने प्तक कला सीखें? कयों ना हम भी

ईस समय का सदुपयोग करें... :) ह. ना

तंरि प्तदवस और ईस पर होप्तलका्क ह. ना प्तवप्तश् समय तो पकड़

लीप्तजए ईन िणों को, और कर लीप्तजए असान राह प्तजंदगी की ... कयोंप्तक

यही वो समय ह. प्तजसका साधक, प्तवशेसकर तंरि साधक, बड़ी बेसब्री से आंतज़ार

करते हैं, कयोंप्तक यही वो समय होता ह. जब हमे हमारा ऄभी् प्तबलकुल सामने

प्तदखाइ देता ह. बस अव्यकता ह. ईसे पकड़ने की...

भाआयों-बहनों सामान्यतः होली पर जो साधनाएं करना चाहते हैं वे

या तो साबर साधनाएं या प्तफर ऄप्सरा या यप्तिणी प्तसप्तधि साधना . प्तकन्तु कुछ

स ंसे साधक भी हैं जो आन सबसे हटकर कुछ ओर करना चाहते हैं, प्तकन्तु कया ?

भाआयों सदगुरुदेव स ंसे ही प्रश्नों के ईत्तर हेतु ऄकसर कुछ लघु प्रयोग

दे प्तदया करते थे --- :)

भाआयों-बहनों तो ऄब अप त.यार हो प्तजसका मन जो करे या प्तजससे

समबंप्तधत जो साधना करना चाहे का सकता ह. चाहे तो पूरे समय का ईपयोग करे

या प्तफर आन सात प्तदनों मे से चुन कर १, २, ३ जो करना चाहे कर सकते हैं...

ये साधनाएं जो बदल सकती हैं अपकी प्तिया श.ली को, अपकी, प्तनयप्तत

को---

१- वशीकरण मन्रि - जो अपके जीवन मे सद.व काम अयेगा कयोंप्तक आसके द्वारा

अप कोइ भी ऄसमभव कायग करवा सकते हैं...

२- प्तववाद और मुक़दमे अप्तद मे प्तवजय प्तदलाने हेतु- स ंसा कोइ व्यप्ति ह. ही नहीं

प्तक आस तरह प्तक प्तकसी प्तवबाद मे कभी ना फंसे... तो वो आसका प्रयोग कर

सकते हैं...

३- प्तववाहोंपरांत कन्या के सुखी जीवन हेतु .... बड़े प्यार और लाड से बेप्तटयों

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को पाला जाता ह. प्तकन्तु शादी के बाद ऄकसर कभी दहेज या और प्तकसी बात

को लेकर ईसका जीवन नकग कर प्तदया जाता ह. और तब हम सोचते हैं प्तक ऄब

कया करें...?

तो कयों ना पहले ही ये ईपाय करके रख प्तलया जाये प्तजससे प्तक हमारी

बेटी और बहन पूणग सुखमय दामपत्य जीवन जी सकें....

भाआयों-बहनों ये सभी मन्रि म.ने ऄनेकों बार अजमायें हैं. ऄलग ऄलग

स्रोतों से ये प्तवधान प्राप्य हुए हैं प्तकन्तु आनकी सफलता आनके प्रभाव को प्रमाप्तणत

भी करती ह..

अज से ६-७ वषग पहले मेरे पप्तत बहुत बीमार हो गए थे, ईस म.ने कुछ समय तक

ज्योप्ततष से समबंप्तधत कायग प्तकया और ईस मेरे पास हेंडप्तप्रंट और कुंडप्तलयााँ

अती थी तथा म. ऄपने पप्तत की मदद से ही आन कायों को समहाल रही थी तब

मैंने ये प्रयोग बहुत बार अजमाए, गुरुदेव की कृपा से हर बार पूणग सफल भी

रही... ऄतः आस बार होली पर अप सबके प्तलए अररफ जी

के कहने पर ये

प्तदव्य और ऄप्तत तीव्र प्रभावकारी मन्रि ...

एक बात याद रप्तखये प्तक आस समय आन मंरि ो और सामग्री को अप प्तसधि कर रहें

हैं, आनका प्रयोग तो बाद अव्यकतानुसार अप कर सकते हैं... :)

वशीकरण मंरि -

साधना सामग्री हेतु -- प्तसन्दूर, रोली, और तेल प्तजसे अप ऄप्तभमंप्तरि त करना

चाहते हैं, तेल सरसों या प्ततल का हो .

प्तदशा ईत्तर या पप्तश्चम, असन लाल, मूंगा माला वस्त्र भी लाल हो तो बेहतर या

आकछा ऄनुसार .

