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International Journal of Humanities and Social Science Research

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International Journal of Humanities and Social Science Research ISSN: 2455-2070; Impact Factor: RJIF 5.22

www.socialresearchjournals.com

Volume 3; Issue 2; February 2017; Page No. 96-98

मध्य प्रदेश में गोंड जनजाित क� सामािजक चुनौितयाँ

राम बाबू

शोधाथ�, राजनीित िव�ान िवभाग, गु� घासीदास िव�िवद्यालय िबलासपुर, छ�ीसगढ़, भारत izLrkouk

“गोंड मध्य भारत का एक िवशाल जनजातीय समुदाय है| यह समुदाय अनेक उपजाितयों के समूहों से िमलकर बना है| नृजातीय सािहत्य में गोंड अपने रंगारंग युवागृहों के कारण बह�चिचर्त रहे हैं| गोंड समुदाय मध्यप्रदेश व छ�ीसगढ़, उड़ीसा, महारा�, आंध्रप्रदेश, झारखंड, कनार्टक, पि�म बंगाल, और गुजरात में िनवास करते है| परन्तु इनका मूल िनवास स्थान छ�ीसगढ़ का बस्तर �ेत्र माना जाता है|

गोंड समुदाय क� कुल जनसंख्या पचास लाख से अिधक है जो केवल मध्य प्रदेश व छ�ीसगढ़ में ही इनक� संख्या तीस लाख से भी अिधक है जो अपनी पचास से

अिधक उपजाितयो में बंटेह�ये प्रदेशों के मध्यवत� पठारी भाग – मंडला, िसवनी,

िछंदवाडा, और बैतूल तथा बस्तर �ेत्र में फैले ह�ये है| आज भी मंडलािजले क�

लगभग आधी जनसँख्या गोंड है| इस समुदाय के लोगो क� एक िवशेषता यह है िक ये लोग अपना प�रचय मूल गोंड जाित के �प में न देकर अपनी उपजाित के नाम से

या “कोतार” कह देते है| “कोय” “कोयतोर” या “कौतोर” शब्द का अथर् है पवर्तीय मनुष्य या िग�रवासी| इनक� परम्परागत पड़ोसी जनजातीय है बैगा, खोंड, अगिडया, भूिमज तथा गदबा आिद| ‘अतः इस समुदाय के लोगो क� शारी�रक बनावट के

आधार पर इनके’ त्वचा का रंगकथई या कालापन िलये ह�ए होता है| इनके बाल मोटे, काले तथा घुमावदार, चेहरा गोल, आंखेकाली, ओठ मोटे और नाक फूली

ह�ई होती हैं|1

‘गोंड एक बह�त ही प्रभावशाली जनजाित है और गोंड प्रकृित प्रेमी होतें है क्योिक प्रकृित से इनका बह�त लगाव होता है| “गोंड शब्द तेलगू भाषा के गोंडा या गोंड से

आया है िजसका अथर् होता है पवर्त अथार्त पवर्त पर रहने वाले गोंड कहलाये और गोंड लोग िजस बोली या भाषा का प्रयोग अपने दैिनक जीवन में करते है वह गोंडी

कहलाती है| गोंडी शब्द द्रिवण प�रवार के मध्यवगर् क� भाषा है| बालाघाट, बैतूल, पूव� िनमाड़, होशंगाबाद, िछंदवाडा, िसवनी, के गोंड लगभग शुद्ध गोंडी बोलते है|”2

‘हजारों वष� से जनजाितयाँ जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रह रही है| खुले मैदानों के

िनवािसयों और सभ्यता के केन्द्रों से उनका संपकर्आकिस्मक से अिधक नहीं रहा|

मैदानी इलाकों के साह�कारों और व्यापा�रयों के भीषण आक्रमण ने जनजाित समाज को तबाही के गतर् में ढकेल िदया| ऐसे अनेक उदाहरण िमलते है क� मैदानों से आयें

