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Tantra Darshan

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Academic year: 2021

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TANTRA DARSHAN - SIDDH KUNJIKA STOTRA KE GUPT RAHASYA(PAARAD TANTRA AUR DURGA SAPTSHATI)

ममत्रों, ाआस ाऄद्बुत स्तोत्र के रहस्य कों ाईजागर करने के पूर्व, मै ाअप लोगो से कुछ तथ्य बाांटना

चाहता हू जो मेरे ाऄपने ाऄनुभर्ों में से है, कैसे मुझे ज्ञात हुए ये पूज्यपाद सदगुरुदेर् जी का

ाअशीर्ावद तो सदा से मुझ पर रहा है ाआसमें कोाइ नयी बात नहीं, और ना केर्ल मुझ पर ाऄमपतु

हम सभी ाआस बात का ाऄनुमोदन करेंगे की ाईनका ाअशीर्ावद सदेर् हम सभी पर है ही.

सदगुरुदेर् जी ने दुगाव सप्तशती की महत्ता के बारे में काइ बार मांत्र तांत्र यन्त्त्र मर्ज्ञान पमत्रका में

ाईल्लेख मकया है. (र्ैसे ये एकमात्र ाईन ताांमत्रक ग्रांथो में से है जो मूलरूप में ाअज भी हमारे

समक्ष है) परन्त्तु मैने ाईन पूर्व ाऄांको की तरफ कभी खास ध्यान ही नहीं मदया. मसफव पढ़ मलया

करता था. ाऄसल में तो मै ाईसे हलके में ले मलया करता था. मै ाईनके मदव्य शब्दों की महत्ता कों

नहीं समझता था, नहीं समझ पाया था ाईन बोलो कों मजस पर र्े हमेशा जोर मदया करते थे. मैंने

ाआस मदव्य ग्रन्त्थ कों मात्र मााँ दुगाव की स्तुमत और एक कहानी मजसमे मााँ भगर्ती ाऄसुरों से युद्ध

करती है और जो सांस्कृत में प्रकामशत है. बस, ाआससे ज्यादा और कुछ नहीं... मरे काइ गुरु

भााआयो ने मुझे बताने की कोमशश की ाआस ग्रन्त्थ के बारे में, परन्त्तु में स्तोत्र र्ोत्र में ाआच्छुक नहीं था

कभी. मांत्र और साधना में ही मेरी रूमच थी. कभी ाआस पर ध्यान ही केंमित करने का नहीं सुझा.

पर र्ो जो सदगुरुदेर् पर मनभवर है, मफर कैसे भला र्े छोड़ देते ाऄपने बच्चे कों ाआस भटकन भरी

मजांदगी में, भले ही बात छोटी हो या बड़ी.. और मफर र्ो मदन ाअया जब मै पहली बार

आररफ

जी

से ममला ( र्ह कहानी कभी और बतााउांगा शायद ाअगे ाअने र्ाले समय में ) ाईन्त्होंने मुझे

एक महान तत्र मांत्र के साधक के बारे में बताया जो ाऄब तक जीमर्त ाऄर्स्था में र्ाराणसी में

(2)

रहते है. र्े ाऄब तक ाऄपनी र्ही तरुणार्स्था की ाउजाव कों बरकरार रखे हुए है ाऄपनी ९० साल

की ाअयु में मभ.. मै यकीन ही नहीं कर पाया की र्े सच कह रहे है. ाईन्त्होंने मुझे काइ बार ाईनसे

ममलने के मलए कहा परन्त्तु समय मनकलता गया और ऐसे करते करते ४ महीने बीत गए. सच

कहू तो मै ाईनके ाअग्रह के पीछे की भार् भूमम कों समझ ही नहीं पा रहा था. ाईनसे ममलने की

बात कों हलके में ले रहा था.

जेसा की मैंने ाउपर बताया की मेरे ाऄपने सांकोच के कारण मै यही सोचता था की जब

सदगुरुदेर् जी है तो मकसी और की क्या ाअर्श्यकता. कही और क्यों जाना... पर ाईन्त्होंने कहा

की सदगुरुदेर् जी ने हमें कभी नहीं कहा या रोका कही और से ज्ञान बटोरने के मलए ाऄगर र्े

प्रामामणक मसद्ध साधको की श्रेणी में ाअते है तो, ाईन्त्होंने हमें कभी बााँध के नहीं रखा ाऄमपतु

ाईन्त्होंने हमें हमेशा स्र्छन्त्द श्वास लेने के मलए कहा. सो एक मदन मै बनारस चला गया, र्ैसे तो

मै बहुत ही बेचैन था क्युकी ाअररफ जी ने मुझे पहले से ही कहा था की भैया र्े तो ऐसे व्यमि

है जो कुछ ममनटों में तोल लेते है की कोन मकतने पानी में है. मुझे लगा की तो हो सकता हे की

मै भीकुछ ममनटों में बाहर ाअ जााउ.. ाआसीमलए पुरे प्रर्ास में सतत सदगुरुदेर् जी से प्रथवना करते

हुए ाअ रहा था की ाआस् ाईद्देश्य से यह मेरा पहला प्रर्ास है तो ाअप मुझे ाआसमें सहायता कीमजए.

यहााँ तक की र्ह पहुचने पर ाईन मांमदरों मशर्ालयों में दशवन करने पर भी मै यही प्राथवना में लगा

रहा की मुझे सफलता प्रदान करे.

ाईस साधक ने मेरा स्र्ागत मकया. ाईनके मुखमांडल का तेज और तरुणााइ की ाईजाव ाऄब तक

झलक रही थी. परन्त्तु मै तो नर्वस था ही ाआसीमलए कुछ बोल ही नहीं पाया. मैंने देखा कुछ ही

ममनटों में र्े मुझ से खुल कर बातचीत करने लगे. ाईसके बाद तो ाईन्त्होंने मेरे काइ सर्ालों के

जर्ाब मदए. (ाईसमे काइ मूखवतापूणव भी थे) पहली ही मुलाकात में हमने ाऄनेक मर्षयो पर जेसे

साधना, तांत्र, मांत्र और मनमित ही दुगावसप्तशती पर भी बातचीत करी. बातों बातों में पाता ही

नहीं चला की कब ६ घांटे बीत गए. ाईन्त्होंने ाआस् मदव्य ग्रन्त्थ के बारे में मेरी धरणा कों बहुत हद

तक दूर करी. साथ ही साथ नर्ीन रहस्यों कों भी ाईजागर मकया मेरे सामने.. र्ह से लौटते हुए मै

ाआस मदव्य ग्रन्त्थ कों खरीद लाया. और बाद में मैंने सदगुरुदेर् और मााँ दुगाव से क्षमा याचना की

ाऄपनी ाऄब तक की ाआस गलत धरणा के मलए और ाईपेक्षा भर् रखने के मलए.. खैर देखा जाए

तो ये एक और लीला ही थी सदगुरुदेर् जी की मेरे प्रमत की मै मफर सही ट्रेक पर चलने लगु.