राप्तरि १० बजे के बाद स्नान कर पप्तश्चम प्तदशा प्तक ओर मुंह कर ब.ठ जाएाँ, गुरु,

गणपप्तत का संप्तिि पूजन कर गुरु मन्रि प्तक ४ माला संपन्न करें ओर संकल्प लें

प्तक म. आस मन्रि को प्तसधि करने हेतु ये साधना संपन्न कर रहा हूं.... ऄब ऄपने

सामने दो कोरे यानी नए प्तदये, एक कटोरी प्तजसमे िमशः प्तसन्दूर, रोली ,और

(7)

कटोरी मे तेल भरकर ऄपने सामने रख लें ...

प्तफर मूंगा माला से प्तनमन मन्रि प्तक मारि ५ माला संपन्न करें . और प्तफर चार

माला गुरु मन्रि प्तक संपन्न करें व् मन्रि गुरुदेव को समप्तपगत करें...

मन्रि

"ॎ नमो आदेश गुरु जी कौ, रो रो जोगणी, रो रो कािी, ब्रह्मा की बेटी,

इन्द्र की सािी, सुका घट जावै र्तािी िौसठ जोगणी, अंग-अंग मोड़ी, अस्त्री

पुरुष िगावै संग र्तेि, रै र्तेि क्या करै खेि अंगनीलभजी माया लनिगीर्त

िौसठ योलगनी की आण पडै, छोड़-छोड़ गौरी हीरौं की वाट आवै, जौरी

हमारी खाट मोह मन्ि छूटा जाई र्तो गुरु गोरख नाथ को मास खाई फुरो

मन्ि ईश्वरो मन्ि वािा."

जब भी वशीकरण की प्तिया को प्रयोग करना हो तो आसी मंरि की १ माला कर

तेल को समबंप्तधत व्यप्ति के वस्त्र पर लगा दें.

---प्तववाद मुक्मे अप्तद मे प्तवजय प्तदलाने हेतु....

साधना सामग्री-- काले हकीक

की माला, सफ़ेद अक की जड़, प्तजसे अपको

एक प्तदन पूवग प्तनमंप्तरि त कर लाना ह., लाल असन, दप्तिण या पप्तश्चम, वस्त्र

लाल....

ऄब सफ़ेद अक की जड़ को ऄपने सामने बाजोट पर लाल कपडे पर ही

स्थाप्तपत कर लें और गुरु गणपप्तत पूजन संपन्न कर गुरुमंरि की ४ माला जप कर

प्तनमन मन्रि की मारि ११ माला जप समपन्न

करें----मन्रि -

" ॎ नमो भैरवायखड्गपरशुहस्र्ताय

ॎ ह्ूं लवघ्नलवनाशय ॎ ह्ूं फट॒ "

आसके बाद भी गुरु मन्रि की चार माला जप करें .... मंरि जप के पश्चात दुसरे प्तदन

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ईस प्रप्ततप्तष्ठत अक की जड़ को हाथ मे धारण कर लें.अप स्वयं ही पररणाम की

सकारात्मकता के सािी होंगे.

भाआयों एक बात का ध्यान रखें की प्रत्येक जप के पहले और बाद मे गुरुमंरि

की चार माला जप संपन्न करना ही ह...

३- प्तववाहोपरांत कन्या के पूणग सुखी दामपत्य हेतु....

साधना सामग्री- सामभर नमक, सफ़ेद असन, दप्तिण प्तदशा और समय

लगभग सवा घंटा, आसमें माला प्रयोग नहीं होगी एवं कर माला का ही प्रयोग

होगा, और सांभर नमक जो प्तक प्तकसी भी पंसारी प्तक दुकान मे बड़ी असानी से

प्तमल जाता ह... गुरु पूजन,गणपप्तत पूजन व मंरि जप के बाद नमक को सामने

बाजोट पर रख कर ईसके सामने मंरि का लगभग सवा घंटे तक जप करें.

मंरि -

"ॎ नमो भौगराज भयंकर पीर भूप सुर्तई धरइ जो दीखे मार करन्र्ता,

सो-सो दीखे पााँव परन्र्ता ॎ नमो ठ: ठ: स्वाहा."

कन्या के प्तववाह ईपरान्त वो आस नमक को लाल वस्त्र मे बांध कर स्वयं के शयन

कि में रख ले.पूणग शाप्तन्त की प्राप्ति होगी.