इन धूतर्, चालाक और पेशेवर लोगो के संपकर् में आने के बीस से तीस वष� के भीतर जनजातीय लोग अपनी आिथर्क आत्म िनभर्रता और अिधकांश भूिम खो बैठे जो

हमेशा से जल, जंगल, जमीन, पर अिधकार रहा है | इन गरीब और सभी तरह से

दुबर्लजनजाितयों क� व्यथा कथा लगभग सौ वष� के समय समय पर प्रितध्विन होती रही है| देश क� स्वतंत्रताके बाद भी उन्हें सरकार ने और उनके अपे�ाकृत सभ्य देशवािसयों ने एक समस्या क� स�ा ही दी उससे ज्यादा कुछ नहीं|’3

“गोंड जनजाित सबसे अिधक प्रभावशाली जनजाित है| गोंड प्रकृित क� कोख में

िकसी पहाड़ी पर या नदी िकनारे रहना पसंद करते है| गोंडो के अिधकांश गाँव सड़क से दूर जंगलों में बसे होते है गोंड प्रकृित प्रेमी होते है| गोंडो का सवार्िधक िप्रय पेय शराब है और गोंडो के जीवन में िशकार का बह�त महत्व है| गोंडो क� जीिवका का

सबसे बड़ा साधन िशकार है|”4

‘भारतीय सिवधान क� पांचवी अनुसूची में "अनुसूिचत जनजाितयों" के �प में

प्रावधान िकया गया है। अतः अक्सर इन्हें अनुसूिचत जाितयों के साथ एक ही श्रेणी

"अनुसूिचत जाितयों और जनजाितयों" मे रखा जाता है जो कुछ सकारात्मक कारर्वाई के उपायों के िलए पात्र है। आिदवािसयों के अपने जनजातीय संप्रदाय, रीित�रवाज, परम्पराये और संस्कृितहैं, जो इस्लाम या वैिदक िहंदूधमर् से अलग हैं

पर तांित्रक शैव के अिधक करीब हैं। 19 वीं सदी के दौरान ईसाई िमशन�रयों द्वारा

इनक� एक बडी ़संख्या का प�रवतर्न कराकर ईसाई बना िदया गया। माना जाता है

िक िहंदुओंके देव भगवान िशव भी मूल �प से एक आिदवासी देवता थे लेिकन आय� ने भी उन्हें देवता के �प मे स्वीकार कर िलया। आिदवािसयों का िजक्र रामायण में भी िमलता है, आजादी के 78 साल बाद भी भारत के आिदवासी

उपेि�त, शोिषत और पीिड़त नजर आते हैं। राजनीितक पािटर्याँ और नेता

आिदवािसयों के उत्थान क� बात करते हैं, लेिकन उस पर अमल नहीं करते। देश में

अभी भी आिदवासी दोयम दज� के नाग�रक जैसा जीवन-यापन कर रहे हैं।

नक्सलवाद हो या अलगाववाद, पहले िशकार आिदवासी ही होते हैं। उड़ीसा के

कंधमाल में धमा�धता के िशकार आिदवासी ह�ए और छ�ीसगढ़, उड़ीसा तथा

झारखंड में आिदवासी नक्सलवाद तथा माओवाद क� त्रासदी झेल रहे हैं। पहली बार

‘यूपीए-सरकार के शासन में आिदवािसयों के अपने �ेत्र और संसाधनों पर अिधकार क� बात को कानूनी तौर पर मान्यता िमली। आिदवासी संर�ण के िलए नया कानून बना िजसके द्वारा िब्रिटश जमाने के समस्त नकारात्मक प्रावधानों क� िवदाई तो ह�ई लेिकन िस्थित में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया’।5

‘वतर्मान समय में जनजातीयों क� सामािजक चुनौितयों को हम अनदेखी नहीं कर सकते है| वैसे तो जनजाितयों के सम� अनेक प्रकार क� सामािजक चुनौितयाँ आज

िवकराल �प से मुंह बाएं खडी ह�ई है’| ‘आज िजस गित से जल, जमीन, जंगलों पर भू मािफयाओ द्वारा उनके खिनज सम्पदा पर िजस प्रकार से बंिदशे बढ़ रही है, उससे