(3)

ाअगे ाअने र्ाले लेखो में कुछ और रहस्यों कों ाईजागर करूाँगा जो मुझे ाईनसे प्राप्त हुए. लगता हे

मै कुछ ज्यादा ही बोल रहा हू तो चमलए मुद्दे पर पुनाः लौटते है..

ससद्ध क ुंसजका स्तोत्रुं

मफर एक मदन मैंने ाईन्त्हें फोन मकया (बनारस के ाईन महान साधक कों) और पुछा- की क्या कोाइ

गुप्त मसद्ध कुांमजका स्तोत्रां भी है, मजस पर मै ाअपसे चचाव करना भूल गया हू, मफर बड़ी ही

सरलता से ाईन्त्होंने कहा की ाआन सब बातो पर समय और ाईजाव मत गर्ाओ, और मेरा ध्यान

दूसरी ओर केंमित करते हुए बोले की जो मैंने पहले बताया था ाईसे याद रखो. मफर मुझे लगा

की ाईस स्तोत्र का कोाइ खास महत्त्र् नहीं जब की ाआस मदव्य ग्रन्त्थ में तो ाआसके बारे में बहुत ही

ाईल्लेख ममला.. मफर एक मदन मै और ाअररफ जी एक मर्शेष चचाव में गुम थे तो बात करते हुए

मैंने ाईन्त्हें पूरा र्ृताांत सुना मदया. जब मैंने स्तोत्र सम्बन्त्धी बाते बतााइ तो सुनने पर र्े मसफव हलके

से मुस्कराए.. मैंने समझा की र्े भी मेरे ाआस बात का समथवन कर रहे हे. सदगुरुदेर् के ाअशीर्ावद

से हम मदव्य मााँ शमि रूपा के पार्न मांमदर में बैठे कुछ महत्र्पूणव चचाव में रत थे. हमारी चचाव

पारद मर्ज्ञान के ाऄमूल्य सूत्रों पर हो रही थी. मै भी सुन रहा मेरे कुछ गुरु भााइयो के साथ. और

मफर ाऄचानक ाईन्त्होंने

‚मसद्ध कुांमजका स्तोत्र‛

के बारे में बोलना शुरू मकया.. मै हतप्रभ रह गया

की ाईस समय ाईन्त्होंने ाआस पर कुछ भी नहीं कहा और ाअज ाऄचानक (मतलब, क्या मैने ाईस

मुस्कान कों गलत समझ लीया था) सदगुरुदेर् जी ने ाईन्त्हें ाआस् स्तोत्र की गुप्त कुांजी मद थी. तो

कुछ पांमिय ाआसी सांबांध में जो सदगुरुदेर् जी के ज्ञान गांगा से ाईद्दृत हुाइ है ाअररफ जी के मुख से –

‚बहुत लोग हमारे प्राचीन शास्त्रों और ाऊमष मुमनयों के ज्ञान कों बहुत ही हलके में लेते है. र्े

जानते नहीं की प्रत्येक स्तोत्र ाऄपने ाअप में गुढ ाऄथव मनमहत है. और ाऄगर ाईसे समझ मलया

जाए तो मफर क्या ाऄसांभर् है. ाऄगर ाअप लोगो कों दयाां हो तो सदगुरुदेर् ने एक बार श्री सूि

के ाऄांतगवत स्र्णव मनमावण करने की मर्मध का ाईल्लेख मकया था, हना ये ाईसका शामब्दक ाऄथव तो

नहीं पर हे सांकेत मलमप में बद्ध.( ाआसका भाषाांतर ाऄभी भी‚स्र्णवमसमद्ध‛ पुस्तक में मलमखत है)‛

“ऐ ुंकारी सृसि रूपायै”

ाऄथावत ऐांग बीज मांत्र की सहायता से कुछ भीमनमावण मकया जा सकता

है, और जब मै कहता हू की कुछ भीमतलब कुछ भीही है... ाआसमलए जब खरल मिया करते

हुए ाआस मांत्र का जाप मकया जाय तो पारद में सृजन की शमि मनममवत हो जाती है (सदगुरुदेर् जी

ने भीाआस बीज मन्त्त्र के बारे में बहुत र्णवन मकया है ) ाआस ऐांग मांत्र के द्वारा मबना गभव के बालक

कों जन्त्म मदया जा सकता है. ाआस् मिया कों महमषव र्ाल्मीमक ने त्रेता युग में सफलतापूर्वक

(4)

प्रदामशवत मकया था जब कुश(भगर्न राम के पुत्र) का जन्त्म हुाअ था. मै यहााँ प्रमिया तो नहीं

परांतु पारद से ाआसका क्या सांबांध है ये बताने का प्रयास कर रहा हू.

“ह्रींकारी प्रसतपासिका”

ाऄथावत माया बीज, ाआस् भोमतक जगत में मकसी भीधातु का

रूपाांतरण कर समस्त भौमतक सुखो का ाईपभोग मकया जा सकता है. जब ह्रींग मांत्र का जाप

रूपाांतरण मिया के दौरान मकया जाए तो सफल रूपान्त्तर सांभर् है. और ाआससे सफलता के

प्रमतशत मद्वगुमणत भी हो जाते है.

“क्िींकारी काम रूसपणयै”

ाऄथावत क्लीं बीज मांत्र ाअकषवण के मलए होता है जससे बांधन

मिया कों सफलता पूर्वक सांपन्त्न मकया जा सकता है. यह बीज साधक की देह कों मदव्य कर

मर्शुद्द पारद सामान कर देता है. यह काम बीज ाअतांररक ाऄल्केमी में ाईपयोग होता है.. ाआस

सांबांमधत काइ साधनाए सदगुरुदेर् ने मद है.

“बीजरूपे नमोस्त ते”

ाऄथावत यहााँ कहा गया है की मै नमन कताव हू ाआन बीज रूपी शमियों

कों. हे पारद मै बीज स्र्रूप में ाअपकी पूजा करता हू. ये ाआस् बात का भी प्रतीक है की मै ऐसा

करके पारद कों बीज स्र्रूप में पूज कर मसद्ध सूत का भी मनमावण करता हू. मजस से समस्त

सांसार की दररिता का नाश हो सकता है. जो प्रत्येक रसायनशास्त्री का ध्येय हो सकता है.