TANTRA SIDDHI- HAAJRAAT SAADHNAA

फटे कपडे, प्तबखरे और ईलझे बाल , ऄजीब सी ही वेशभूषा थी ईनकी और बहुत

ऄसहज सा महसूस कर रहा था मैं ईनके साथ , पर बंगाली मााँ का अदेश था मेरे

प्तलए की मुझे ईनके साथ रहना ह. और सदगुरुदेव के द्वारा प्रदत्त प्तवप्तभन्न साधनाओं

का जो संकलन और ऄनुभव ईन्होंने प्राि प्तकया ह. वो मुझे ईनके साप्तनध्य लाभ से

लेना ह.. ईनके पास ससा संकलन ह. ससा सुनकर मैं काली खोह (प्तवन्ध्याचल) से

मुगलसराय स्टेशन पहुंचकर जबलपुर जाने वाली ट्रेन में ब.ठ गया .

रास्तेभर जो भी मााँ ने ईनके बारे में बताया था वही सब सोचता रहा , जबलपुर

पहुच कर पहले बाज्नापीठ जाकर भ.रव के दशगन प्तकये और प्तफर मााँ नमगदा के तट

(9)

की और चल पड़ा. जबलपुर मेरा आसके पहले भी कइ बार जाना हो चूका था. और

अश्चयग की बात ये ह. की हर बार एक नवीन रहस्य ही मेरे सामने खुलते जाता

साधना जगत का.

एक से एक प्तसधि ों से भरा हुअ शहर , चाहे वो ज.न तंरि से समबंप्तधत हो या प्तफर

मुप्तस्लम या शाबर तंरि से समबंप्तधत , प्तकसी ज़माने में यहााँ की जाने वाली तांप्तरि क

प्तियाओ ं का कोइ जवाब नहीं होता था पर समय के साथ साथ ये प्तसधि और आनकी

परमपराएाँ गुि सी ही हो गयी थी. भाइ ऄरप्तवन्द, हसदबकस , जीवन लाल , मप्तणका

नाथ , ऄवधूती मााँ और ऄब एक नए गुरुभाइ पाररतोष बनजी से मुलाकात होने जा

रही थी.

सन १९९३ की बात ह. च.रि नवरारि ी का प्तशप्तवर संपन्न होने के बाद मैं ऄपनी

साधनाओ ं के प्तलए सीधे प्तवन्ध्याचल बंगाली मााँ के पास चला गया था और तबसे से

गमी, गमी और गमी.ईस प्तशप्तवर में ही गुरुदेव ने एक नवीन तथ्य का मुझे ज्ञान प्तदया

था की

“र्तुम शाक्त साधनाओं को संपन्न करने के लिए लवन्ध्यािि ििे जाओ

और ध्यान रखो की शाक्त साधनाओ ं के स्वर र्तंि का गहन अभ्यास

करना,उससे साधनाओ ं में शीघ्र ही सफिर्ता लमिर्ती है क्योंलक बाये स्वर द्वारा

जब श्वास प्रश्वास की लिया िि रही हो र्तभी शलक्त मन्िों का जप उलिर्त होर्ता है

क्योंलक मन्ि पुरुष र्तब िैर्तन्य होर्ता है और दाये श्वास प्रश्वास की लिया के मध्य

शलक्त सुि रहर्ती है परन्र्तु और बेहर्तर होर्ता है की लजस भी मंि का जप लकया

जा रहा हो उस मन्ि के पहिे और बाद में “ई ं” बीज जो की कामकिा बीज है

िगाकर जप करने से भगवर्ती शलक्त की लनद्रा भंग हो जार्ती है” इसी र्तथ्य को

ध्यान में रख कर अपनी साधनाएं मैंने पूरी की.

वहााँ से जब जबलपुर पंहुचा था तब मइ का मध्य अ गया था और मइ की

गमी ज.से प्तदमाग को फोड ही डालती , सूरज प्तसर को ज.से प्तपघलाने को ही अतुर

था, बोतल का पानी भी खत्म होने वाला था पर ज.से त.से जी कड़ा कर मैं लगातार

चलते ही जा रहा था . मुझे मााँ ने बताया था की तुमहे सरस्वती घाट से नीचे ईतर

(10)

कर बस सीधे हाथ की तरफ नाक की सीध में चले जाना. लगभग ३ प्तकलोमीटर के

ऄंदर ही शमशान से लगी हुयी ईनकी झोपडी ह. .

पर मैं ईन्हें पहचानूाँगा क.से –मैंने मााँ से पूछा था.

तुम ईसे नहीं बप्तल्क वो तुझे पहचान लेगा-मााँ ने कहा .

