YAKSHINI
1.
(
यक्षिणीक्षिणी साधना की उपयक्षोगिणीगिता...)
िणीविगित पोगस्ट मे हमने अप्सरा साधनाओ के बारे मे कुछ बातों /तथ्यक्षों पर िणीविचार िणीविमशर िणीकयक्षा . जोग हम मे से सभी जानते ही है ,उनकोग एक जगिह िलिखने का यक्षही अथर था की एक बार िणीफिर से उन साधनाओ के बारे मे हम अपना मानस धनात्मक बनाए .. इसी क्रम मे .यक्षिणीक्षिणी , िणीकन्नरी और विश्यक्षंकरी विगिर की साधनाए सामने आई . शायक्षद एक प्रश्न उठता हैिणीक जब सदगिुरुदेवि जी ने सारी बाते सामने रखी तोग िणीफिर अब यक्षह सेमीनार का अथर क्यक्षा ..??? इस प्रश्न के एक भागि के उत्तर पर हम सभी िणीविचार कर ही चुके है की ...िणीबना गिोगपनीयक्ष तथ्यक्ष जाने ..आविश्यक्षक िणीक्रयक्षाए समझे ...इन साधनाओ मे सफिलिता पाना??? ..एक मृगि मरीिणीचका ही है ....एक सामान्यक्ष साधक के िलिए संभवि सा नही है ....यक्षह ठीक ऐसे की िणीबना अस्त्र के यक्षुद्ध लिड़ना ..और जीत जाना ..कहािणीनयक्षोग मे तोग शायक्षद संभवि होग पर साधना जगित मे ...पर इसके साथ एक दूसरा पहलिु भी है .कुछ विगिर की साधनाए..सदगिुरुदेवि जी ने केबलि उल्लेख ही िणीकयक्षा जैसे अष्ट यक्षिणीक्षिणी साधना ...िजसमे एक साधक जोग उज्जैन और कामाख्यक्षा मे जा कर ...उन्होंने कैसे की ..पर उन साधना का केबलि उल्लेख ..िजन भी भाई बिणीहनों ने विह साधना पेकेट्स मगिविायक्षा उनमे से कुछ कोग ही विह साधना और उसकी िणीवििध भेजी गियक्षी .पर उस दुलिरभ साधना का िणीविधान अब ... ठीक इसी तरह एक साथ अनेकोग अप्सरा एक साथ िसद्ध करने का िणीविधान आप मे से िजन्होंने सदगिुरुदेवि रिणीचत सािणीहत्यक्ष पढ़ा होगगिा तोग जानते होगगिे की ब्रम्ह ऋषिणीषि िणीविस्विािणीमत्र द्वारा रिणीचत विह अदुत िणीविधान िजसके माध्यक्षम से एक नही बि ल्क अनेकोग अप्सरायक्षे एक साथ एक ही साधना मे िसद्ध की जा सकती है अब कहाँ उपलिब्ध है ..???क्यक्षोंिणीक उस िणीविशेषि साधना मे यक्षौविन भ्रंगिा के रस मे धूलिी हुयक्षी धोगती िजसे साधना कालि मे पहना जाना अिणीनविायक्षर है और श्रगिाटीका नाम की जड़ी बूटी से भरा हुआ आसन और अन्यक्ष कुछ ओर जड़ी बुिणीटयक्षा ....अब कहाँ उपलिब्ध ..?? ठीक इसी तरह िणीतलिोगत्त्मा अप्सरा साधना िजसमे एक दुलिरभ जड़ी .चंद्रप्रभा ....िजसकेपास होगती है ....उनके बारे मे सदगिुरुदेवि िलिखते है की अप्सरा ही नही बि ल्क समस्त देवि विगिर की िस्त्रयक्षा ऐसे साधक के पास आने के िलिए उताविलिी होग जाती है .अब कहाँ ... ?? इसका मतलिब सच मुच इन साधनाओ का कोगई िणीविशेषि अथर होगगिा ही .क्यक्षोंिणीक साधना विगिर की यक्षे साधनाए आपकोग भौिणीतक दृष्टी से तोग पूणरता देने मे समथर है .हर दृष्टी से भी ... जोग िणीकसी अन्यक्ष साधना के माध्यक्षम से भी संभवि नही .और आध्यक्षाि त्मक क्यक्षा उचाई दे सकती है .शायक्षद हमने कभी जानने की कोगिणीशश ही नही की .... आज पूरा िणीविश्वि इस बात के िलिए पागिलि सा है की की तरह बढती आयक्षु का प्रभावि शरीर यक्षा चेहरे पर