“चाम ुंडा चुंडघाती”

ाऄथावत मृत्यु कों भी परास्त कर, ाऄगर प्रत्येक सांसकार कों सफलता

पूर्वक सांपन्त्न मकया जाए तो ाआस से रोग रूपी मृत्यु पर भी मर्जय प्राप्त की जा सकती है, चांड

यहााँ दानर् का घोतक है. यहााँ ‚च‛ शब्द नाश/मृत्यु हे मजसे पारद में प्रेररत कर ऐसा पारद

मनमावण मकया जा सकता हे मजससे ाऄकाल मृत्यु, ाआच्छा मृत्यु प्राप्त की जा सकती है.

“च यैकारी वरदासयनी”

ाऄथावत समस्त प्रकार के र्रदान देने र्ाले पारद जो ाआस् सम्पूणव मिया

का फल है.

“सवच्चै चाभयदा सनत्यम नमस्ते मुंत्ररुसपणी ”

ाऄथावत समस्त प्रकार के ाअरक्षण ाआस पारद

तांत्र मर्ज्ञान में है ाआस मर्च्चै बीज में. ाआस से सभी प्रकार की मर्नाशकारी शमियों से ाअरक्षण

प्राप्त मकया जा सकता हे, ाऄभयम ाऄथावत एक मदव्यता जहा भय र्ास ही नहीं करता और जो

केर्ल ाआसी से सांभर् है.

(5)

“धाुं धीं धूुं धूजजटे”

ाऄथावत समस्त प्रकार के प्रलयकारी शमियो कों ाआस से र्श में मकया जा

सकता है. धुजवटा शमि (जो मशर् का ही एक रूप है ) ाऄथावत ऐसे सम्पुमटत पारद से हमारे

समस्त दोष जो शत्रुर्त है ाईनसे भी मुमि का मागव प्रशस्त हो सकता है.

“वाुं वीं वूुं वागधीश्वरी”

ाऄथावत जो मााँ सरस्र्ती से सांबांमधत है. (ज्ञान की देर्ी) मैंने र्ही रोक

के पूछा क्यों - यहााँ मााँ सरस्र्ती पारद से कैसे सांबांमधत है ? ाअररफ जी बोले, भैया क्या ाअपने

कभी ध्यान मदया

सा + रस + र्ती

. यहााँ पारद कों रस कहा है (ाऄब मुझे समझ ाअया की

प्रत्येक देर्ी के नाम में एक गुप्त ाऄथव छुपा है)

“क्ाुं क्ीं क्ूुं कसिका देवी”

ाऄथावत मबना मााँ काली के, जो काल की देर्ी है, और मनमित

काल के मबना केसे हम पारद सांस्कार कर सकते हे ाऄमपतु हम तो सभी काल के बांधन में है.

ाआसीमलए ाईनकी कृपा से ही पारद के द्वारा काल पर मर्जय प्राप्त की जा सकती है. ाआसीमलए ाआस्

बीज मांत्र द्वारा ाऄसांभर् कों भी सम्भर् मकया जा सकता है.

ाआसी सन्त्दभव में कृपया ाअररफ जी

महाकाली साधना पर ाअधाररत लेख कों पढ़े मजसमे ाईन्त्होंने ाआस् बीज मांत्र का मर्श्लेषण मकया

है.

“शाुं शीं शूुं में श ुंभ क रु”

ाऄथावत ाआस सांसार की सभी ाऄचूक एर्ां धनात्मक शमिया सफलता

प्रामप्त हेतु हमें सहायता करे. और ाआस् बीज मांत्र द्वारा ये सभी पारद में समामहत हो जाये.

“ह ुं ह ुं ह ुंकार रूसपणयै”

यह बीज मांत्र ाअधाररत हे मनयांत्रण शमि पर. पारद ाऄमनन स्थायी

मिया ाआसी पर ाअधाररत है. ‘सदगुरुदेर् मलमखत – महमालय के योगी की गुप्त शमियाां’ में

सदगुरुदेर् जी ने एक एसी मिया का ाईल्लेख मकया है मजस में ाईन्त्होंने केर्ल श्वास द्वारा पारद

मशर्मलांग का मनमावण मकया है. केर्ल ‘हुां’ बीज मांत्र जो मकसी भी र्स्तु कों ाअकार देने में

सांभर् है और ये केर्ल ाआसी बीज मांत्र द्वारा ही यह सांभर् हो सकता है. ठीक जेसे स्तम्भन मिया

में होता है. और बहुत से रसायन शामस्त्रयों के मलए ाऄमननस्थायी पारद बनाना ाईनका स्र्प्न रहता

है. जो केर्ल ाआस बीज मांत्र द्वारा ही सांभर् है.

“जुं जुं जुं जम्भनासदनी”

ाऄथावत सभी प्रकार की ज्रभांकारी शमियों जो मुमि हेतु ाईपमस्थत

होती है.

“भ्ाुं भ्ीं भ्ूुं भैरवी....”

ाऄथावत मााँ भैरर्ी (भगर्ती पार्वती) के ाअशीर्ावद के मबना कैसे हमें

पारद के लाभ ममल सकते है. हे मााँ मै ाअपका नमन करता हू की ाअपकी कृपा के मबना ाआस

बीज मांत्र से सांसकाररत पारद का लाभ समस्त सांसार कों ममल ही नहीं सकता.

(6)

“अुं कुं चुं...स्वाहा ”

ये सभी बीज मांत्र पारद की प्राण प्रमतष्ठा के मलए ाईपयोग होते है. प्राण

प्रमतष्ठा के बाद ही ाआस में प्राणों का सांचार होता है और तभी ये पारस पत्थर में परार्मतवत होता है

साधक के मलए. ाआस् मिया कों करने का सांकेत ये बीज मांत्र ही दशावते है. और ाआन्त्ही के कारण

ये मिया सांपन्त्न होती है.

“पाुं पीं पूुं पावजती पूणाज”

जेसा की ाअप सभी जानते है की गांधक ाऄथावत पार्वती बीज हे

रसायन तांत्र की भाषा में, और मबना ाआस् बीज के कैसे भला पारद(मशर् बीज ाऄथावत र्ीयव) का

बांधन सांभर् है.. ाआसीमलए ाआन तीन बीज मांत्रो से ही पारद बांधन मिया सांपन्त्न होती है.