तो लगता है िक आने वाले िदनो में उनके सम� अनेक प्रकार क� चुनौितयाँ सामने

खड़ी हो सकती हैं|’6इस प्रकार मध्य प्रदेश में गोंड जनजाितयों क� िनम्निलिखत सामािजक चुनौितया-

गरीबी- ‘गरीबी तो समस्त मानव के िलए एक अिभशाप क� तरह ही होती है|

गरीबी उन्मूलन क� िदशा में भी सकार्र ने पंचवष�य योजना शु� क� और इस �ेत्र में

काफ� प�रवतर्न भी देखने को िमला लेिकन उतना प�रवतर्न नहीं हो सका िजतना िक होना चािहए था|’ “योजना आयोग ने ग़रीबी के प्रितशत का अनुमान 1983-84 में

37.4 प्रितशत और 1987-88 में 29.9 प्रितशत लगाया| यह प्रितशत कुल आबादी

का है| 1983-84 के काल में ग्रामीण इलाको में ही रहते है| जनजातीय समुदाय धीरे

– धीरे एक ऐसी प्रिक्रया का िशकार होता गया िजसमे एक ओर तो उनके साधनों के

आधार और उत्पादन रास्ट्रीय एवम् अंतरास्ट्रीय अथर्व्यवस्था से अस्त व्यस्त ह�ए और दूसरी ओर उनके परम्परागत सामुदाियक अिधकारों (जल, जंगल, जमीन,)और आिथर्क मूलाधारों का अपहरण राज्य सरकारों और व्यापारी िहतो द्वारा िकया गया|

जंगलोंसे वन उत्पाद सम्बंिधत उनके परम्परागत अिधकार पूरी तरह से छीन िलए गये| जनजाितयों क� अच्छी उपजाऊ जमीने उन लोगो के हाथो में चली गयी जो

उनके समाज के नहीं है| जनजाित के लोग िदन प्रित िदन गरीब होते जा रहे है| यही

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97 नहीं, वे बड़ी संख्या में मजदूरी करने लगे है और इन मजदूरो को न्यूनतम मजदूरी भी

नहीं िमलती|’7

‘भारत सरकार ने पांचवी पंचवष�य योजना के दौरान गरीबी दूर करने का नारा िदया

गया| इससे अन्य िपछड़ा वगर् और अनुसूिचत जाित क� िस्थित में सुधार आया|

लेिकन अनुसूिचत जनजाित क� िस्थित में कोई भी सुधार नहीं आया|’ ‘वास्तव में

यिद सारकार इनक� गरीबी को हटाने के प� में है तो इसमें क्रांितकारीतरीके से

प�रवतर्न करने होगे| िजसमे िक बीच में दलाल एवं िबचौिलए न आ सके|’ “यह एक आ�यर्जनक घटना है क� देश के सम्पूणर् भौगोिलक �ेत्र का लगभग 20 प्रितशत भाग जनजातीय प्रदेश है और जहां पर अनुमानतः रास्ट्रीय संसाधनों का 70 प्रितशत खिनज, वन, वन्य प्राणी, जल संसाधन तथा सस्ता मानव संसाधन िवद्दमान है और देश के अिधकांश मूलभूत उद्दोगों, उजार् संसाधनों, बह�उद्देशीय नदीघाटी

प�रयोजनाओंतथा यातायात एवंसंचारके साधनों में सवार्िधक पूजीं िविनयोिजत क� गयी है| िफर भी यहाँ रहने वाले भारतीय पुत्रों क� पहचान देश के िनम्नतम समुदाय के �प में क� जाती है क्योिक अब तक इनके जीवन दशर्न में उत्पादन, उपभोग, बचत, पूजीं िनमार्ण तथा िविनयोिजत क� मनोवृि� का आभाव है| अतः

