सामान्य भिव य काल (लृ ); धातुओं के से और अिन वगर्); कतृर्वाच्य के कृ त्यय; त्वा, य त्यय, ‘चतुर:
वानर:’ कथा।
16.1 िकर्. सामान्य भिव य काल (लृ लकार): अब तक हमने चार गण की धातुओं के ल , लङ्, लो और िविधिलङ्
के लकार म रूप पढ़े ह। अब हम सामान्य भिव य काल के रूप सीखगे। सं कृत म दो कार के भिव य काल ह।
इनम से एक दूरवतीर् भिव य है और दूसरा सामान्य भिव य । दूरवतीर् भिव य का योग सुदूर भिव य म होने वाले
कायर् के िलए होता था। सामान्य भिव य काल का योग भिव य म होने वाली िकसी भी घटना के िलए हो सकता
है। सामान्य भिव य और दूरवतीर् भिव य के योग का यह भेद बाद म ाय: समा हो गया।
िट पणी:ऱ सं कृत िकर्याओं का दस गण म िवभाजन केवल ल , लङ्, लो और िविधिलङ् के पर मैपद और आत्मनेपद पर ही लागू होता है। इन चार को सि मिलत रूप म ‘सावर्धातुक लकार’ कहा जाता है। अन्य सभी लकार म सभी गण की धातुओं को एक-समान समझा जाता है।
16.2 िकर्. धातुओं के से और अिन वगर्:ऱ यहा ँ सं कृत की धातुओं के एक अन्य महत्वपूणर् भेद पर भी ध्यान देना आव यक है। सावर्धातुक लकार बनाने के िलए कुछ धातुओं के साथ त्यय से पूवर् -इ जोड़ा जाता है इन्ह से धातु कहते ह जबिक कुछ धातुओं के साथ -इ नहीं जोड़ा जाता अथार् इनम त्यय सीधे धातु के साथ जुड़ते ह। इनम से पहले वगर् को से
वगर् दूसरे वगर् को अिन वगर् कहते ह। कुछ धातुएँ ऐसी भी ह जो से और अिन दोन वग की ह। इन्ह वे (िवक प से
इ ) कहते ह क्य िक इनम िवक प से इ जुड़ता है।
16.3 िकर्. लृ लकार (सामान्य भिव य काल) के पर मैपद और आत्मनेपद के अन्त्य त्यय नीचे िदए गए ह।
वतर्मान काल के अन्त्य त्यय से इनम केवल इतना ही अन्तर है िक इनम अन्त्य त्यय से पूवर् - य जुड़ जाता है:ऱ
पर मैपद आत्मनेपद
एकवचन ि वचन बहुवचन एकवचन ि वचन बहुवचन
थम पु. -
यित
-यत:
-यिन्त
-यते
-येते
-यन्ते
मध्यम पु. -
यिस
-यथ:
-यथ
-यसे
-येथे
-यध्वे
उ म पु. -
यािम
-याव:
-याम:
-ये
-यावहे
-यामहे
16.4 िकर्. लृ लकार बनाने के िलए नीचे िलखे िनयम लागू होते ह:
क) यिद से पहले अ या आ से िभ कोई वर हो तो म बदल जाता है (देिखए पाठ 9.2)।
ख) लृ लकार के अन्त्य त्यय से पहले धातु के अंितम वर को और मध्यवतीर् (दो यंजन के बीच आने वाले) व वर को गुण हो जाता है, जैसे:- िलख् का लेख्, और िज का जे हो जाता है।
ग) दसव गण की धातुओं के अ का रूप वैसा ही रहता है
घ) से धातुओं म धातु के साथ इ जुड़ता है। चुरािद गण की सभी धातुएँ से ह इसिलए इनके अंितम अ का इ हो जाता है। िलख् धातु से है, इसिलए गुण होकर और इ जोड़ने के बाद यह लेिख हो जाती है।
43
¦ÉÉ®úiÉ-ºÉÆvÉÉxÉ, +ÆEò-14, ʺÉiɨ¤É® 2012
िलख् धातु के लृ लकार के रूप िन िलिखत ह:
एकवचन ि वचन बहुवचन
थम पुरुष
लेिख यित लेिख यत: लेिख यिन्त
मध्यम पुरुषलेिख यिस लेिख यथ: लेिख यथ
उ म पुरुषलेिख यािम लेिख याव: लेिख याम:
पा धातु अिन है। इसके साथ भिव य काल के अन्त्य त्यय सीधे जुड़ते ह। इसके सामान्य भिव य काल के रूप आगे िदए गए ह:-
एकवचन ि वचन बहुवचन
थम पुरुष
