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International Journal of Humanities and Social Science Research

11 xInternational Journal of Humanities and Social Science Research

ISSN: 2455-2070; Impact Factor: RJIF 5.22

Received: 05-08-2020; Accepted: 20-08-2020; Published: 06-09-2020 www.socialsciencejournal.in

Volume 6; Issue 5; 2020; Page No. 11-13

महात्मा गााँधी के समाजवादी व मानवतावादी ववचारों का ववश्लेषण

हेमलता बोरकर वासवनक

सहायक प्राध्यापक, समाजशास्त्र अध्ययनशाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ़, भारत

साराांश

समाजिादी एिं मानितािादी विचारो की अिधारणा एक व्यापक अिधारणा है इसके अंततगत लैंवगक समानता, समानावधकार समािेशी विकास, आवथतक समानता एिं

सदाचार पूणत व्यिहार को रखा जा सकता हैं। स्ितंत्रता प्रावि के पूित देश में काफी असमानताएं थी रंगभेद, जावतिाद, छूआछूत, लैंवगक भेदभाि, शैक्षवणक़ असमानता से

जुड़ी घटनाएं आम बात थी वजसके कारण से एक िगत विशेष लोगों का ही समाज पर प्रभुत्ि था तथा समाज दो िगों में बंट गया था शोषक एिं शोवषत िगत । इससे समाज मेेँ

काफी वहंसक घटनाएं घवटत होती थी तथा उन घटनाओं का विरोध करने की वकसी में वहम्मत भी नहीं होती थी, और लोग चुपचाप भय के कारण घटना का सामना करते थे।

उस समय न्याय व्यिस्था एक दम जवटल थी केिल विशेष िगत का व्यवि ही इसका लाभ ले सकता था, आम व्यवियों के वलए न्याय व्यिस्था का कोई महत्ि नहीं था। इन विसंगवतयों को जब सामावजक कायतकतातओं जैसे राजाराम मोहन, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, केश्वचंद्र सेन, डॉ भीमराि अम्बेडकर, महात्मा गांधी एिं रानाडे, सरदार िल्लभ भाई पटेल, स्िामी दयानंद सरस्िती ने एक साथ वमलकर इन विसंगवतयों को समाज से दूर करने का प्रयास वकया। महात्मा गांधी ने सामावजक उत्थान से संबंवधत कई कायत वकए वजनमें से स्िदेशी िस्तुओं के उपयोग, सामावजक अस्पृस्यता की रोकथाम, मवहला वशक्षा, मवहला सशविकरण एिं जन स्िावधनता से संबंवधत कायत है। इसके अलािा

मानितािाद एक समाजिाद पर भी इन्होंने कायत वकए हैं।

प्रस्तुत अध्ययन में गाेँधी जी के समाजिादी एिं मानितािादी विचार धाराओं का विश्लेशण करने का प्रयास वकया हैं।प्रस्तुत शोधपत्र् वितीयक स्त्रोंतो पर आधाररत हैं।

मूल शब्द: समानता, स्ितंत्रता,सामावजक न्याय, अवहंसा एिं मानिता

प्रस्तावना

महात्मा गाेँधी एक सामावजक विचारक, समाजसेिक एिं दाशतवनक थे। सामावजक विचारक एिं दाशतवनक होने के कारण इन्होंने सामावजक विकास हेतु समाजिादी

एिं मानितािादी विचारकों का सुत्रपात वकया। इनका मनना था वक जब तक समाज से असमानता, अराजकता एिं शोषण का अंत नहीं होगा तब तक समाज का विकास होना असंभि है, इसवलए इन्होंनें जमीदारी प्रथा, मालगुजारी प्रथा

अस्पृश्यता, लैंवगक शोषण एिं िगत भेद को दूर करने के वलए अथक प्रयास वकया, इस हेतु आंदोलन वकया एिं अनशन पर बैठे। इनके आंदोलन का केिल एक मकसद होता था, िगतभेद, लैंवगक असमानता, मवहला शोषण एिं विदेशी िस्तुओं

