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लशशुगवत िारमथक लोक रचनाएँ गवत फ़िलमो से मॉरवशस का लहनदव काव शाशत काव ववलडयो लवभाग मराठव राजस्ानव उतर पदेश के कलव छतवसगढ़ के कलव लबहार के कलव मधय पदेश के कलव राजस्ान के कलव लहमाचल पदेश के कलव मुखपृष हाल मे हए बदलाव महतवपूिथ कलड़यां नए जुड़े पनो की सूचव कोई भव एक पना चौपाल कॉपवराइट के बारे मे लॉलगन करे िाइल अपलोड करे कलवता कोश लवजेट मवलडया मे कलवता कोश » अनय भाषाओ से » पादेलशक कलवता कोश » अनय महतवपूिथ पने » अनय पने हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है, हम अपनव छत पे जो लचलड़यो का जत्ा छोड़ आए है । हमे लहजरत की इस अनिव गुिा मे याद आता है, अजनता छोड़ आए है एलोरा छोड़ आए है । सभव तयोहार लमलजुल कर मनाते ्े वहाँ जब ्े, फ़दवालव छोड़ आए है दशहरा छोड़ आए है । हमे सूरज की फ़करने इस ललए तकलवि देतव है, अवि की शाम काशव का सवेरा छोड़ आए है । गले लमलतव हई नफ़दयाँ गले लमलते हए मजहब, इलाहाबाद मे कैसा नजारा छोड़ आए है । हम अपने सा् तसववरे तो ले आए है शादव की, फ़कसव शायर ने ललकखा ्ा जो सेहरा छोड़ आए है । कई आँखे अभव तक ये लशकायत करतव रहतव है, के हम बहते हए काजल का दररया छोड़ आए है । शकर इस लजसम से लखलवाड़ करना कैसे छोड़ेगव, के हम जामुन के पेड़ो को अकेला छोड़ आए है । वो बरगद लजसके पेड़ो से महक आतव ्व फूलो की, उसव बरगद मे एक हररयल का जोड़ा छोड़ आए है । अभव तक बाररसो मे भवगते हव याद आता है, के छपपर के नवचे अपना छाता छोड़ आए है । भतवजव अब सलवके से दुपटा ओढ़तव होगव, वहव झूले मे हम लजसको हमड़ता छोड़ आए है । ये लहजरत तो नही ्व बुजफ़दलव शायद हमारव ्व, के हम लबसतर मे एक हडव का ढाचा छोड़ आए है ।
हमारव अहललया तो आ गयव माँ छुट गए आलखर, के हम पवतल उठा लाये है सोना छोड़ आए है । महवनो तक तो अममव खवाब मे भव बुदबुदातव ्ी, सुखाने के ललए छत पर पुदवना छोड़ आए है । वजारत भव हमारे वासते कम मतथबा होगव, हम अपनव माँ के हा्ो मे लनवाला छोड़ आए है । यहाँ आते हए हर कीमतव सामान ले आए, मगर इकबाल का ललखा तराना छोड़ आए है । लहमालय से लनकलतव हर नदव आवाज देतव ्व, लमयां आओ वजू कर लो ये जूमला छोड़ आए है । वजू करने को जब भव बैठते है याद आता है, के हम जलदव मे जमुना का फ़कनारा छोड़ आए है । उतार आये मुरववत और रवादारव का हर चोला, जो एक सािू ने पहनाई ्व माला छोड़ आए है । जनाबे मवर का दववान तो हम सा् ले आये, मगर हम मवर के मा्े का कशका छोड़ आए है । उिर का कोई लमल जाए इिर तो हम यहव पूछे, हम आँखे छोड़ आये है के चशमा छोड़ आए है । हमारव ररशतेदारव तो नही ्व हाँ ताललुक ्ा, जो लकमव छोड़ आये है जो दुगाथ छोड़ आए है । गले लमलतव हई नफ़दयाँ गले लमलते हए मजहब, इलाहाबाद मे कैसा नाजारा छोड़ आए है । कल एक अमरद वाले से ये कहना गया हमको, जहां से आये है हम इसकी बलगया छोड़ आए है ।
वो हैरत से हमे तकता रहा कुछ देर फ़फर बोला, वो संगम का इलाका छुट गया या छोड़ आए है। अभव हम सोच मे गूम ्े के उससे कया कहा जाए, हमारे आनसुयो ने राज खोला छोड़ आए है । मुहरथम मे हमारा लखनऊ इरान लगता ्ा, मदद मौला हसैनाबाद रोता छोड़ आए है । जो एक पतलव सड़क उनाव से मोहान जातव है, वहवँ हसरत के खवाबो को भटकता छोड़ आए है । महल से दूर बरगद के तलए मवान के खालतर, ्के हारे हए गौतम को बैठा छोड़ आए है । तसललव को कोई कागज भव लचपका नही पाए, चरागे फ़दल का शवशा यूँ हव चटखा छोड़ आए है । सड़क भव शेरशाहव आ गयव तकसवम के जद मै, तुझे करके लहनदुसतान छोटा छोड़ आए है । हसी आतव है अपनव अदाकारव पर खुद हमको, बने फ़फरते है युसूफ और जुलेखा छोड़ आए है । गुजरते वकत बाजारो मे अब भव याद आता है, फ़कसव को उसके कमरे मे संवरता छोड़ आए है । हमारा रासता तकते हए प्रा गयव होगव, वो आँखे लजनको हम लखड़की पे रखा छोड़ आए है । तू हमसे चाँद इतनव बेरखव से बात करता है हम अपनव झवल मे एक चाँद उतरा छोड़ आए है । ये दो कमरो का घर और ये सुलगतव पजंदगव अपनव, वहां इतना बड़ा नौकर का कमरा छोड़ आए है ।