रोगका जा सके .पर तंत्र आचायक्षों ने इन साधनाओ का िणीनमारण करते समयक्ष जोग भी भावि उनके मानस मे थे उनमे से एक िसफिर इसी िलिए िणीकयक्षा .की यक्षह भी संभवि होग सके . आप मेसे िणीनश्चयक्ष ही अनेकोग ने उस अप्सरा साधना के बारे मे पढ़ा ही होगगिा िजसमे पहलिे िणीदन एक कौर बादाम का हलिविा , दूसरे िणीदन दोग तीसरे िणीदन तीन इस तरह खाने का िणीविधान है और उन अनेकोग साधकोग के िणीविविरण भी ... िजन्होंने यक्षह साधना की और सफिलिता पाते ही रातोग रात अपने जीविन और आयक्षु मे..चेहरे मे ... यक्षह असर देखा . िणीमत्रोग ,यक्षिणीक्षिणी साधना और अप्सरा साधना मे कुछ बातों मे फिकर है .जैसा की सदगिुरुदेवि जी कहते है की अप्सरा साधना कई कई बार करना पड़ जाती है यक्षा सकती है ...क्यक्षोंिणीक उन्हे अपने पर गिविर होगता है और विह बहुत यक्षौविन गििणीविरता होगती है विहीँ यक्षिणीक्षिणी साधना तोग बहुत आसानी से िसद्ध होग जाती है यक्षा होग सकती है क्यक्षोंिणीक यक्षे स्वियक्षं मानवि मात्र की सहायक्षता करने के िलिए व्यक्षग्र होगती है . पर हम इनकी साधना करे ही क्यक्षों ?? मुझे तोग उच्च तंत्र साधनाओ मेरूचिणीच है ... सौदयक्षर साधनाओ मे कोगई रूचिणीच नही है,तोग क्यक्षों मै इसके बारे मे जानू ??? ..आप की बात मान लिी ..की आपकोग और हमकोग उच्च तंत्र साधनाओ मे रूचिणीच है ..और यक्षह सोंदयक्षर साधनाओ खासकर यक्षिणीक्षिणी साधना ..मे कोगई रूचिणीच नही ...पर क्यक्षा हम यक्षह बात जानते है की ...यक्षिणीक्षिणी साधना के अनेकोग पहलिुओ मे से एक यक्षह भी है की मुख्यक्षतः ६४ यक्षिणीक्षिणी है और िणीदव्यक्ष िणीविद्याएं और िणीविज्ञान भी ६४ ही है मतलिब हर िणीदव्यक्ष िणीविद्या से एक यक्षिणीक्षिणी का संबंध है .मतलिब इसका यक्षह हुआ की कोगई साधक िणीकसी एक यक्षा अन्यक्ष तंत्रिणीविधान कोग सीखना चाहे तोग यक्षह उनके िलिए यक्षे अत्यक्षंत मददगिार होग सकती है .क्यक्षोंिणीक यक्षह िणीकसी िणीदव्यक्ष िणीविद्या की अिधस्ठाथी होगती है तोग उस िणीविद्या यक्षा िणीविज्ञानं की सारे गिोगपनीयक्षता और क्यक्षा क्यक्षा गिोगपनीयक्ष सूत्र है उस िणीविज्ञान के ....और कहाँ कहाँ तक
उस िणीविज्ञान के रहस्यक्षों का िणीविस्तार है ..कहाँ कहाँ उसके िणीनष्णात साधक है , और कैसे उनसे सपकर िणीकयक्षा जा सकता है यक्षह सब तोग इन साधनाओ के माध्यक्षम से ही संभवि है . आज के यक्षुगि मे भी हालि तक हमारे सामने रहे कुछ अिणीत उच्च कोगिणीट के िसद्ध तांिणीत्रक िजनका उल्लेख मैने आिरफि भाई के साथ विालिी श्रंखलिा मे और ब्लिॉगि के कुछ लिेखोग मे िणीकयक्षा .उन सभी ने अपनी कृिणीतयक्षों मे इस बात का उल्लेख िणीकयक्षा है की िणीकस तरह यक्षिणीक्षिणी ने उनके मागिर कोग तंत्र सीखने मे िणीकतना यक्षोगगिदान िणीकयक्षा .इसका मतलिब एक साधक की यक्षात्रा तंत्र सीखने की कई कई गिुणा तीव्र होग सकती है और उसकी उन्निणीत भी . पर िणीमत्रोग चाहे साधना िणीकतनी भी न सरलि होग .पर जब तक उसके रहस्यक्ष नही मालिूम विही सबसे किणीठन .. (हालिािणीक की यक्षे बात भी सही है की रहस्यक्ष जानते ही किणीतपयक्ष यक्षह भी कह सकते है की यक्षे है ..क्यक्षोंिणीक जैसे ही रहस्यक्ष का अनाविृिणीतकरण हुआ और हमारा रूचिणीच भी ..जबिणीक अगिर विह नही जानते तोग ...तोग जोग भी इस मागिर के सच्चे पिथक है विह जानते है की .... शीश उतारे भू धरे ..गिुरूच िणीमलिे तोग भी सस्ता जान .. गिुरूच शब्द का क्यक्षा अथर है ...ज्ञान ही न ...सदगिुरुदेवि और ज्ञान मे भेद कैसा .. अनेकोग साधनाए है ऐसी है की जैसे ही हमने उस साधना के बारे मे पढ़ा तोग तत्कालि व्यक्षग्र होग उठे की करना ही है यक्षह साधना ...पर जब साधना करने बैठे तोग अत्यक्षािधक काम भावि मन मे प्रबलि होग गियक्षा .समझ मे ही नही आ पाता की ऐसा क्यक्षों होग रहा है और इसके िणीनराकरण के िलिए क्यक्षा करे ..???