का विरोध करना। िे मवहला वशक्षा, सामावजक एिं लैंवगक समानता के पक्ष-धर थे। िे कुटीर उद्योगों के विस्तार एिं स्िदेशी िस्तुओं के उत्पादन एिं उपभोग को

बढािा देना चाहते थे इस हेतु इन्होंने चरखा का प्रचार प्रसार वकया तथा खादी

िस्त्रों के उपभोग को प्रोत्सावहत वकया ।

गाेँधी जी का सामावजक विकास में बहुत अवधक योगदान है, इन्होंने समाज के हर तबके के व्यवियों के वलए उनकी सामावजक-आवथतक दशा सुधारने के वलए अथक प्रयास वकये। इन्होंने कालतमाक्सत के माक्सतिादी वचंतन एिं आंबेडकर के

समाजिादी विचारों को सामावजक विकास का आधार स्तंभ माना है। इन्होंने न केिल पूंजीिादी अथतव्यिस्था का विरोध वकया है अवपतु आधुवनक सभ्यता का

भी विरोध वकया। िे मशीनीकृत उत्पादन कायत के विरोधी थे इसवलए इन्होंने चरखा

को अपनाया और खादी के िस्त्रों का स्ियं उत्पादन करने लगे। महात्मा गाेँधी

स्िािलंबी बनने को कहते थे, उनका मानना था वक यवद ग्रामों में लोग स्ियं के

िारा अपनी जरुरतों को पूरा करने हेतु उत्पादन का कायत करेंगें तो गा्रमीण बेरोजगारी दूर होगी तथा समाज का विकास होगा। गाेँधी जी सदैि समाजिादी एिं

मानितािादी विचारों पर चलने को आग्रह वकया करते थे।

उद्देश्य-प्रस्तुत शोध पत्र में गाेँधी जी के समाजिादी एिं मानितािादी

विचारधाराओं की वििेचना की गयी है।

अध्ययन पद्धवत- समाजिादी एिं मानितािादी विचारधाराओं का विश्लेषण वितीयक तथ्यों पर आधाररत है, इसके वलए उपलब्ध सावहत्य, पुस्तकों एिं

समाचार पत्रों से प्राि वितीयक सामग्री का विश्लेषण वकया गया है।

समाजिादी ि मानितािादी विचारों का विश्लेषण - गाेँधीजी ने समाजिादी

विचारों का सामावजक पररप्रेक्ष्य में विश्लेषण वकया उनके अनुसार समाजिादी

विचार िह है वजसमें प्रत्येक व्यवि के वलए जीिन की अवनिायत मूलभूत आिश्यकता को प्राि करने के तरीके सवम्मवलत होते हैं इन तरीकों के मदद से

आम आदमी अपनी आिश्यकताओं की पूवतत सरलता एिं सहजता से कर लेता

है। समाजिादी समाज की स्थापना होने से संपवत्त का समान वितरण हो सकेगा

इससे कोई भी व्यवि न अवधक संपन्न होगा और न ही अवधक गरीब सबको

जीिकोपाजतन करने के वलए अवनिायत िस्तुएेँ आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी

इससे समाज से ऊंच-नीच का िगतभेद वमटेगा तथा समाज में समानता की वस्थवत उपन्न होगी। गाेँधी जी ने समाज में हर िगत को समानावधकार वमलने की बात कही