“खाुं खीं खूुं खेचरी तथा”

ाआसका ाऄथव है कैसे खेचरत्र्ता ाऄथावत ाअकाश गमन क्षमता कों

पारद में सांस्काररत कर ाआन तीन बीज मांत्रो से ाआस् मिया कों सांपन्त्न कीया जा सकता है. हमने

बहुत से लेखो में खेचरी गुमटका के बारे में पढ़ा है परन्त्तु ाआसका मनमावण केसे होता है ? परन्त्तु ाआस्

मबांदु पर सभी मौन हो जाते है.. ाऄगर र्णव माला में ाऄ से ज्ञ तक (महांदी शब्दमाला ५२ ाऄक्षरों

की होती है ) परन्त्तु ाआसमें मकस ाऄक्षर का ाईपयोग होता है खेचरी गुमटका के मनमावण में ये एक

ाऄद्बुत रहस्य है. ाईपरोि पांमिय र्ही रहस्य ाईद्घामटत करती है. ये हमारा सौभानय ही होगा ाऄगर

हम सदगुरुदेर् के श्री चरणों में ाआस् ाईपलक्ष साधना एर्ां र्ही रहस्य का प्रकटीकरण की प्रथवना

करे और हमें र्े प्रदान करे.

“साुं सीं सूुं सप्तशती देव्या मुंत्रसससद्धुं”

–ाऄथावत ये तीन बीज है जो हमें मसमद्ध प्रदान करने में

सहायक होते है साथ ही साथ पारद मर्ज्ञान में मभ, क्युकी ाऄगर मसफव रसायन मिया कर के ही

सब हामसल होना होता तो ाऄब तक र्ैज्ञामनको ने सभी मसमद्धयााँ प्राप्त कर ली होती. जब की

ाईनके पास तो सभी सुमर्धाए ाईपलब्ध होती है. ाआसीमलए यह स्पष्ट है की मांत्र मसमद्ध ाआस् मर्ज्ञान

का ाऄमभन्त्न ाऄांग है सफलता प्रामप्त हेतु.

“अभक्ते नैव दातव्युं गोसपतुं रक्ष पावजती”

भगर्ान मशर् कहते है हे पार्वती जी से की ाआस

रहस्य कों कभी भी ऐसे स्थान पर ाईजागर नहीं करना चामहए जहा साधक सदगुरू और पारद के

प्रमत सममपवत ना हो.

“न तस्य जायते सससद्धररणये रोदनुं यथा”

ाऄथावत मजस मकसी कों ाऄगर ाआन सूत्रों का ज्ञान

नहीं होगा तो र्ह कदामप पारद मर्ज्ञान में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता.. ाईसके सभी मकये

प्रयास व्यथव हो जायेंगे ाआन सूत्रों के मबना ाआसीमलए ये तो र्ही बात हुाइ की ाऄरण्य में ाऄकेले

मर्लाप करना र्ो भी मबना मकसी ाईद्देश्य के.

(7)

ाअररफ जी मुझे देख कर मुस्कुराए, और कहा की भैया ाऄब शायद ाअप समझ गए होंगे की

क्यों ाईन बनारस के साधक ने ाअपका ध्यान कही और केंमित करना चाहा. र्ास्तर् में ाआस्

स्तोत्र के काइ गुढ़ ाऄथव है. और यही कारण रहा की मसद्ध साधक सार्ांत जन भी ाआन सूत्रों कों

ाईजागर करने से कतराते है.. क्युकी बहुत ही कम लोग ाआसका ममव समझ पाते है और ाआस मागव

पर ाअगे बढते है और मै ाआस् बात पर पूणवताः सहमत हुाअ.. और हम दोनो एक साथ मुस्कुराए..

ाऄब जाके मुझे समझ ाअया की स्तोत्र का ाईच्चारण ाअपका मागव प्रशस्त कर सकता है परन्त्तु

ाआसके गुढ़ रहस्य और सटीक ममव कों जान लेना ाऄसली सफलता है. मसफव ाआसी मर्धा में ये तथ्य

लागू नहीं होता ाऄमपतु तांत्र की प्रत्येक मर्धा में यह मनयम लागू होता है. ाईन्त्होंने ाआस पुरे र्ृताांत

कों िमबद्ध करने की मलए मुझे कहा था. तामक हमारे सभी ाऄन्त्य गुरु भााइ बहन और नए

मजज्ञासु भी ाआस मर्ज्ञान के ाआस पृष्ठ से लाभ ाईठा सके जो सदगुरुदेर् प्रणीत है.

सो मेरे मप्रय भााइ मैंने ाऄपनी तरफ से एक कोमशश की है.. मपछले ४ घांटो से मै ाआसी में व्यस्त

रहा की कैसे ाईस पुरे ज्ञान सांभाषण कों मलमपबद्ध करू.. क्युकी मै ऐसे घटनाओां का मर्र्रण देने

में कुछ खास मनपुण नहीं.. ;-) और ये मेरा पहला प्रयास है.. ाआसीमलए धन्त्यर्ाद देता हू.

ाऄरे मुझे नमवदा नदी के मकनारे भी जाना था ाऄपने ममत्रों के साथ और यहााँ बहुत ही ठण्ड हे

भााइ...सो चमलए ाऄब मै मर्दा लेता हू, ाऄगर ाअपको पसांद ाअया हो तो ाआसे जरुर सभी भााइ

बहनों के मध्य पोस्ट करना... सदगुरुदेर् का स्नेहामशर्ावद मेरे साथ सभी पर बना रहे ाआसी

कामना के साथ... smile…

****NPRU****

Posted by Nikhil at 8:48 PMNo comments: Links to this post Labels: SHAKTI SADHNA, TANTRA DARSHAN

Friday, December 21, 2012

(8)

India has always been vibrant foundation pillar in spread of Tantra.

Tantra has spread not only in India but also in China, Tibet, Egypt,

Africa, Indonesia, Cambodia, Pakistan and other nations. There is no

medium better than Tantra to witness abstruse secrets of universe from

close on and understand them….well, this can be realized by only those

who can do in-depth analysis to find answers…When any sadhak enters

the Tantra world then map of his flight of imagination is depicted in its

subconscious mind. But he is pretty well aware of the fact that there is

no intermediate state in Tantra. It is this side or that side and game

over…

Shaakt and Shaiva Tantra mentioned in Aagam and Nigam scriptures

have been most popular……Where Shaakt sadhnas have been related to

worship of Shakti i.e. Aadya Shakti , in the similar manner Shaiva

sadhnas are related to worship of Lord Shiva. In north India , during the

spread of Tantra sadhnas

“Vinashikha Tantra “

came in vogue for

(9)

worship of Lord Shiva .This tantra has also been termed as

Vinashikhotara

in

Aagam Tradition

. It has also been called Veenadhar

form of Shiva.