और एक ओर साधना कालि मे बाधा आती है िणीक जब िणीकसी साधक कोग इनका प्रत्यक्षक्षिी करण हुआ भी तोग विह इतने ज्यक्षदा काम भावि मे आ जाते है की ..अिणीतम मालिा भी सम्पन्न नही कर पाए . तोग ऐसे कुछ िणीविधान सदगिुरुदेवि जी ने बतायक्षे हैिणीक िजसके माध्यक्षम से साधक इन सफिलिता के दौरान .इस तरह की समस्यक्षा से बचा रहता है पर ऐसे अनेकोग िणीविधान है तोग कौन सा िणीविधान जयक्षादा उिणीचत है .यक्षह भी तोग जानना है .अन्यक्षथा सफिलिता आ के भी .टा ..टा ..करके चलिी गियक्षी .और हम विहीँ के विहीँ रह गिए .. िणीकन्ही िणीकन्ही साधक की प्राण ऊर्जार बहुत तीव्र होगती है .और उनके द्वरा िणीकयक्षे गिए मंत्र जप और साधना स्थान और किणीतपयक्ष िणीदविस के करण उन्हे प्रारंिणीभक सफिलिता तोग िणीमलि जाती है पर पूणर सफिलिता नही िणीमलिती है तोग (भलिे ही आप कई कई बार इन साधनाओ कोग करते चलिोग ...तोग क्यक्षा है विह उपायक्ष .की हमारी सफिलिता मे कोगई विाधा ही नही रहे .यक्षह भी तोग हमे ज्ञात होगना चिणीहयक्षे . तोग िणीकसी िणीकसी साधना मे सफिलिता के उपरान्त कुछ िणीविशेषि विाक्यक्ष ही बोगलिना पड़ते है उसने मनोग विांिणीछत विरदान पाने मे ...तोग क्यक्षा है ऐसे उपायक्ष ... क्यक्षा पारद िणीविज्ञानं जैसे अिणीत उच्च तंत्र मे भी इन यक्षिणीक्षिणी साधना का कोगई यक्षोगगिदान है ?? क्यक्षों नही अगिर हम सभी इस बात का ... जोग की सदगिुरुदेवि ने हमे िसखाई है की पारद तोग अंिणीतम तंत्र है , तोग भलिा इस अंिणीतम तंत्र मे यक्षिणीक्षिणी का यक्षोगगि दान यक्षा इन साधना का यक्षोगगि दान नही होगगिा ?? एक
बार सोगचे ..आप सही सोगच रहे है .महान तम रस िसद्ध आचायक्षर नागिाजुरन ने १२ विषिर तक विट यक्षिणीक्षिणी साधना समपन्न की तब कहीं जा कर विह इस साधना मे सफिलि होग पाए .उन्हे क्यक्षों ...इतना समयक्ष लिगिा ... क्यक्षा थी उनकी साधना िणीवििध यक्षह एक अलिगि बात है .... पर अथर तोग है की उन्होंने क्यक्षों की ...और आज भी उनका नाम हम अत्यक्षंत आदर से लिेते है क्यक्षोंिणीक उन्होंने इस विट यक्षिणीक्षिणी साधना के माध्यक्षम से अदुत सफिलिता पारद तंत्र जगित मे प्राप्त की .तोग इसके पीछे विट यक्षिणीक्षिणी साधना का ही तोग यक्षोगगि दान रहा .और न मालिुम िणीकन िणीकन साधनाओ कोग इस विगिर की उन्होंने िणीकयक्षा होगगिा (और जोग भी गिोगपनीयक्ष अदुत रस िणीविज्ञानं ...