है, उनका कहना है वक इस पृथ्िी में सभी व्यवियों में एक समान रंग का रि का

प्रिाह होता है। सभी में वकसी न वकसी प्रकार की बौवध्दक क्षमता जरुर पायी जाती

है तथा उसका उपयोग उनकी बुवद्ध के अनुकूल करना चावहए। गाेँधी जी ने सभी

िगत को समान अवधकार वदलाने के वलए अवहंसात्मक तरीकों का प्रयोग वकया

तथा िे इस प्रयोग में सफल भी हुए यही कारण है वक समाज में अब सभी व्यवियों

को ऐसे अवधकार देने की बात कही गयी है।

ज़ॉऩ रवस्कन की रचना अन टू वदस लास्ट के िारा गाेँधी जी ने सिोदय आंदोलन की चचात की थी सिोदय आंदोलन का मुख्य उद्देश्य समाज के प्रत्येक व्यवि के

उन्नवत एिं विकास से है। इन्होनें सत्य एिं अवहंसा के माध्यम से सिोदय का

वसद्धांत वदया। गाेँधी जी बुवनयादी वशक्षा के पक्षधर थे। मवहला सशविकरण को

बढ़ािा देने के वलए इन्होंने मवहला कौशल योजना को प्रोत्सावहत वकया इन्होंने

मानिावधकार संबंधी विचारों की नींि रखी। इनकी विचारधारा के प्रशंसकों में

मावटतन लूथर वकंग, दलाईलामा,नेलसन मंडेला आनसान सूकी एिं बराक ओबामा

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प्रमुख थे। इन्होंने शांवत एिं सद्मागत के माध्यम से अपने लक्ष्यों को पाने पर जोर वदया। महात्मा गाेँधी का मानितािादी संबंधी विचार जब मनुष्य को बराबर का

दजात वदलाने का बात करता है तथा सभी के साथ समतामूलक व्यिहार करने की

अपेक्षा करता है । गाेँधी जी का समाजिाद रवस्कन, टाल्सटाय, थोरो, कालत मक्सत, लेवनन जैसे दाशतवनकों के विचारों से वमलाजुला है। गाेँधी जी औद्योगीकरण के

प्रबल विरोधी थे िे मशीनीकृत विदेशी िस्तुओं के वनमातण के विरोधी थे । िे कहते

थे वक यवद हम विदेशी िस्तुओं का उपयोग करेंगे तो देश में बेकारी एिं बेरोजगारी

बढ़ेगी लोगों का शोषण होगा तथा आम नागररक की सामावजक आवथतक दशा

काफी दयनीय होती चली जाएगी तथा इससे पूंजीिादी समथतकों का मनोबल बढेे़गा इसवलए इन्होंने समाजिादी दृविकोण की पहल की वजसका मुख्य लक्ष्य लोकतंत्रात्मक समाज की स्थापना करना था । समाजिादी दृविकोण एक ऐसी

व्यिस्था को अपनाने पर बल देती हैं वजसमें पूंजी या धन का स्िावमत्ि एिं

वितरण समाज या जनता के वनयंत्रण में हो। यह पूंजी पर वकसी वनजी व्यवि के

स्िावमत्ि का विरोध करता है।

19 िीं शताब्दी में समाजिादी विचारधारा को लाने का मुख्य उद्देश्य व्यवििावदता

का विरोध करना तथा मानितािादी विचारों को प्रोत्सावहत करना था । समाज में

सामूवहक वहत की भािना को लाना था, सबका समान विकास करना था मजदूर

िगत एिं वपछड़े िगत को शोषण से मुवि वदलाना था तथा इन्हें उनके अवधकारों को

वदलिाना था वजससे वक िे अपना एिं अपने पररिार का विकास कर सकें। लेवनन ने स्टेट आेँफ रेिोल्यूशन में माक्र्सिाद के समाजिादी विचारधारा को बतलाने का

प्रयास वकया हैं।1

गाेँधी जी ने ट्रस्टीवशप का वसद्धांत वदया था वजसमें इन्होंने पूंजीपवतयों से संपवत्त हड़पने के बजाए उन्हें ट्रस्ट में बदलने का मौका देते थे। गाेँधी जी ने ग्रामीण विकास के वलए खादी एिं ग्रामोउद्योग की स्थापना पर जोर वदया तथा