Significance of this Tantra, one of the 64 tantras mentioned in

Nityshodashikaarnav and Kulchudamani Tantra

has been in Shaiva

sadhnas. I fell necessary to tell you that in ancient times, different

Tantra Acharyas and scholars have fixed their respective order and

significance after self-studying these Manu Smritis and it is based on

their experience…..so there are as many opinions as there are

scholars…..

Speciality of Vinashikha Tantra is due to worship of Shiva. It is related

to worship of that form of him which has been termed as

Tumburu

.

Priest named Hiranyadam has done the upasana of Bhole Shankar for

attaining Shiv Kaivalya…as a result of accomplishment, that special

form of Aadi Dev Shiva‘Tumburu’ manifested in front of

Hiranyadam….his dhayan is something like this in which he has four

mouth. Each mouth has a special

name-1. Shirshchhed

2. Vinashikha

3. Sammoh

4. Niyottar

Each of the infinite forms of Shiv Ji creates one Tantra chapter in

themselves. As we have read in starting lines of previous article that at

the time of creation of universe, conversation between destructor Shiv

Shankar and Aadya Shakti Paramba Shakti has been termed as Tantra

(10)

and in this context, many tantras were created for the infinite names and

sub-names of Shiva and Shakti….For each portion of knowledge, one

god and goddess were appointed to be ruler which has got

corresponding knowledge for the fulfilment of that special desire. For

the sake of convenience in subject of Tantra, they have been categorised

and control of various god and goddess and protection of their secrets

has been handed over to those Devi Shaktis…though all these Devi

shaktis are only partial form of Aadi Shiva Shakti.

Vinashikha Tantra has also prevailed in Indonesia and

Cambodia….however there have been variation in worship pattern in

various countries but desired aim has remain same all throughout i.e.

Manifestation of four-mouthed lords of lord Mahadev…..four forms of

Companions of four-mouthed Mahadev are also worshipped….

Jaya,

Vijaya, Jayanti and Aparaajita….

In Tumburu sadhna, one special yantra is established….in which

Tumburu i.e. Lord Shiva is in middle and on all his four side his wives

are present…From this sadhna one attains three elements-

Aatm

element, Vidya element and Shiva element.

Worship/upasana is done by chanting beej mantra representing these

elements. There is combination of 5 beej mantra which are beej

alphabets of Tumburu i.e. Shiva and four goddesses.

Tumburu– Ksham

Jaya– Jam

Vijaya– Bham

Jayanti– Sam

(11)

Aparaajita– Ham

Due to absence of permission, its hidden procedure is revealed only to

that sadhak who has got orders or permission to do it. Hidden Tantra

sadhnas have always been given through Guru Tradition ….because

they certainly cannot be for everyone……because doing such sadhna

requires a different type of mentality…..Guru has to see whether his

disciple has become capable to digest abstruse truth or not. Upon

verifying it, it is decided from vibrations emerging from his mental

condition that he has to be provided sadhna or not…As I have told you

Tantra is not a subject of play or to be taken lightly….it can cause harm

to life…Therefore these sadhnas are done only in Savdhaan Mudra .

In coming article, I will discuss such interesting and abstruse facts…

Nikhil Pranaam

*************************************************

तंत्र के विस्तार में भारत भूवम सदेि अधारस्तंभ की भााँती दैदीप्यमान रही

है.. तंत्र का विस्तार ना केिल भारत में ऄवितु चीन, वतब्बत, वमस्र,

ऄफ्रीका, आंडोनेविया, कम्बोवडया, िावकस्तान और कआ देिो में हुअ...

ब्रम्हांड के गुढ़ रहस्यों कों वनकट से देख कर ईसे समझने के वलए तंत्र के

सामान कोइ तोवडस माध्यम ही नहीं... खेर ये एहसास तो गहराइ में ईतर

के देखने िाले कों ही वमल सकता है.. प्रत्येक साधक तंत्र जगत में जब

प्रविष्ट होता है तो ईसकी ऄिनी एक कल्िना की ईडान का मानवचत्र

ईसके ऄिचेतन मन में वचवत्रत होता है. िरन्तु िो आस् तथ्य से वभ भलीभांवत

िररवचत होता है की तंत्र में कोइ वबच की वस्िवत नहीं या तो आस् िार या ईस

िार और खेल खत्म...

(12)

अगम वनगम िास्त्रों में िवितत िाक्त और िैि तंत्र ऄत्यंत प्रचवलत रहे है..

िाक्त साधनाए वजस प्रकार िवक्त रूिा ऄिातत अद्य िवक्त अराधना से

संबंवधत रही है िैसे ही िैि साधनाए विि जी के अराधना से संबंवधत रही

है. ईत्तरी भारत में िैि तंत्र साधनाओ में प्रचलन में विि ईिासना के वलए

विणाविखा तंत्र”

प्रचलन में अया.

अगम िरंिरा

में आस तन्त्र कों

विणाविखोत्तरा

की संज्ञा भी दी है. आसे विि का िीिाधर रूि वभ कहा

गया है..

वित्यिोडषीकाणणि और कुलचुडामिी तंत्र

में िवितत ६४ तन्त्रो में स्िान

प्राप्त आस तंत्र की महत्ता िैि साधनाओ में रही है. मै यहााँ बताना जरुरी

समझती हू की प्राच्य काल में विविध तन्त्राचायो और ऄध्येताओ ने आन मनु

वस्िवतयों से स्ि ऄध्ययन िश्चात आनके क्रमो और महत्ता कों ऄिने ऄिने

ऄनुभािों के अधार िर वनरधाररत वकया है.. सो वजतने साक्षर ईतने वभन्न

मत...

वििाविखा तंत्र की विविष्टता विि जी की ईिासना से है, ईनके ईस

स्िरूि की ईिासना है वजसे

तुम्बुरु

नाम से संवज्ञत वकया गया. वहरयदयदम

नामक िंवडत ने आसे भोले िंकर की ईिासना वििकैिल्य प्रावप्त हेतु की

िी.. वसवि के फल स्िरूि वहरयदयदम कों अवद देि विि के ईस विलक्षि

रूि ‘तुम्बरू’ के दितन हुए.. ईनका ध्यान कुछ आस् प्रकार से है वजसमे

ईनके चार मुख है. प्रत्येक मुख का एक वििेष नाम है –

१.

विरश्छेद

२.

विणाविखा

३.

सम्मोह

४.