बस आसी शब्द के सहारे मैं चलता चला जा रहा था , नमगदा जी की धाराओ ं में जो

गप्तत धुअाँधार में रहती ह. ईससे कही ज्यादा सौमयता बस ईससे २ प्तक.मी. अगे

आस सरस्वती घाट से लगकर बह रही ईनकी धाराओ ं में थी. तपती दोपहरी में जो

सुकून मुझे जल को बहते देखकर हो रहा था वो शब्दों में वणगन नहीं प्तकया जा

सकता ह.. सबसे पहले मैंने जी भर कर नहाया ,वस्त्र बदले और अगे बढ़ता चलागया

नदी के प्तकनारे प्तकनारे ही. ऄचानक प्तकसी ने मेरे नाम को पुकारा .... मैंने रुक कर

देखा एक मध्यम कद काठी का गौर वणीय व्यप्ति मुझे हाथ प्तहलाकर अवाज़ दे रहा

था. मैं ईस और बढ़ गया.

जब मैं ईनके नजदीक पंहुचा तो ईन्होंने ‘जय गुरुदेव’ कहकर मेरा ऄप्तभवादन प्तकया

, मैंने भी ईत्तर प्तदया तो ईन्होंने मुझे साथ चलने के प्तलए कहा, बाकी सब तो ठीक

था पर ईनकी वेश भूषा से मुझे बड़ी कोफ़्त हो रही थी, ख.र ज.से त.से ईनके घर तक

पहुचे, कच्चा मकान प्तजसमे मारि दो कमरे थे , एक कमरा रसोइ और ब.ठक के काम

अता था और दूसरे में बहुत सारे हस्तप्तलप्तखत ग्रन्थ,खरल,मृग चमग

असन,बाजोट,बाजोट पर करीने से रखे प्तवप्तवध यंरि तथा पूणग तेजस्वी तथा भव्य

सदगुरुदेव का प्तचरि ईस कमरे को भव्य ही बना रहा था.

चाहे बाहर से प्तकतना ही छोटा प्तदख रहा था वो मकान पर भीतर से ऄजीब सा

सुख लग रहा था ईस घर में, ईस तपते प्तदन में भी ऄजीब सी शीतलता थी वहााँ पर.

शाम हो गयी थी,पाररतोष भाइ ऄपनी मध्यान्ह साधना में व्यस्त थे और ऄब

शाम प्तघर अइ थी.वे साधना कि से बाहर प्तनकले और मेरे पास ब.ठ गए, मैं भी

भोजन और नींद लेकर स्फूप्ततग से भर गया था.वे मुझे लेकर नदी के तट पर चले गए

जहा हम पानी में प.र लटका कर ब.ठ गए और बहुत देर तक चुप रहने के बाद मैंने

ईनसे ईनके बारे में पूछा तो, ईन्होंने कहा-‚ सन १९८२ में मेरी सदगुरुदेव से

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मुलाकात हुयी थी तब मैं ऄपने नप्तनहाल प्तमदनापुर (बंगाल) गया हुअ था, नाना जी

प्तक तंरि में बहुत रूप्तच थी और ईन्होंने सदगुरुदेव से दीिा लेकर प्तवप्तवध साधनाएं भी

संपन्न प्तक थी. बंगाली होने के नाते स्वभावगत हम सभी मााँ अप्तद शप्ति प्तक पूजा

करते थे, मेरा रुझान मााँ काली प्तक साधनाओ ं में कही ज्यादा था , मैं घंटो नाना जी

के पास ब.ठ कर ईनकी साधनाओ ं के ऄनुभव को सुना करता था.वे भी ऄपने

ऄनुभव बताते और कइ चमत्कार भी प्तदखलाते. कया मैं भी ससा कर पाईाँगा-मैंने

नाना जी से पूछा. प्तबलकुल कर पाओगे, पर तंरि का रास्ता आतना सहज नहीं ह.,

तलवार प्तक धार पर चलने से भी ज्यादा खतरनाक ह. पर,ये बहुत असान हो जाता

ह. यप्तद कोइ समथग गुरु अपको ऄपना ले तो. तब मेरी प्तजज्ञासा और रुझान को

देखकर ईन्होंने मुझे सदगुरुदेव से प्तमलवाया और ईनसे दीिा देने प्तक प्राथगना

की.सदगुरुदेव ने मुझे दीिा दी और प्तफर मैं ईनके प्तनदेशानुसार साधनाएं करने लगा,

समय के साथ साथ साधनाओ ं को गप्तत भी प्तमलने लगी. सफलता ऄसफलता दोनों

को पूरे मन से स्वीकार करता था मैं . ये देखकर एक बार सदगुरुदेव जब जबलपुर

अये तब,ईन्होंने मुझे ऄपने हाथ से प्तलखी हुयी एक तीन मोटी मोटी डायरी दी.