मशीनीकरण पर आधाररत औद्योगीकरण का विरोध वकया िे भारत की

अथतव्यिस्था को मजबूत करना चाहते थे इसवलए िे कृवष आधाररत अथतव्यिस्था

को सुदृण करना चाहते थे।2 भारती,के.एस.;(1991) ने अपने शोध पत्र में पाया

वक गाेँधी जी ने औद्योगीकीकरण का विरोध वकया था जो मशीन सितसाधारण के

पहुेँच में उनका प्रयोग वकया जा सकता है तावक सभी व्यवि मशीनों का उपयोग कर अपना विकास कर सके।3 नवमता, एन.(2014) ने अपने शोध पत्र में पाया वक गाेँधी जी वनयोवजत विकास के माेँडल को अपनाना चाहते थे तावक देश मजबूत एिं समवन्ित हो सके।4

गाेँधी जी ने यंग इंवडया के पेपर 25 अप्रैल 1929 में वलखा है वक गाेँिों को सुधार करके समाज का विकास वकया जा सकता है इसके वलए स्िस्थ सामंजस्य एिं

एकता बनाये रखने का जरूरत है।5 संरवक्षता का वसद्धांत में गाेँधी जी कहते हैं वक हमें अपने प्राकृवतक संपदा की रक्षा करनी हैं, इसके वलए हमें अपने संसाधनों का

देखभाल करके उपयोग करना है, खासतौर से कृवष योग्य भूवम को संरवक्षत रखने

का प्रयास करना है। इसे पूंजीपवत िगत के हाथों से बचाना है तावक इस जमीन पर उद्योगों की स्थापना न हो सके परंतु आज गाेँधी जी के विचारों पर प्रहार सा हो रहा

है न खादी स्िदेशी िस्तुओं का विस्तार हुआ, न ही कृवष भूवम का संरक्षण।6 गाेँधी जी का कथन है वक व्यवि को हमेशा जीिन की चुनौवतयों का सामना करने

के वलए तैयार रहना चावहए। इसके वलए माता-वपता को अपने बच्चों को सशि

बनाने की जरुरत है, बच्चों को एक साथ रहने की सीख देना तथा छोटे-बच्चों का

माता-वपता से अलग रहकर वशक्षा लेने की बात का िे पूणततः विरोध करते हैं, उनका मानना है वक छोटे बच्चों की वशक्षा पूणततः घर पर रहकर विद्यालय भेजकर वदया जाना चावहए, इससे बच्चे अपने माता-वपता एिं संबंवधयों के संपकत से

अनौपचाररक ज्ञान का अजतन करने के साथ-साथ विद्यालय से औपचाररक ज्ञान की प्रावि करेंगें। ये दोनों ज्ञान प्रावि के स्रोतों के िारा बालक के व्यवित्ि का संपूणत विकास हो सकेगा। जहाेँ बच्चा अपने पररिार से संस्कृवत, परंपराओं एिं धमत का

ज्ञान प्राि करेगा इसके साथ ही विद्यालय से व्यािहाररक एिं सैद्धांवतक दोनों

प्रकार के ज्ञान का अजतन कर सकेगा। गाेँधीजी कहते हैं वक बच्चों को शारीररक श्रम की वशक्षा घर से प्रारंभ कर देनी चावहए इससे बच्चा कमतठ बनेगा, इसके वलए इन्हें जीिनोपयोगी वशक्षा देना अवनिायत है यह वशक्षा बालकों में मानिीय मूल्यों

का विकास करेगा। इस प्रकार गाेँधी जी का सामावजक विकास की अिधारणा

लोक केंवद्रत दशतन पर आधाररत है।7

गाेँधीजी मानितािादी दाशतवनक एिं विचारक के रूप में जाने जाते हैं िे मनुष्य के

साथ मानितापूणत व्यिहार वकए जाने की अनुशंसा करते हैं, िे समाज से पूणततः

वहंसा को समाि करने की अनुशंसा करते हैं, उनका मानना है वक जब तक समाज में वहंसा होंगी तब तक समाज में मानि के साथ क्रूरता पूणत व्यिहार होता रहेगा