वियोत्तर

विि जी के ऄनंत रूि ऄिने अि में एक तंत्र ऄध्याय रचते है. जैसा की

हमने विगत लेख में अरंवभक िंवक्तयों में िढ़ा िा की सृवष्ट की रचना में

(13)

संहार करता ऄनादी विि िंकर और अद्या िवक्त िराम्बा के संिाद कों तंत्र

की संज्ञा दी है और आसी सन्दभत में विि और िवक्त के ऄनंत नामो ईिनामो

िर तंत्र बने.. प्रत्येक ज्ञान खंड के एक ऄवधष्ठात्री देिी वकिां देिता

वनयुक्त हुए जो ईस विविष्ट ऄभीष्ट की िूवतत हेतु ईसका ज्ञान ऄिने अि में

समेटे हुए है. तंत्र विषय में सुगमता हेतु ईसका िगीकरि कर विवभन्न देिी

देिता के वनयंत्रि और ईसकी गुप्तता का संरक्षि ईन्ही दैिी िवक्तयों कों

सौि वदया गया.. हालांवक ये सभी दैिी िवक्त या अवद विि िवक्त का ही

ऄंिरूि है.

वििाविका तंत्र आंडोनेविया एिं कम्बोवडया में भी प्रचवलत रहा है... तिावि

ऄलग ऄलग देिो में आनकी ईिासना ििवत में वनवश्चत ही ऄंतर रहा है

िरन्तु ऄभीष्ट चौमुखी देिो के देि महादेि के दितन ही रहा.. चौमुखी

महादेि की संवगनीयो के चौ रूि भी िूजे जाते है..

जया, विजया, जयंती

और अपरावजता ...

तुम्बुरु साधना में एक विविष्ट यन्त्र स्िावित वकया जाता है.. वजसमे

तुम्बुरु ऄिातत विि मध्य में स्िावित होकर चारो ओर ईनके चौ रूिों की

िामांवगयां विराजमान होती है.. आस साधना से तीन तत्िों की प्रावप्त होती है

आत्म तत्त्ि; विद्या तत्ि; विि तत्ि

आन्ही तत्िों का प्रवतवनवधत्ि बीज मंत्रो के ईच्चारि से आनकी अराधना

ईिासना की जाती है. ५ बीज मंत्रो का समागम होता है जो तुम्बुरु ऄिातत

विि और चार देवियों के बीज मातृका है.

तुम्बुरु – क्षं (ksham)

जया – जं (Jam)

विजया – भं (Bham)

जयंती – सं (Sam)

ऄिरावजता – हं (Ham)

(14)

ऄनुमवत ना होने के कारि अगे की आनकी गुप्त विवध केिल ईसी साधक

के समक्ष खुलती है वजसे आसे करने की अज्ञा या ऄनुमवत प्राप्त हो..

गुह्यतम तंत्र साधनाए केिल गुरुमुखी िरंिरा से ही दी जाती अ रही है..

क्युकी ये वनवश्चत ही सभी के वलए नहीं हो सकती.. क्युकी एसी साधनाओ

कों करने की मानवसकता ही बहुत ऄलग होती है.. गुरु कों वभ देखना

होता है की ऄभी मेरा विष्य ईस गुढ़ सत्य कों िचाने के योग्य बना है के

नहीं, ये देख िरख कर ही ईसकी मानस वस्िवत मानस में ईठने िाली

तरंगों से ये वनधातररत होता है की ईसे ईस साधना कों देना हे के नहीं.. जेसा

की मेने कहा की तंत्र कोइ खेल या मजाक का विषय नहीं.. जीिन िर वभ

बन अ सकती हे.. आसीवलए सािधान मुद्रा में ही एसी साधनाए संिन्न की

जा सकती है..

ऄगले लेख में कुछ एसे ही रोचक एिं गुढ़ तथ्यों के साि िुनः अिसे

मानवसक िातात करुाँगी...

वनवखल प्रिाम

****सुिणाण विवखल****

****NPRU****

Posted by Nikhil at 12:47 AMNo comments: Labels: MY VIEW, TANTRA DARSHAN

Sunday, December 16, 2012

(15)

At the time of inception of universe, Tridev (Trinity of Hindu Gods)

in order to ensure smooth functioning of universe had framed

hidden solutions for each riddle/problem/curiosity………..In other

words, we can say that riddles were created so that those hidden

solutions/creation can occur in universe for first time and pave the

way for writing novel chapter. And these hidden creations are

often addressed by us as answer to question or key to lock. In

intellectual terms, it has been termed as

Tantra.

Tantra, one such scripture, which was established as treasure of

Hindu Religion in entire world. It paved the way for sadhna and

upasana by different padhatis (sects).Tantra had emerged before

inception of universe…..As it has been said above that answer to

(16)

any question was pre-decided or in other words , questions

originated during course of manifestation of answers.

Tantra scripture is primarily divided into two categories

Aagam

and Nigam

….Besides it; it was also divided into categories like

Yaamal, Daamar, and Uddish etc. And to add to it, many

sub-tantras also got established. At such occasion, in ancient time

itself, ancient sages, saints, great Tantra Acharyas, before

hand-written Manu Smritis had predicted for Kalyuga that

“In Kalyuga,

no shastra except Aagam and Nigam of Tantra will be left

meaningful to resolve the complex intricacies of life”

To live in Kalyuga, Tantra will be established as one and only best

path. For this reason, Tridev took birth as various avatars in order

to keep this genre of knowledge alive, which is getting obsolete.

And when the condition again become unsteady, Param

Vandaniya

Shri Nikhileshwaranand Ji

took birth in householder

form of

Dr. Narayan Dutt Shrimali

in order to revive and

re-establish it and has again provided breath to this genre…..I

always remember one of his teaching that

SAB KAHE POTHAN

KI DEKHI PAR MAIN KAHU AAKHAN KI DEKHI

….( Knowledge is

not in books, rather it lies in our experiences)…..He not only stood

up as saviour of Mantra Tantra Yantra or Ittar science but also

was creator of Mantra Tantra Yantra in Kalyuga…..He has got

innumerable aspects about which it can be written here. But lack

(17)

of space does not allow me to do so. He created living scriptures

and today also his chosen diamond pearls are distributing his

knowledge in selfish-less manner.

So all the scriptures which are available today, are capable of

maintaining the dignity of Tantra Shastra in today’s difficult

circumstances or in other words this era of negligence of

religion………Quote of Bhagwat Gita is completely fruitful when

we try to understand the reason behind manifestation of

Sadgurudev Ji.