प्तजसमे ईन्होंने प्तवप्तवध प्रकार के तांप्तरि क प्रयोग प्तलखे थे, बस ईन्ही डायरी के अधार

पर मैं साधनाएं संपन्न करने लगा और प्तवप्तवध प्रकार की सफलता भी मैंने पाइ.‛

रात होते होते ही हम वाप्तपस लौट अये. रास्ते में ईन्होंने बताया की वे जीवन

यापन के प्तलए बैंक में जॉब करते हैं. और ईनका स्थायी प्तनवास गोरखपुर( जबलपुर)

में ह. , पर वो ऄपनी साधनाओ ं की वजह से प्तवगत कइ वषों से यहााँ पर रह रहे हैं.

और मैं हमेशा ससा नहीं रहता हूाँ- ईन्होंने ऄपने स्वरुप की तरफ आंप्तगत करते हुए

कहा और हाँसने लगे.

मैं ऄभी कोइ ऄघोर िम कर रहा हूाँ आसप्तलए ससी वेशभूषा हो गयी ह., आसके प्तलए

मैंने ३ महीने की बैंक से छुट्टी भी ली हुयी ह..

रात में ईन्होंने ऄपनी प्रेत शप्तियों की मदद से मेरा मनपसंद भोजन बुलवाया.

कया अपको भय नहीं लगता?

प्तकससे-ईन्होंने पूछा .

(12)

आन भूत प्रेतों से ...

कयूाँ लगेगा भला, ये तो ऄत्यप्तधक प्तनरापद होते हैं.और सदगुरुदेव ने आनको प्तसधि

करने की आतनी सहज प्तवप्तधयााँ बताइ हुयी ह. की सामान्य व्यप्ति भी भली भांप्तत

ऄपना जीवन यापन करते हुए आनको प्तसधि कर सकता ह.. रात को ईन्होंने काप्तलका

चेटक का प्रयोग कर स्वणग का प्तनमागण कर के प्तदखाया , पारद प्तवज्ञानं के माध्यम से

रत्नों का प्तनमागण क.से होता ह. ये समझाया. ईप्तच्छ् गणपप्तत प्रयोग के द्वारा

वशीकरण की ऄत्यप्तधक सरल प्तिया बताइ. रोगमुप्ति, बगलामुखी साधना द्वारा शरि ु

स्तमभन का सरल मगर तीव्र प्रभावकारी प्रयोग,शमशान च.तान्यीकरण प्रयोग , दीप

स्तमभन का प्तवधान समझाया, प्तकन मन्रि ों से तंरि प्रयोग दूर प्तकया जाता ह. ईसकी

मूलभूत प्तिया समझाइ. पूवगजन्म दशगन की गोपनीय प्तिया बताइ. व्यापार वृप्तधि के

एक से बढ़कर एक प्रयोग प्रायोप्तगक रूप से करके प्तदखाया और आन सभी साधनाओ ं

का अधार ईन डायररयों को मुझे देखने और नोट करने के प्तलए प्तदया, वे डायररयां

१९६३,६५,६८ और ७३ की थी मैंने लगभग ४६८ प्रयोगों को ईनमे से २२ प्तदनों

में प्तलखा. बाद में भी कइ बार मैं ईनके पास गया और ईन्होंने ईदारतापूवगक ईन

प्तियाओ ं और साधनाओ ं को मुझे समझाया भी और प्तलखने भी प्तदया

एक से बढ़कर एक प्रयोग थे वे सभी,बाद में मैंने ईनमे से बहुत से प्रयोग और

साधनाएं संपन्न की तथा पूरी तरह सफलता भी पाइ. जब आस ऄंक का प्तवचार

अया था तो हम सभी ऄपनी साधनाओ ं के प्तलए ६४ योगनी मंप्तदर में प्तमले थे तब

मैंने ईनसे प्तनवेदन प्तकया तो ईन्होंने मुझे कहा की ऄब वो प्रयोग तुमहारे ऄपने हैं तुम

ईन्हें प्तनप्तश्चत ही ऄन्य गुरुभाआयों और बहनों के साधनात्मक जीवन को अगे बढ़ाने

के प्तलए देने के प्तलए स्वतंरि हो

हाजरार्त प्रत्यक्षीकरण प्रयोग

शुिवार को चााँद प्तनकलने के बाद जौ के सवा प्तकलो अटे से एक पुतला बनाओं

प्तजसे की हाजरात कहा जाता ह., ये प्तिया शहर या गााँव के बाहर प्तकसी मजार पर

जाकर संपन्न की जा सकती ह.. टोंटीदार लोटे में पानी ऄपने साथ लेजाकर ऄपने

हाथ पााँव,मुह धो ले और लुंगी तथा जाली दर बप्तनयान या कुरता धारण करे रहे ,

(13)

यप्तद हरा असान और वस्त्र हो तो ज्यादा बेहतर रहता ह. .ईस मजार पर प्तहने का

आरि और प्तमठाइ चढ़ा दे और असन पर वीर असन की या नमाज पढ़ने की मुद्रा

पप्तश्चम प्तदशा की और मुह करके ब.ठ जाये और प्तदशा बंधन कर ऄपने सामने हाजरात

को स्थाप्तपत कर सबसे पहले १०१ बार दरूद शरीफ पढ़े.