पारद तंत्र िणीविज्ञानं के सूत्र उन्हे विट यक्षिणीक्षिणी ने समझाए ..जोग की कहीं भी उल्लेिखत नही थे ..यक्षह इस बात का प्रत्यक्षक्षि प्रमाण हैिणीक इन साधनाओ कोग नकारा नही जा सकता है .).तोग िजन्हे भी पारद तंत्र मे रूचिणीच है और विह यक्षिणीक्षिणी साधना से दूर रहे है तोग विह स्वियक्षम ही जान सकते है ..की ....िणीबना इन साधनाओ की सफिलिता के कैसे संभवि है और पारद तंत्र मे पूणर सफिलिता???? ... तोग िणीमत्रोग अगिलिे कुछ ओर लिेखोग मे ...इन साधनाओ की उपयक्षोगिणीगिता और क्यक्षों जरुरी है कुछ िणीविधान सीखना .आपके सामने आयक्षेगिे ..िणीनश्चयक्ष ही इस बात के िलिए यक्षह हैिणीक हम सभी इन साधनाओ की उपयक्षोगिणीगिता समझे और जोग एक िणीदविसीयक्ष सेमीनार होगने जा रहा है उसमे भागि लिेकर इन साधनाओ के िजतने भी रहस्यक्ष संभवि है विह जाने समझे और अपनी िजज्ञासाए भी शांत करे.और कैसे इन साधनाओ मे सफिलिता प्राप्त करे .अब यक्षह अविसर हमारे सामने आ रहा है तोग िणीमत्रोग इसकोग चूकना नही है..क्यक्षोंिणीक इन साधनाओ पर आधािरत िणीफिर से कोगईसेमीनार ... ऐसा अविसर आयक्षे ..सभवि कम से कम आज तोग नही है और न ही कोगई यक्षोगजना की इन साधनाओ पर आधािरत ऐसा सेमीनार िणीफिर संभवि होग . मेरा यक्षह कतरव्यक्ष है की मै एक आपके भाई/िणीमत्र /सहयक्षोगगिी होगने िजतना समझता हूँ उसके आधार पर
अपनी बात आपके सामने रखूं ..िजससे शायक्षद कुछ प्रश्न की इस सेमीनार मे भागि लिेना है यक्षा नही ..यक्षा क्यक्षा होग जायक्षेगिा इस एक िणीदन की आपस मे विातारलिाप मे ...मुझे आपके सामने कुछ बाते रखना है .तािणीक आप िणीनणरयक्ष आसानी से लिे सके ... हम सभी इस बात की गिंभीरता समझे की यक्षह कोगई रोगज रोगज होगने विालिी सेमीनार इस् िणीविषियक्ष पर नही है ..हम सब इस अविसर का लिाभ उठायक्षे .. ============================================== ============== अिणीत महत्विपूणर बात की ...मेरे स्नेिणीहयक्षों .अच्छी तरह से ..इस बात कोग मन मे िणीबठा लिे की यक्षह िसफिर एक सेमीनार है .मतलिब एक गिोगष्ठी ...यक्षहाँ कोगई ****साधना नही होगने*** जा रही है , तोग कोगई भी साधना सामग्री यक्षहाँ लिाने की आविश्यक्षकता नही है . और ऐसा कुछ नही की बस आप जब लिौटोगगिे तोग एक सफिलि साधक ....न न इस बात कोग समझे ...