From ancient times, many sects have been established in course

of successive evolution of Tantra….Though seen from outer

context; all sects are worshipper of Shiv and Shakti only.

Therefore all the scriptures which were written are based on

Shaktaagam and Shaivaagam only. Only padhati differs, fruits of

upasana remains same…..In other words, destination has always

remain the same i.e. merging with supreme Brahma but various

paths have been deployed. Human has always remain creative

and this creativity has inspired him to give rise to multiple

sects……he always wish to attain state of being unparalleled and

this has been his inspiration power also. So some of name of

sects are as follows-

1. Kaul Maarg, which has also been called Kul Maarg or Kaul Mat.

2. Paashupat Maarg

(18)

3. Laakul Maarg

4. Kaalanal Maarg

5. Kaalmukh Maarg

6. Bhairav Sect

7. Vaam Sect

8. Kapaalik Sect

9. Som sect

10. Mahavrat Sect

11. Jangam Sect

12 Kaarunik or Kaarunk Maarg

13. Siddhant Maarg which has also been called Raudra Maarg

14. Siddhant sect Shaiva Maarg.

15. Rasheshwar Sect

16. Nandikeshwar Sect

17. Bhatt Maarg

Out of the above said Maargs, some paths were more in

vogue….meaning that numbers of followers following these paths

were more……but with passage of time, some one maarg was

boycotted and sometimes the other…..that’s why for getting

recognition, new sects appeared as a result of amalgamation of

many sects…….some path resorted to be propagated in hidden

manner, which are now only carried out by Guru Tradition….

(19)

Question arises why at all need of so many sects when one

Maarg can yield desired results? But one aspect has always been

worth considering that best maarg out of all upasana maarg can

be certified only when you have resorted to all paths and

experienced corresponding sadhna journey. But then result of

every person may vary. Because opinion differs with the person…

Now second aspect can be that when ancient Tantra acharyas

mixed the Padhatis of sects then they would have found results to

be quick, very influential and timely too….

For example, disciple of any sect requesting for Tantra knowledge

from Guru of another sect.Guru always searches for able and

eligible disciples. Then how one Guru can ignore if he finds

suitable person…..After testing, Guru does Shaktipaat and carry

out the Guru tradition of that particular sect. And based on this

knowledge, disciple creates a new chapter….And such

combination of principles of two sects have written a chapter of a

new sect…This is not necessary that all disciples did that. Only

1-2 in thousands were able to write such history…

In this manner, I will try to present hidden information about

Tantra in next article again….

(20)

========================================

जब सृष्टि की उत्पष्टि हुई तब ष्टिदेव ने सृष्टि के सुगम सञ्चालन के ष्टलए प्रत्येक पहेली

के समाधान की एक गुप्त रचना कर रखी है... या यु कहे की पहेली की रचना ही

इसीष्टलए हुई की वो गुप्त रचना सृष्टि में प्रथम बार घटित हो कर एक अध्याय रचने

के ष्टलए तैयार हो सके. और इष्टस गुप्त रचना कों हम प्रश्न का उिर या ताले की कुुंजी

कह कर भी सुंबोष्टधत करते है. और साक्षर पाुंष्टित्य शब्दों में इसे

तुंि

की सुंज्ञा दी

गई..

तुंि, एक ऐसा शास्त्र जो समस्त हहदू धमं का ष्टवश्वकोष बन कर स्थाष्टपत हुआ. जहा

ष्टवष्टभन्न पद्धष्टतयों से साधना और उपासना का मागग प्रशस्त हुआ. तुंि की उत्पष्टि

सृष्टि के उत्पष्टि से पहले ही हो चुकी थी.. जेसा की उपरोक्त कथुं में कहा है की ककसी

ष्टभ प्रश्न का हल पहले से ही ष्टनयोष्टजत है या दूसरे शब्दों में हल के प्रकिीकरण में ही

प्रश्न की उत्पष्टि हुई.

तुंि शास्त्र मुख्य रूप से

आगम और ष्टनगम

इन दो श्रेष्टणयों में ष्टवभाष्टजत है... इन के

आलावा यामल, िामर, उष्टिश आकद नामो के वगग में ष्टभ ष्टवभाष्टजत हुए और साथ

ही साथ उपतुंि ष्टभ स्थाष्टपत हुए. इस उपलक्ष में प्राचीन काल में ही ऋष्टष मुष्टन

महान तुंिाचायो ने हस्त ष्टलष्टखत मनु स्मृष्टतयों में पूवग से ही काली काल के ष्टलए

भाष्टवष्टययत कर कदया था की

“काली काल में तुंि की आगम ष्टनगमता के वैष्टतटरक्त

अन्य कोई शास्त्र पयागय स्वरूप शेष नहीं रहेगा जीवन की ष्टवकिता से ष्टनपिने के

ष्टलए”

काली काल अथागत कष्टलयुग में जीष्टवत रहने के ष्टलए तुंि ही एकमेव श्रेष्ठ मागग

स्थाष्टपत होगा और इसी कारण ष्टवलुप्त होती इस ष्टवधा के जैसे अब तक ष्टिदेवो ने

ष्टवशेष नायक स्वरूप अवतटरत होकर इसकी काि सुंसार कों दी...और जब किर

ष्टस्थष्टत के ष्टवचल होते ही इसी के पुनः सुंस्मरण और स्थापन के ष्टलए परम वन्दनीय

श्री ष्टनष्टखलेश्वरानुंद जी

का अवतरण पूजनीय

िॉ. नारायण दि श्रीमाली जी

के

गृहस्थ रूप में हुआ और उन्होंने पुनः इस ष्टवधा कों एक नया श्वास प्रदान ककया

है...उनकी एक सीख हमेशा याद रहती है की

सब कहे पोथन की देष्टख पर मै कहू

आखन की देष्टख

... वे मुंि तुंि यन्ि या इतर ष्टवज्ञान के ना केवल रक्षक के रूप में खड़े

हुए अष्टपतु वे इस काली काल के मुंि तुंि यन्ि के सृिा ष्टभ हुए... उनके अनष्टगनत

पक्ष है ष्टजस पर यहााँ ष्टलखा जा सकता बस जगह कम पड़ती जायेगी. उन्होंने

(21)

जीष्टवत जागृत ग्रन्थो का ष्टनमागण ककया और आज भी ऐसे तराशे हुए हीरक खुंि उस

ताजगी कों ष्टनस्वाथग भाव से उस ज्ञान गुंगा कों ष्टवतटरत करते जा रहे है...