अल्िाह हुम्मा सल्िे अिा सैयदना मौिाना मुहलदव बारीक़ वसल्िम सिार्तो

सिामोका या रसूिअल्िाह सल्ििाहो र्तािा अिैह वसल्िम

.

आसके बाद प्तनमन मन्रि की हकीक माला से ११ माला करे और ये िम एक शुिवार

से दुसरे शुिवार तक करना ह.,पुतला वही रहेगा प्तजस पर अपने पहले प्तदन साधना

की ह..ससा करने से हाजरात प्रत्यि हो जाता ह. तब ईससे तीन बार वचन लेकर ईसे

जाने को कह देना और जब भी जरुरत हो ईसे बुलाकर कोइ भी ईप्तचत कायग

करवाया जा सकता ह.. कमजोर प्तदल वाले साधक आस साधना को ना करे और

करने के पहले गुरु की अज्ञा ऄव्य ले लें.

मंि-

या यैययि अिऊ इन्नी किलकया इिैिया लकर्ताबून करीम

ईन्न उन्नुहु लमन सुिैमाना लमन्न हु लबलस्मल्िालहरयहमालनरयहीम

MAHAKAALRATRI AUR USKE GOPNIY PRAYOG

=======================================================

प्रिय भाआयों और मेरी बहनों,

जय सदगुरुदेव,

दीपावली का पवव अने वाला है,या ये कहें की हम ईसी महापवव की संक्ांप्रतकाल में गप्रतशील

हैं.और शास्त्र प्रवप्रदत है की संक्ांप्रतकाल ऄपने अपमें ऄप्रिय्तीय शप्रियों का केन्द्र स्वयं में

छुपाये रहता है,अवशयकता है मात्र ईसका

ज्ञान ऄस्त्र से भेदन करने का

.

(14)

ये महान पवव स्वयं में ईन रहस्यों को आस बार समेटे हुए है.जो की कभी मात्र कल्पना ही हो

सकती है ईच्चतर साधकों के प्रलए भी.

मुझे भली भांप्रत आस बात का व्यप्रिगत ऄनुभव है की

कैसे सदगुरुदेव होली और दीपावली के पवव की तीव्र साधनाओं को शमशान में करने का हमें

अदेश देते थे और कैसे हम ईन रोमांचकारी ऄनुभवों से होकर ऄपने पड़ाव तक पहुंचते

थे..

..

पड़ाव हााँ मात्र पड़ाव ही तो रही हैं वे या ऄन्द्य सभी साधनाएं चाहे प्रिर वो महाप्रवद्या

साधना ही कयूाँ ना हो...

तब...

तब...

तब लक्ष्य कया है ???????

लक्ष्य...

लक्ष्य है आन पड़ावों की रहस्यमयता को स्वयं में ईतारते हुए....अत्मसात करते हुए ब्रह्ांडीय

चेतना से लबालब होकर ईस परम तत्व को स्वयं में ईतार लेना....प्रजसे वेद शास्त्र भी नेप्रत नेप्रत

कहते रहें हैं...और ईसे प्रनप्रखल तत्व कहा गया है....प्रजसका वणवन संभव ही नहीं है,और ना

ही संभव है ईसकी प्रववेचना भी...

प्रकन्द्तु ईसे पाने का रास्ता

तंत्र की आन्द्ही प्रक्याओं से होकर गुजरता है या प्रिर होकर गुजरता है

पूणव समपवण की प्रक्या की दुरुहता से

...

समपवण और दुरूह ????

ये प्रकसने कहा की समपवण दुरूह होता है...

कया नहीं होता है ???????

होता है और जो कहता है की नहीं ये दुरूह नहीं है...वो एक बार प्रसिव एक बार ऄपने अप

से,ऄपने प्रदल से पूछे की कया ईसने श्री सदगुरुदेव के श्री चरणों में ऄपने अपको पूणव समप्रपवत

कर प्रदया है.

(15)

जवाब ईसे खुद प्रमल जाएगा...कयूंप्रक

पूणव समपवण के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता

है...अकांक्षा भी नहीं....सत्य भी नहीं....अनंद भी नहीं... तब रहता है तो मात्र पूणव हो जाना.

खैर

साधनाओं के मागव का ऄनुसरण करते हुए भी हम क्मशः धीरे धीरे ईसी समपवण को

समझते हैं.