स्प� है िक रास्ट्रीय आय में आिदवािसयों का योगदान लगभग शून्य है| तो क्या

इसका अथर् यह है िक इनके िलए िवकाश का अथर्शा� अप्रासंिगकहो चूका है|

क्या राष्ट्र िनमार्ताओ, नीितिनधार्रको, योजनाकारों और प्रशासकों क� रणनीित असफल हो चुक� है? उपरो� प्र�ों पर गंभीरतापूवर्क िवचार करने के पूवर् इनके

सामािजक आिथर्क एवंसांस्कृितकिवकास के स्तर को समझना अिधक समीचीन होगा|”8

ऋणग्रस्तता: “भारतीय जनजाितयों क� समस्याओ में संभवता ऋणग्रस्तता क�

समस्या सबसे जिटल है, िजसके कारण जनजातीय लोग साह�कारों के शोषण का

िशकार होते है|”9

‘इस ऋणग्रस्तता का कारण है, िनधर्नता, भुखमरी तथा दुबर्ल आिथर्क व्यवस्था है|

सीधे सादे इन जनजाितयों का पढ़े िलखे लोगो ने अपने व्यापा�रक और राजनीितक

िहतो क� �ि� से इनका भरपूर दु�पयोगिकया क्योिक इन आिदवािसयों में छल कपट आिद क� भावना नहीं थी| ये जनजाितयाँ सरलतापूवर्क धूतर् और बेईमानो के

चंगुल में फसती गयी िनम्निलिखत कारणों से पहला है- भाग्यवादी प्रिवि� व संकुिचत िवचारधारा के कारण|, जाित िबरादरी से िनष्कािषत िकये जाने के भय से

तथा पंचायत के द्वारा लगाये गए जुमार्नो के सम्बन्ध में पंचायत के आदेशों का

पालन|, िववाह, मृत्यु, मेलो तथा उत्सवो में अपनी �मता से अिधक व्यय करने क�

प्रिवि� और उपरो� प�रएिस्थितयो के कारण जनजातीय लोगो को सदैव �पए क�

आवश्यकता रहती है; िजससे ये साह�कारों या ठेकेदारों से उच्च व्याज दर पर �पया

उधार लेते है और उनक� व्याज दरें इतनी अिधक होती है िक उन्हें चुकाते समय इनक� पूरी िजंदगी बीत जाित है और मूलधन इन पर बना रहता है| इसका जीता

जगता उदाहरण है- मदर इंिडयािजसमे मािमर्क तरीके से िदखाया गया है क� ऋण कैसे होता है|’ ‘इस प�र�श्य को देखते ह�ए भारत सरकार ने उन्हें समाज क� मुख्य धारा में लेन के िलए अनेक प्रकार के कल्याणकारी योजनायें चलाई जा रही है| और धीरे –धीरे इन्हें अन्य महत्वपूणर् योजनाओ क� जानकारी दी जा रही है|’10 बेरोजगारी- “जनजाितयों का एक बह�त बड़ा बह�मत लगभग ८५ प्रितशत कृष �ेत्र में काम करता है|”11

‘इसे हम कह सकते है िक जहांतीन व्यि�यों क� आवश्यकता है वहां पर आठ व्यि� लगे और उत्पादन में कोई भी वृिद्ध भी न हो तो इसे हम प्रछन्न बरोजगारी क�

स�ा दे सकते है आथार्त िछपी ह�ई बेरोजगारी|’ “वतर्मान प�र�श्य में रास्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कायर्क्रम पर िजसमें केंद्र और राज्य क� सरकारों ने बराबर क� पूजी लगाई है’ पर 1980 से काम हो रहा है| ग्रामीण भूिमहीन रोजगार गारन्टी कायर्क्रम को

1983 में अमल में लाया जा रहा है| इन दोनों कायर्क्रमों का ल�य ग्रामीण भूिमहीन को न्यूनतम सुिनि�त स्तर का रोजगार िदलाना है| इन भूिमहीनों में ज्यादा अनुसूिचत जनजाित के लोग है| इन्हें वषर् के उन महीनो में रोजगार िदलाना आवश्यक है जब इनके पास कोई काम नहीं होता|”12