तो जो ष्टभ ग्रन्थ आज उपलब्ध है वे आज की ष्टवकि पटरष्टस्थष्टत या यु कहू की

धमगग्लानी के इस काल में भी तुंि शास्त्र का गौरव अक्षुण्ण बनाये रखने में समथग है...

भगवदगीता का कथन पूणग रूपें साथगक होता है जब हम सदगुरुदेव जी के अवतरण

के कारण कों समझने की चेष्ठा करते है.

तुंि अनुगमनता में प्राचीन काल से ष्टवष्टभन्न सुंप्रदायों की स्थापना की.. हालााँकक

बाह्य पटरप्रेक्ष्यता से देखे तो सभी सम्प्प्रदाय ष्टशव शष्टक्त के ही उपासक है.. इसष्टलए

ष्टजतने शास्त्र ष्टलखे गए वे शाक्तागम और शैवागम पर ही ष्टनधागटरत है. केवल पद्धष्टत

अलग होती है परन्तु उपासना िल एक सा ही होता है... अथागत गुंतव्य सदा से एक

ही रहा है उस ब्रम्प्ह का साक्षात्कार परन्तु मागग ष्टवष्टभन्न रहे है. मनुष्य सदा से

सजगनशील रहा है और वही रचनात्मकता उसे एक से दो, दो से तीन सुंप्रदायों कों

रष्टचत करने के ष्टलए प्रेटरत करती रही.. वह सदा से अष्टितीयता कों प्राप्त करना

चाहता रहा है और यही उसकी प्रेरक शष्टक्त ष्टभ रही है. तो यहााँ में सुंप्रदायों के

यथासम्प्भव प्राप्त ष्टवष्टभन्न नाम कुछ इस प्रकार से है –

१.

कौल मागग ष्टजसे कुल मागग कौल मत ष्टभ कहा जाता है.

२.

पाशुपत मागग

३.

लाकुल मागग

४.

कालानल मागग

५.

कालमुख मागग

६.

भैरव मत

७.

वाम मत

८.

कापाष्टलक मत

९.

सोम मत

१०.

महाव्रत मत

११.

जुंगम मत

१२.

कारुष्टणक या कारुुंक मागग

१३.

ष्टसद्धाुंत मागग ष्टजसे रौद्र मागग भी कहा गया है

१४.

ष्टसद्धाुंत मत शैव मागग

१५.

रासेश्वर मत

(22)

१६.

नुंकदकेश्वर मत

१७.

भट्ट मागग

उपरोक्त मागो में से कुछ मागग बहुत ही प्रचाष्टलत रहे.. मतलब की उस मागग कों

अनुगमन करने वाले साधक की तादाद ज्यादा रही... परन्तु काल के िेर में कभी

कोई मागग बष्टहष्कृत होता तो कभी कोई.. इसी के चलते मान्यता प्राष्टप्त हेतु बहुत से

मतों का ष्टमश्रण होकर नए मतों का अवतरण ष्टभ होता गया.. कुछ मागग बहुत ही

गुप्त रूप से अवलुंष्टबत होने लगे थे. जो केवल गुरुमुखी परम्प्परा में ही चलते है अब...

प्रश्न ये उद्भष्टवत होता है की इतने ष्टवष्टवध मत मागग क्यों? जब एक ही मागग से

अभीि की प्राष्टप्त हो सकती है. लेककन एक पक्ष ष्टवचारणीय हबदु यही रहा है की

उपासना मागग में सबसे श्रेष्ठ मागग तभी प्रमाष्टणत हो सकता है जब आपने सभी मागो

कों अवलुंष्टबत कर प्रत्येक साधना यािा कों अनुभूत ककया हो.. और उसी के आधार

पर इसका ष्टनष्कषग सुंभव है. परन्तु किर प्रत्येक का ष्टनष्कषग ष्टभन्न हो सकता है.

क्युकी व्यष्टक्त ष्टभन्न तो मत भी ष्टभन्न...

अब दूसरा पक्ष कुछ इस प्रकार से हो सकता है की प्राचीन तुंिाचायो ने जब

सुंप्रदायों की पद्धष्टतयों कों ष्टमष्टश्रत ककया तो उसके पटरणाम तीव्र एवुं अत्युंत

प्राभावी ष्टमले और समय अनुरूप ष्टभ...

जैसे ककसी सम्प्प्रदाय के गुरु के पास अगर दूसरे सम्प्प्रदाय के ष्टशष्य ने तुंि ज्ञान की

याचना की. सुपाि ष्टशष्य कों गुरु स्वयुं ढूढते है तो ष्टमलने पर नाकारा कैसे जा

सकता है.. परीष्टक्षत होने पर गुरु उसे शष्टक्तपात कर उस सम्प्प्रदाय की गुरु परुंपरा

कों ष्टनवागष्टहत करते है. और उसी ज्ञान के आधार पर ष्टशष्य एक नष्टवन अध्याय रचते

है.. और दो सुंप्रदायों का उनके ष्टसद्धाुंतों का कुछ इसी तारह मेल एक नए सम्प्प्रदाय

के अध्याय कों जन्म देता रहा..यहााँ जरुरी नहीं की सभी ष्टशष्यों से यह होता रहता

हज़ारो में से इक्का दुक्का ही इस इष्टतहास के रचष्टयता बने...

इसी प्रकार तुंि की गुह्य से गुह्य जानकारी कों पुनः अगले लेख में प्रस्तुत करने के

प्रयास जरुर करती रहूुंगी सो आज यही ष्टवराम देती हू,,,,,,,

(23)

Dear Brothers and my sisters,

Jai Sadgurudev,

Festival of Diwali is going to come or in other words we

are in Sankranti Kaal (intermediate time interval

between two events) of this great festival. And shastra

says that Sankranti Kaal in itself contains many amazing

powers in hidden manner. What is needed is to bhedan

of them through weapon of knowledge.

This great festival has those secrets embedded in it this

time which can be only an imagination for high-level

sadhaks. I pretty well have the personal experience how

Sadgurudev used to direct us to do intense sadhna of

(24)

Holi and Deepawali festival in shamshaan and how we

used to pass through titillating experiences and reach our

milestone….yes all these are only milestone. This thing

applies to all sadhnas even Mahavidya sadhna.

Then…..

Then….

What is our aim??????

Aim……

Our aim is to imbibe the secretiveness of these milestones

inside us…imbibing them , filling ourselves with universal

consciousness and imbibing that Param Tatv (supreme

element) inside us ……which has been described by vedas

and scriptures as Neti Neti….and has been called Nikhil

Element….which cannot be described and whose

elucidation is not possible…..

But way to attain it goes through these procedures of

Tantra or it passes through abstruse procedure of

complete dedication……

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