इसवलए वहसांत्मक तरीकों से दूर रहने की बात गाेँधीजी िारा कहीं गयी है। वहंसा में

िे व्यवि के िारा कहे गये उन कथनों एिं विचारों को शावमल वकया है,जो

जानबूझकर दूसरे व्यवि को ठेस पहुंचाने के मकसद से वकया गया हो तथा ऐसी

प्रताड़ना को वहंसा माना है,जो स्िाथत वहत में दूसरे का शारीररक एिं आवथतक नुकसान के वलए वकया गया हो। अब्राहम मॉस्लो ने 1954 में मानितािादी

अवधगम का व े़सद्धांत वदया उनका मानना था वक मनुष्य को यवद कुछ सीखाना है

तो उनके साथ मनुष्यता पूणत व्यिहार वकया जाना चावहए, पशुओं के समान नहीं

तथा मनुष्य के शारीररक, मानवसक, सामावजक, सुरक्षात्मक एिं आत्म सम्मान को

पूणत करने िाली दशाएेँ उन्हें प्रदान करने की जरूरत है तभी समाज में मानितािाद का विकास होगा।

महात्मा गााँधी के समाजवादी व मानवतावादी ववचारों की आलोचना

गाेँधी जी सुधारिादी वचंतक थे, तो कालत माक्सत लेवनन एिं आंबेडकर पररिततनिादी विचारक थे । कालत माक्सत, लेवनन एिं आंबेडकर समाज में पररिततन लाने की मांग करते हैं पररिततन का संबंध रूवढ़िादी विचारधाराओं एिं परंपराओं

से है जो समाज पर सवदयों से अपना प्रभाि बनाये हुए है वजसके कारण समाज विकास नहीं कर पा रहा । पररिततनिादी समाज में आमूलचूल पररिततन चाहते हैं

जबवक सुधारिादी समाज में केिल लोगों को सुधारना चाहते हैं, िे चाहते हैं वक लोग सच बोले, वहंसा न करे, ईमानदारी पूितक अपना कायत करें दूसरों की

आलोचना न करें परंतु ये बाते केिल सैद्धांवतक रूप में अच्छी लगती हैं

व्यािहाररक रूप में इसे अमल करना असंभि सा वदखलाई पड़ता है तभी तो देश में अनाचार, अत्याचार, शोषण एिं वहंसक घटनाऍ घटीत हो रही हैं। गाेँधी जी ने

वहंद स्िराज में पविमी सभ्यता का विरोध वकया है िे स्िदेशी संस्कृवत को

आत्मसात करने की प्रेरणा देते हैं।8 िे अवहंसा और प्रेम को सब रोगों की दिा

मानते हैं उनका मानना था वक सत्य और अवहंसा के माध्यम से व्यवि बड़ी से

बड़ी लक्ष्य हावसल कर सकते हैं। गाेँधी जी आध्यात्म पर बल देते हैं। िे कहते वक ईश्वर से प्रेम करो इससे आपके अंदर के सारे विकार नि हो जाएंगे और इससे

व्यवि में सदगुणों का विकास होगा वजससे व्यवि बुरे कायत करने से डरेगा और समाज में शांवत व्यिस्था बनी रहेगी9 जबवक कालत माक्सत एिं आंम्बेडकर का

मानना है वक ईश्वर नाम की कोई चीज नहीं है व्यवि का कमत ही उसे सद् गुणॉं तक पहुंचाता है यवद समाज में लोगों को शोषण से बचाना है तो समाज के उन लोगों

को उनके अवधकारों के प्रवत जागरूक करो और उन्हें अपने अवधकारों के वलए संघषत करने बोलो क्योंवक जब तक िह संघषत नही करेंगें तब तक उन्हें न्याय नहीं