‘इस समय इनक� बरोजगारी को दूर करने में सरकार अनेक प्रकार के कायर्क्रम संचािलत कर रही है उनमे से एक महत्वपूणर् योजना है मनरेगा िजसके तहत लोगो

को 100 िदन काम का अिधकार उपलब्ध कराया जाता है|’

िश�ा- ‘िश�ा ही एक ऐसा माध्यम है िजसके द्वारा हम िकसी भी व्यि� को समाज क� मुख्य धारा में ला सकते है| क्योिक सीखने क� कोई उम्र नहीं होती व्यि� जीवन पय�त कुछ न कुछ सीखता रहता है|’ “1950 से पहले जनजातीय लोगो को िशि�त करने के िलए भारत सरकार क� कोई भी प्रत्य� योजना नहीं थी| सिवधान प्रभावी

होने के प�ात अनुसूिचत जनजाित के लोगो के िश�ा स्तर में वृिद्ध करना केंद्र तथा

राज्य सरकारों का उ�रदाियत्व हो गया है| जनजातीय जनसँख्या में औपचा�रक

िश�ा के िवस्तार का अनुमान जनगणना के आँकडो से लगाया जाता है| 1931 क�

जनगणना के अनुसार केवल 0.7 प्रितशत जनजातीय लोग िशि�त थे| 1991 में यह संख्या बढ़कर 29.60 प्रितशत हो गयी जबिक पुरे देश में लगभग 50 प्रितशत

िशि�त लोग थे| जनजातीय मिहला में िश�ा क� दर बह�त कम है| उ�र पूव� �ेत्रो

क� खासी तथा गारो आिद जनजाितयों को छोड़कर िजन्होंने इसाई िमशन�रयों से

खूब लाभ उठाया|”13

‘आज भी जनजाितयों में यह प्रथा है क� िश�ा से उनके बच्चे उनसे दूर हो जाय और उनके देवता उन्हें न� कर दे|’ ‘िश�ा न िदलाने का प्रमुख कारण यह भी है िक वे इतने िनधर्न है िक अपने बच्चो को स्कूल नहीं भेज सकते है|’ “जनजातीय िश�ा

के िवकास में भाषा भी एक बड़ी बाधा है| अिधकतर जनजातीय भाषाये मौिखक है

िजनक� कोई िलिप नहीं है| ऐसी िस्थितयो के कारण िश�ा का माध्यम एक बड़ी

समस्या हो गया है|”14

“जनजाितयों के िनवास स्थानो के कारण भी िश�ा का िवकास धीमा रहा है|

अिधकतर आबादी दूर-दूर है तथा स्कूलों तक पह�चने के िलए लम्बी दूरी तय करनी

पड़ती है|”15

मिदरापान: “जनजाितयों में मिदरापान का अत्यिधक चलन है| अिधकतर जनजाितयाँ मिदरापान के सम्बन्ध में बह�त सवेदनशील है तथा मह�ए के पेड़ को

पिवत्र मानती है| बाजरे तथा चावल द्वारा अपने घरों में बनायीं गयी मिदरा

जनजाितयों में बह�त लोकिप्रय है|”

16 ‘लेिकन वतर्मान प�र�श्य में ठेकेदारों और शराब मािफयाओंके द्वारा उन पर मिदरा बंद करवाने के िलए गुंडे और पुिलस क� मदद लेते है| इस शराब अथवा

अंग्रेजी शराब पीने क� लत एक बार जब इनको लग जाती है तो वे इस चगुल में फँस जाते हैं और बाहर नहीं िनकल पाते और उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव भी पड़ता है|’

आवास: “मध्य प्रदेश तथा छ�ीसगढ़ के गोंड साफ सुथरे व कलात्मक आवासों

का िनमार्ण करते है| जनजाितयों में आवासीय समस्या इतनी गंभीर नहीं है परन्तु

सभी जनजाितयों को यह सुिवधा आसानी से उपलब्ध नहीं है तथा मैदानों में रहने

वाली जनजाितयों क� आवासीय समस्या गंभीर है| इन लोगो के पास जल, जंगल, जमीन, और भूिम व आवास क� िनतांत कमी है|”17