और ईसी क्म में

दीपमाप्रलका महाकालरात्री के तांप्रत्रक पवव पर मैं ऄपने संकलन में से ३

साधनाओं का िकाशन ७ से १० नवम्बर के मध्य करूाँगा...ये साधनाएं सामान्द्य िाप्त नहीं हैं.

और हैं एक से बढ़ कर एक....

हााँ करना है

अपको त्रयोदशी से दूज तक.... और सबसे बड़ी बात अप एक समय में मात्र एक

ही साधनाएं ही कर पाएंगे.

..(दीपावली का पूजन और दीपावली की रात्री की धन िाप्रप्त की

साधनाएं मात्र आसके साथ की जा सकती है)

दूसरी बात

च्तब्बती िक्ष्मी वशीकरण की साधना का मुहूतष ऄभी नहीं है,वो

३४ ददनों की साधना है,परन्तु ईसे और दकस तरीके से दकया जा सकता

है,ईसे भी मैं अप सभी को २१ नवंबर को प्रेच्षत कर दूूँगा,तादक अप ईस

ऄच्िय्तीय यन्र का प्रयोग कर सकें.

प्रिलहाल मैं प्रजन तीन साधनाओं की बात कर रहा ह ाँ...ये एक से बढ़कर एक हैं .

और अप ऄपनी चाहत के ऄनुसार आसका ियोग कर लें...

१. (

सवष तीव्र शमसाच्नक शच्ि प्राच्ि) महाकाि भैरव युि भगवती

धूम्रवणाष साधना

– भगवती धूमावती की साधना का ये सोपान साधक को शमसान

साधना और आतर योनी शप्रियों पर ऄप्रधपत्य िदान कर देता है.साथ ही रोमांच का,शप्रि िाप्रप्त

का वो रहस्य जो षट्कमव साधनाओं की कुंजी साधक को िदान कर देता है.प्रिर भला कैसे

साधक सामान्द्य रह सकता है.

(16)

२.

भगवती महाकािी प्राणबि च्सच्ि युि मुंड चैतन्य साधना

– कया

अपने सोचा है की कैसे अप ऄज्ञात के भय से कांपते कांपते जीवन गुजारते हो...प्रतल प्रतल

मर कर...कैसे ऄपमान,दुभावग्य...का दंश अपको दंप्रशत करता रहता है...कैसे कोइ भी तंत्र

ियोग या आतर शप्रियां अपको या अपके पररवार को चुंगल में ले लेती हैं...कैसे कोइ भी

टुच्चा व्यप्रि अपको वश में कर लेता है,जीवन को बबावद कर देता है...कैसे ऄसिलता का

भाव हमेशा अपको भयभीत करता है,प्रिर वो चाहे कायव का क्षेत्र हो,साधना का क्षेत्र हो या

प्रिर जीवन का महासमर...ये ियोग महाकाली की मुंड शप्रि से िाणों में ऄप्रग्न भर कर

ऄप्रवप्रजत कर देता है साधक को.

३.

काम्यच्सच्ि ऐश्वयष प्राच्ि नखाच्नया पूणष च्सच्ि च्वधान

– ऄद्भुत है

नखाप्रनया तंत्र और गुप्त भी,एक से बढ़कर एक ियोगों को समेटे हुए नखाप्रनया तंत्र के ऄंतगवत

अने वाली कइ साधनाओं में से वो ऄद्भुत प्रवधान जो साधक के आप्रच्छत कायों में तो साधक

को सिलता देती ही है...ऐश्वयव और लक्ष्मी अबद्ध का गोपनीय रहस्य भी साधक को िाप्त हो

जाता है.

चयन अप करेंगे...कइ महीनों की िाथवना के बाद मुझे आन्द्हें ऄपने अत्मीयों को देने की

ऄनुमप्रत िाप्त हुयी है ईन प्रसद्धों या साधकों से प्रजन्द्हें गुरुकृपा से आनमे पूणव सिलता प्रमली और

ईन्द्होंने ऄनुग्रह करते हुए मुझे मेरी िाथवना पर प्रदया ..ऄब मात्र अप ऄपने ऄपने कामना

ऄनुसार आन्द्हें गप्रत दे सकते हैं और समपवण की प्रक्या का एक और कदम पूरा कर सकते हैं.

TANTRA SIDDHI AUR PHYSICAL BODY- और

साधना जगत में बड़ी-बड़ी ईपलप्रधधयों को अत्मसात करने के प्रलए

एक गुरु, पूणव प्रवधान,

ईप्रचत स्थान, ऄनुकूल सामग्री और पूणव प्रनष्ठा की बात हमारे वेदों और ईपप्रनषदों में कही गयी

है

....प्रकन्द्तु एक ऄप्रत अवश्यक शप्रि प्रजस पर बहुत गहन ऄध्ययन तो नहीं प्रकया गया पर

ऄपने अप में वो शप्रि आतनी ऄप्रधक महत्वपूणव है की यप्रद अपने ईसका वरन नहीं प्रकया तो

सारी की सारी शप्रियााँ, प्रसप्रद्धयााँ धरी की धरी रह जाती है और वो ऄमूल्य शप्रि है...