वमलेगा। यही कारण है वक कालत माक्स्त एिं लेवनन ने संघषत का वसद्धांत वदया है

वजसका मुख्य उद्देश्य न्याय पर आधाररत समाजिादी समाज की स्थापना करना है।

1908 में गाेँधी जी ने सिोदय आंदोलन वकया वजसका मुख्य लक्ष्य सबका

विकास, सबकी प्रगवत से है। िे समाज को प्रगवत के पथ पर ले जाना चहते थे

इसवलए इन्होंने स्िदेशी िस्तुओं के उत्पादन एिं उपभोग पर जोर वदया।10 इन्होंने

मवहला वशक्षा को प्रोत्साहन वदया िे समाज से सब प्रकार की विसंगवतयों को दूर करने की बात करते हैं इसके वलए िे वहंदू, मुवस्लम, वसक्ख इसाई, आपस में सब भाई-भाई का नारा देते हैं, परंतु कालत माक्सत का मानना है वक जब तक व्यवि का

उत्पादन के साधनों एिं उत्पावदत िस्तु पर स्ियं का स्िावमत्ि नहीं होगा व्यवि का

विकास असंभि है इसवलए िे उत्पावदत िस्तु एिं उत्पादन की तकनीक पर सामान्यजनों के अवधकारों की मांग करते हैं।11गाेँधी जी स्िदेशी िस्तुओं

खासकर खादी के कपड़ों को अपनाने की बात करते हैं जबवक माक्स्त का कहना है

वक िस्तुऍ कहीं की भी हो पर उसकी पहुेँच आम आदमी तक हो वजससे िह

िस्तुओं का सरलता पूितक उपयोग कर सके। गाेँधीजी का समाजिादी दृविकोण

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आदशतिादी होने के कारण समाज में जगह नहीं बना पायी।12 इस प्रकार हम कह सकते है वक गाेँधीजी आदशातत्मक समाजिाद के जनक है तथा कालत माक्सत

िैज्ञावनक समाजिाद के जनक है । सांदर्भ सूची

1. िाग़मारे, सुयतकांत (2004): गाेँधीज़ थॉटस ऑन डॆिलपमेंट: वक्रवटकल अवप्रसल् दी न्यु ग्लोबल डेिेलोप्मेंट् – ि ालु. 20, पृष्ठ, 55-70.

2. इसील, कज़ुया (2004) दी सोवसओ- इकोनोवमक थॉटस ऑफ़ महात्मा

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3. भारती,के.एस.(1991) : द सोवसय़ल वफलाेँस्फी आेँफ महात्मा गाेँधी, कांसेप्ट पवब्लवसंग़ कम्पऩी, न्यु-वदल्ली, पृष्ठ 130-137.

4. नावमता. एन. (2014) : गाेँधीस विज़न आेँफ डॆिेलोप्मेंट ररलेव्ंस फाेँर 21st सेंचुरर, इवडडएन ज़न ल आेँफ पवब्लक एडवमवनस्टृृ॓शऩ ि ालु. 9 नं.-1.

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9. गाेँधी, एम.के. (1955): माय ररवलजन, निीन, पवब्लक़ेशन हाउस, अहमदाबाद.

10. गाेँधी, एम.के. (2012): सिोद्य़, निजीिन् पवब्लक़ेशन हाउस, अहमदाबाद, इंवडया, पृष्ठ, 2-77.

11. वमश्रा,के.के. (1970): सोवशयल एंड पॉवलटीकल थॉटस ऑफ़ गाेँधी, दी

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12. राय, रामास्रेय (1980); सेल्फ एंड सोसाइटी; ए स्टडी इन गाेँधीयन थॉट,सेज पवब्लक़ेशन प्रैिेट् वलवमटृ॓ड़, पृष्ठ. 40-180.

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