“जनजाितयों क� आवासीय समस्या को सुलझाने में वन िवभाग भी बाधक है|

अफसरशाही तथा संक�णर् �ि�कोण के कारण वनसंपदा के प्रयोग पर जो रोक लगा

दी गयी है, उसके कारण सम्पूणर् वन-नीित जनजातीय कल्याण कायर्क्रम में एक बड़ी

बाधा के �प में सामने आई है| आवश्यक वस्तुओं का संकलन करने के िलए िकसी

वन अिधकारी क� स्वीकृित पाना इन जनजाितयों के िलए बह�त किठन हो गया है|

कड़े िनयमों के चलते इन लोगो को मकान बनाने या उसमे सुधार करने के िलए लकड़ी बह�त किठनाई से प्रा� होती है जो उन्हें अलगाववादी आन्दोलन के िलए प्रे�रत कर सकती है|”18

स्वास्थ- “प्रायः जनजातीय लोग सरकारी िचिकत्सालयों में कम ही आते है| इसका

कारण है इनक� अपनी िचिकत्सा पद्धितयाँ| सुदूरवत� तथा दुगर्म�ेत्रो में रहने वाली

जनजाितयों में यह िव�ास व्या� है िक बीमाँ�रयां दैवी शि�यों, भूत-प्रेतों के प्रकोप या िकसी परम्परा या िनयम के उलंघनके कारण होती है| सभी उपचारों से िनराश होने के बाद ही ये लोग स्वास्थ्य कमर्चा�रयों से सम्पकर् करते है| तब तक काफ� देर हो चुक� होती है|”19

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“जनजातीय लोगो का सामान्य स्वास्थ्य बह�त बुरा नहीं है परन्तु लगातार संक्रमण से

उनको अक्सर बीमा�रयों का सामना करना पड़ता है| वैसे तो जनजाितयाँ बह�त सी

बीमा�रयों से ग्रस्त रहती है परन्तु सबसे अिधक मात्रा में जल संक्रामक रोग पाए जाते

है िजनसे बह�त लोगो क� मृत्यु हो जाती है|”20

“वैसे गोंड आिदवासी। यह शब्द सुनते ही हमारे जेहन में घुटने तक धोती पहने ह�ए हट्टे-कट्टे बलवान और श्याम वणर् के युवक क� तस्वीर उभरती है”।21

लेिकन- “आज आिदवासी समुदायों में बड़े पैमाने पर महाजनी कुप्रथा प्रवेश पा रही

है| आिदवासी इस कुप्रथा के कूचक्र में बुरी तरह फंस कर रह गया है| यह महाजनी

कुप्रथा गांव के स्तर से लेकर, आज राज्य, रास्ट्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपना

पांव पसार चुक� है. इसके अलावा वणर् आधा�रत व्यवस्था भी जो वचर्स्व पर आधा�रत है वे भी धीरे-धीरे आिदवासी समुदाय में अपनी जड़े जमा चुक� है. इसके

पालने का काम वही ताकतें कर रही हैं जो भारत को बह�लवादी देश से एक िहंदू

राष्ट्र में बदलने के िलए प्रयासरत है. आज आिदवासी समुदाय पर िवकास बनाम

िवस्थापन क� अमानवीय िवभत्स तस्वीर उभरी है जो आिदवािसयों क� भूिम पर आज बड़े-बड़े उद्द्योग स्थािपत िकए जा रहे हैं और इस संपि� में उनक� िहस्सेदारी

तो खत्म ही क� जा रही है साथ ही उन्हें अपना मूल िनवास स्थान जल, जंगल, जमीन, छोड़ने के िलए भी मजबूर िकया जा रहा है| िवकास के इस अमानवीय मॉडल में उनके प्राकृितक संसाधनोंके साथ ही उनके बुिनयादी अिधकारों को भी