हमारी

खुद की देह या शरीर

जो भी अप कहना चाहो!!!!!! भारतीय तंत्र शास्त्रों में दो िकार से मानव

(17)

देह की श्रेष्ठता का वणवन प्रमलता है-

एक तो समस्त ब्रह्ांड की प्रनयंत्रणकाररणी शप्रि हमारे

माप्रस्तष्क के रूप में, प्रजसे ब्रह्ा और प्रशव का स्थान िाप्त है कयोंप्रक आसमें सृप्रि के प्रनमावण और

संहार की क्षमता है और दूसरा महाशप्रि महामाया के रूप में प्रजसे तंत्र में पराशप्रि कहते है

और जो आस पूरे ब्रह्ाण्ड के कण कण में व्याप्त है प्रकन्द्तु मनुष्य ही एक ऐसा िाणी है जो ना

केवल आसे जाग्रत कर सकता है बप्रल्क आसे चैतन्द्य कर क्षमता ऄनुससार आसका ईपयोग करने में

भी सक्षम है.

साधना जगत में अत्मा और परमात्मा के बाद यप्रद कोइ तथ्य या वस्तु बहुमूल्य है तो वो है –

मानव शरीर

...कयोंप्रक प्रजस िकार परमात्मा का सूक्ष्म रूप या ऄंश हमारी अत्मा को कहा

गया है ठीक वैसे ही हमारा शरीर आस पूरे ब्रह्ांड का लघु संस्करण है कयोंप्रक

पृथवी, अकाश,

ऄप्रग्न, जल, और वायु

आन पंच महाभूतों के एकीकरण से पहले आस समस्त बह्ांड की रचना हुइ

और प्रिर ईन्द्हीं पंच तत्वों से हमारे आस पंच-भूतक शरीर को भी प्रनप्रमवत प्रकया गया प्रजसे

तंत्र में

पंचाप्रग्न

कहते हैं...और आसी के तहत

पृथ्वी तत्व से हमारे शरीर में चरम और नाड़ीयों का

संग्रह बना, जल तत्व से रि, मूत्र और वीयव न प्रनमावण हुअ, ऄप्रग्न ने हममें क्षुधा, तृष्णा, मोह

और मैथुन ईत्पन्द्न प्रदया, वायु िाणवायु के रूप में हमारी देह में प्रवधमान है और अकाश तत्व

ने हममें काम, लोभ और भय जैसी भावनाओं को जन्द्म प्रदया.

हमारे आि देव का पता लगाने के प्रलए भी ईस प्रदन से गणना की जाती है प्रजस प्रदन हमारी

अत्मा ने एक भौप्रतक देह को धारण करके आस लोक में जन्द्म प्रलया था कयोंप्रक यह एक

प्रनधावररत तथ्य है की हमारे शरीर में प्रजस भी तत्व की िधानता होगी हमारा मन स्वत: ही ईससे

संबंप्रधत देवी, देवता की और अकप्रषवत होता है जैसे

अकाश तत्व के साथ भगवान प्रवष्णु,

ऄप्रग्न देव के साथ जगतजननी मााँ अप्रदशप्रि, वायु तत्व के साथ भगवान भास्कर, पृथ्वी तत्व

के साथ भगवान भोलेनाथ, और जल तत्व के साथ प्रवघ्नहताव भगवान गणपप्रत की तरि

अकप्रषवत होना स्वाभाप्रवक है और आसका एक िायदा यह है की हमें पता चल जाता है की

हमारा आि देव कौन है.

योग शास्त्र में मनुष्य के शरीर को प्रपंड मानकर आस पूरे ब्रह्ांड की व्याख्या की गयी है की

मानव देह के प्रकस ऄंग में कौन सी दैवी शप्रि प्रवराजमान है और आस देह की महत्ता को दशावने

के प्रलए हमारे मनीप्रषयों ने तो यहााँ तक बताया है की मनुष्य की

वाणी, ईसका मन, िाण और

प्रबंदु सब ऄपार दैवी शप्रियों के अश्रय स्रोत हैं

आसीप्रलए इश्वर की पराशप्रि

आच्छा, ज्ञान और

प्रक्या

के रूप में सबसे ऄप्रधक मानव शरीर में ही जाग्रत है. हमारी देह में आन तीनों पराशप्रियों

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