पा यित पा यत: पा यिन्त
मध्यम पुरुषपा यिस पा यथ: पा यथ
उ म पुरुषपा यािम पा याव: पा याम:
16.5 िकर्. आइए अब हम लृ लकार के अिधक योग म आने वाली कुछ धातुओं के थम पुरुष, एकवचन के लृ
लकार के रूप देख:ऱ
क) िन िलिखत धातुएँ से ह (इनम अन्त्य त्यय जुड़ने से पूवर् इ जुड़ता है):
क
(कथ )ऱ
कथिय यितकृ (कर्) ऱ
किर यितकर्ी ऱ
कर्ीिड यितखा ऱ
खािद यितग
ऱ
गिम यितच ऱ
चिल यितचुर् (चोर
)ऱ
चोरिय यितप ऱ
पिठ यितप ऱ
पित यितभू (भ
)ऱ
भिव यितमन्तर् (मन्तर्
)ऱ
मन्तर्िय यतेमु ऱ
मोिद यतेरुच् ऱ
रोिच यतेिलख् ऱ
लेिख यितवृ
(व र्)ऱ
विर्ध यतेमृ ( मर्) ऱ
मिर यितख) िन िलिखत धातुएँ अिन ह। इनम अन्त्य त्यय जुड़ने से पूवर् इ नहीं जुड़ता:
गै
ऱ
गा यितिज ऱ
जे यितदा ऱ
दा यितदृ
ऱ
दर् यितनी ऱ
ने यितपच् ऱ
प यितपा ऱ
पा यितच्छ ऱ
यितम ऱ
मं यतेल ऱ
ल यतेसृ
ऱ
यितथा ऱ
था यित16.6 अ. नीचे िदए वाक्य को पिढ़ए और उनका िहन्दी म अनुवाद कीिजए:
1. ते अ
साय
1 अ माकंगृह आगिम यिन्त। 2. वयं तै: सह :
2नगर य दशर्नीयािन
3थानािन दर् याम:।
3. त्वं : िंक किर यिसय़ 4. अहं :
वकक्षाया: अन्यै: बालकै: सह कर्ीिड यािम। 5. यूय
अमेिरकादेशा त यैिक
आने यथय़ 6. वयं त यै बहूिन व तूिन आने याम:। 7. तासा ं बािलकाना ं िपता ता: रिववारे कुतर् ने यितय़ 8. स: ता: रिववारे जन्तुशाला ं4 ने यित। 9. यूयम िंक खािद यथय़ 10. वयम केवलं दुग्धं पा याम:। 11. वयंसं कृत पाठ-16
44
¦ÉÉ®úiÉ-ºÉÆvÉÉxÉ, +ÆEò-14, ʺÉiɨ¤É® 2012
सव अ
सं कृत य नवीनं पाठं पिठ याम: 12. तर्याणा ं मासाना ं प ा 5 वृक्षे य: पतर्ािण पित यिन्त। 13. राितर्:गिम यित भिव यित सु भात
6। 14. शा ाणा ं
पठनेन अ माकंानं विर्ध यते। 15. वयं पिर मेण धनं ल यामहे।
(श दाथर्: 1. शाम को, 2. (आनेवाला) कल, 3. देखने लायक, 4. िचिड़याघर, 5. के बाद, 6. सुहाना सबेरा, कभी-कभी ात:कालीन नम कार के िलए भी इसका योग होता है।)
16.7 िकर्. कृ त्यय: अब तक हमने धातुओं से बनने वाले ऐसे ही श द देखे ह जो वाक्य म िकर्या का काम करते ह।
हमने देखा है िक िकस कार प धातु से पठित, पठतु, अपठ , पठेयु:, प ते आिद रूप बनते ह जो िविभ लकार म िविभ पुरुष और वचन के साथ अिन्वत होते ह। ये िकर्यारूप धातु के साथ -ित, -त:, -अिन्त; -ते, -ईते, -अन्ते
आिद अन्त्य त्यय से िमलकर बनते ह। इन त्यय को सं कृत याकरण म ितङ् त्यय कहते ह और इनके योग से बनने वाले श द को ितङन्त कहते ह। इनके अितिर सं कृत म धातुओं से बननेवाले अन्य बहुत-से श द ह जो
वाक्य म यु होते ह। ये श द िजन त्यय के योग से बनते ह उन्ह कृ त्यय कहा जाता है और उनके योग से
बनने वाले श द को कृदन्त श द कहते ह। इस पाठ म हम एक महत्त्वपूणर् कृ त्यय त्वा/य का पिरचय ा करगे।
कृ त्यय त्वाऱ यिद वाक्य म एक ही कतार्, समािपका िकर्या ारा बताए जाने वाले कायर् से पूवर्, एक या एक से
अिधक कायर् कर रहा हो तो पहले होनेवाले कायर् को बताने के िलये त्वा कृ त्यय का योग होता है, उदाहरणाथर्:
स: भोजनं कृत्वा मणाय अगच्छ ऱ उसने भोजन िकया और वह घूमने गया। इस वाक्य म भोजन करने का काम घूमने जाने से पहले हो रहा है, अत: उसे बताने के िलए कृ धातु के साथ त्वा त्यय का योग हुआ है।
से वगर् की धातुओं म त्वा से पहले इ जुड़ता हैऱ सा ा पिठत्वा तेषा उ रािण च िलिखत्वा अध्यापक य समीप अगच्छ ऱ वह को पढ़कर और उनके उ र को िलखकर अध्यापक के पास गई। इस वाक्य म मुख्य
िकर्या से पहले दो कायर् हो रहे ह, इसिलए उन्ह बताने के िलए पिठत्वा और िलिखत्वा का योग हुआ है। एक और उदाहरण देिखए: चौर: बहूिन व तूिन चोरियत्वा गृहा बिह: अगच्छ ऱ चोर बहुत-सी चीज़ चुराकर घर से बाहर चला
गया। पिठत्वा, िलिखत्वा, चोरियत्वा श द से धातुओं से बने ह, इसिलए इनको बनाते समय धातु के साथ इ जुड़ गया
है। त्वा जुड़ने पर धातुओं के अिन्तम नािसक्य यंजन का लोप हो जाता है जैसे: ग + त्वा = गत्वा। नीचे त्वा त्यय से बनने वाली िकर्याओं के कुछ उदाहरण देिखए:
क
+ त्वा = कथियत्वा (कहकर)कर्ी
+ त्वा = कर्ीिडत्वा (खेलकर)ग
+ त्वा = गणियत्वा (िगनकर)ग
+ त्वा = गत्वा (जाकर)प
+ त्वा = पिठत्वा (पढ़कर)ु + त्वा =
ुत्वा (सुनकर)मृ + त्वा = मृत्वा (
मरण करके)दृ
+ त्वा = दृ ा (देखकर)यिद धातु से पूवर् कोई उपसगर् हो तो त्वा के थान पर य का योग होता है। जो धातुएँ व वरा ंत होती ह अ के
बाद य से पहले भी जुड़ता है:
अनु + भू + य = अनुभूय (अनुभव करके) आ + दा + य = आदाय (लेकर)
आ + रु + य = आरु (चढ़कर)
+ तु + य = तुत्य ( तुत करके)
िव + िज + य = िविजत्य (जीतकर)
िट पणी:- और म अंत होने वाली धातुओं म और यंजन का िवक प से लोप हो जाता है: जैसे:- आ + ग
= आग य, आगत्य; (आकर) + न = ण य, णत्य ( णाम करके)।
16.9 अ. नीचे िदए वाक्य को पिढ़ए और उनका िहन्दी म अनुवाद कीिजए:
1.
स: पूजा ं कृत्वा भोजनं करोित। 2. अहं िकि कालं िमत्वा गृह आगिम यािम। 3. सैिनका:
अ ा
आरु युध्दं कुवर्िन्त। 3. िमतर्ै: सह कर्ीिडत्वा मोहन: अमोदत। 5. स: अतर् आगत्य मा अिमल । 6.सैिनका: शतर्ू
िविजत्यवदेशमागच्छ । 7. त य कथनं ुत्वा सव अहस ।
सं कृत पाठ-16
45
¦ÉÉ®úiÉ-ºÉÆvÉÉxÉ, +ÆEò-14, ʺÉiɨ¤É® 2012
16.10 प. नीचे दी गई कहानी को पिढ़ए और उसका िहन्दी म अनुवाद कीिजए:
चतुर: वानर:
एक या: न ा: तटे एक: िवशाल: ज बुवृक्ष:
1आसी । ति म वृक्षे बहव: वानरा: वसिन्त म। वृक्ष य फलािन अित मधुरािण आस । वानरा: तािन फलािन ितिदन
अखाद । न ा एक: मकर:2वजायया
3 सहअवस । स: मकर: ितिदनं न ा: तटे ज बुवृक्ष य अध:
4 आगच्छ । ततर् एक: वानर: त य िमतर् अभव । स:वानर: मकराय बहूिन ज बुफलािन अयच्छ । मकर: कािनिच
फलािनवय अखाद कािनिच
चवजायायै
अनय
5। तािन मधुरािण फलािन त य जायायै अतीव अरोचन्त
6।
एकदा
7मकर य जाया त अकथय
-तव िमतर्ं वानर: तु ितिदनं बहूिन ज बुफलािन खादित।
अत: त य हृदय
अित मधुरं भवे । अहं तव िमतर् य हृदयं खािदतु 8 इच्छािम। यिद त्वं त य हृदयं म ं नआने यिस, तिर्ह
9 अहं न जीिव यािम।(श दाथर्:- 1. जामुन का पेड़, 2. मगरमच्छ, 3. जाया- प ी ; 4. नीचे; 5. ले जाता था; 6. अच्छे लगते थे; 7.
एक बार; 8. खािदतु इच्छािमऱ खाना चाहती हूँ, 9. तो)