छीन िलया है| और यह अमानवीय कायर् आज भी बदस्तूर जारी है| आिदवासी

समाज में कुछ आंत�रक समस्याएं भी हैं िजसको जांचा परखा जाता रहा है|

आिदवासी समाज क� कुप्रथाएं मसलन अंधिव�ास और शराबखोरी भी बड़े स्तर पर आिदवासी समुदाय में व्या� है| िजनसे उनके िपछड़ेपन का बोध होता है हालांिक पूवर्वत� सरकारों ने इस समुदाय के िलए बह�त कुछ िकया है लेिकन इनक� ज�रतों

को देखते ह�ए यह प्रयास पयार्� नहीं है| इसिलए ज�रत है इनके िवकास के िलए

िजम्मेदारी एवंईमानदारी से काम करने क�| आिदवासीयों क� आिदम संपि�जल जंगल और जमीन को स�ा के ठेकेदार कॉप�रेट हाथों में सौंप रहे हैं और आिदवासीयों को लगातार िवस्थािपत करने का प्रयास कर रहेI आशा का श्रोत बस वह संघषर् है जो आिदवासी अपने बिलदान क� िचता पर लड़ रहे हैं और अन्याय व शोषण के इस पहाड़ का हटना असंभवभी नहीं है “आप हटा सकते हैं”-लगातार कोिशश सेI “खोदते-खोदते एक पीढ़ी बबार्द हो सकती है दूसरीभी हो सकती है

लेिकन पहाड़ हट कर रहेगा अगर खोदना जारी रहा|”22

‘अंतन्तः हम िनष्कषर् �प में कह सकते है िक आज के वतर्मान प�र�श्य में

जनजाितयों क� सामािजक चुनौितयाँ जो भी है वह धीरे-धीरे अनुकूल हो रही है और केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों के संयु�प्रयास से उनके जीवन स्तर को सुधारने के

िलए अनेक लोककल्याणकारी योजनाये संचािलतक� जा रही है| और िश�ा के

द्वारा उन्हें समाज क� मुख्य धारा में लाने के िनरंतर प्रयास िकये जा रहे है| तथा अब धीरे-धीरे इसके सकारात्मक प�रणाम िदखाई दे रहे है| वे अब समाज क� मुख्य धारा

में आ रहे है| इनमे से कुछ लोग िछंदवाडा जनपद के आसपास कोयले क� खानों में

मजदूरी करने लगे है | लेिकन िफर भी उनक� बह�त सी समस्याएं है िजनका समाधान करना होगा जो उनके अिधकार जल, जंगल, जमीन, है उन पर उनका हक़ िदलाना

होगा और उनक� जो कुशलताएँ है उसको तराशना तथा सहेजना होगा|’

सन्दभर् सूची-

1. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. – 148.

2. नायडू पी. आर. “भारत के आिदवासी िवकास क� समस्याए”, राधा

पिब्लकेशन, नई िदल्ली-११०००२, आई.एस.बी.एन. ८१-७४८७-१०४-७, प्रथम संस्करण-1997, पृ. 28.

3. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –141.

4. नायडू पी. आर. “भारत के आिदवासी िवकास क� समस्याए”, राधा

पिब्लकेशन, नई िदल्ली-११०००२, आई.एस.बी.एन. ८१-७४८७-१०४-७, प्रथम संस्करण-1997, पृ. 15.

5. http://prof-rlmeena.blogspot.in/2011/01/tribes-now-days.html

6. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –14.

7. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –१६३.

8. http://hindi.indiawaterportal.org/print/50020

9. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –148.

10. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –१४९

11. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –167.

12. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –167.

13. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –१७८.

14. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंड िडस्ट्रीब्युटसर्, नई

िदल्ली, आठवां, संस्करण- २०१३. पृ. –181

15. हसनैन नदीम. “जनजातीय भारत”, जवाहर पिब्लशसर् एंडिडस्ट्रीब्युटसर्, नई

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Referensi

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