सफिलिता आपके प्रयक्षास और सदगिुरुदेवि की आप पर आशीविारद पर िणीनभरर है ..हम िसफिर गिोगपनीयक्ष तथ्यक्ष /सूत्र /तत्रात्मक मंत्रात्मक िणीविधान /आविश्यक्षक मुद्रायक्षे जोग सदगिुरुदेवि जी से और उनके सन्यक्षाशी िणीशष्यक्ष िणीशष्यक्षाओ से हमे प्राप्त हुयक्षे है आपके सामने रखने जा रहे है . ============================================== ============= तोग जोग भी इस एक िणीदविसीयक्ष सेमीनार मे भागि लिेगिा िणीनश्चयक्ष ही विह ..सफिलिता के और भी करीब ..होगता जायक्षेगिा ..क्यक्षोंिणीक साधक तोग हमेशा सीखने विालिे का नाम है और जोग भी सीखता जाता है जोग भी इस क्षिेत्र के ज्ञान कोग आत्मसात करता जाता है विह सदगिुरुदेवि कोग िणीकन्ही अथी मे और भी अपने अंदर समािणीहत करते जाता है क्यक्षोंिणीक सदगिुरुदेवि के िलिए ही तोग कहा गियक्षा है की . केबलिम् ज्ञान मूिणीतर ...तस्मै श्री सद्गिुरुदेवि नमः || कह कर ही उनका पिरचयक्ष िणीदयक्षा जा गियक्षा है . आप सभी जोग इस सेमीनार मे भागि लिेने की अनुमिणीत प्राप्त करेगिे .. ...उनका ह्रदयक्ष से स्विागित है.. क्यक्षोंिणीक इस एक िणीदविसीयक्ष सेमीनार मे भागि लिेने के िलिए पूविर अनुमिणीत अिणीनविायक्षर है अप्सरा यक्षिणीक्षिणी साधना एक पिरपेक्षि मेसाधना जीविन का एक आविश्यक्षक भागि है ,यक्षूँ कहूँ तोग इतना जरुरी भागि है िजतना की हम स्विास लिेते है . क्यक्षोंिणीक इसकी के माध्यक्षम से हम जान सकते हैिणीक हमारे जीविन का हेतु क्यक्षा है, हम क्यक्षों आयक्षे है क्यक्षा हमारा यक्षहाँ होगना िसफिर एक चांस की बात है यक्षा कुछ िणीविशेषि तथ्यक्ष भी है . और हम मे से सभी के जीविन के ना मालिूम िणीकतने पक्षि ....पहलिु ऐसे है िजनसे हमे तोग मतलिब है पर िणीकसी दूसरे के िलिए शायक्षद महत्विहीन ..पर जीविन का अथर तोग है .और अगिर हम यक्षह मानते है तोग
जीविन बस िणीकसी तरह काट लिेने का नाम तोग नही है . पर हम करे क्यक्षा ..जीविन की सच्चाई ऐसी ही है .पर हमारे ऋषिणीषि ,तंत्र आचायक्षों और मनि स्वियक्षोग ने आने विालिी समस्यक्षाओ कोग बहुत पहलिे समझ िलियक्षा था और उनके िणीनराकरण की िणीवििधयक्षा भी हमारे सामने रखी है .और उन्होंने यक्षह तथ्यक्ष रखा की जीविन का कोगई अगिर अथर है तोग विह है पूणर आनद यक्षुक्त होगकर जीविन जीना ... न की रोगते पीटते ...िणीघिसट िणीघिसट कर काटना . सदगिुरुदेवि कहते है की सुख चािणीहए तोग दुःख कोग भी स्विीकार करना ही पड़ेगिा जीविन अनेक जगिह से िणीद्व पक्षिीयक्ष है आप केबलि एक ही पक्षि कोग स्विीकार नही कर सकते है . पर यक्षिणीद आनद आपके जीविन मे आता है तोग आनंद के बाद आनंद ही आ सकता है .उसके बाद दुःख नही .पर हमारा पिरचयक्ष तोग सुख से नही बि ल्क दुःख से ही है . हमने तोग यक्षह जाना ही नही की आनंद नाम का कोगई तत्वि भी है.अगिर यक्षह कहूँ की साधना मे आनंद है तोग यक्षह सही होग सकता है पर आनंद एक बहुत किणीठन सरलि चीज है िजसे समझ पाना शायक्षद सबसे किणीठन है . इसिलिए सदगिुरुदेवि कहते है की कुछ िणीविशेषि साधनाए िजन्हे हम अप्सरा यक्षिणीक्षिणी साधना के नाम से जानते है इसी आनंद तथ्यक्ष का अनुभवि करने के िलिए िणीनिणीमरत हुयक्षी है .केबलि यक्षही ही आपकोग जीविन कोग कैसे आनदमयक्ष िणीकयक्षा जा सकता है उसका पिरचयक्ष दे सकती है .चाहे यक्षा न चाहे हमने अपने देविी देविताओ कोग कुछ िणीविशेषिताओ मे बाट िणीदयक्षा है .यक्षा यक्षूँ कहूँ की तंत्र आचायक्षर कहते हैिणीक हमने कभी जानने की कोगिणीशश ही नही की िजन देवि यक्षा देिणीवियक्षों की यक्षा अन्यक्ष की उपासना करते है विह कुछ अन्यक्ष भी दे सकती है ... हमने देवि विगिर कोग भी बाँट िणीदयक्षा है .की इनका विश इतना ही काम है उदाहरण के िलिए मै अगिर यक्षे कहूँ की भोगगि प्रािणीप्त के िलिए बगिलिामुखी साधना सविरश्रेष्ठ है तोग भलिा कौन मानेगिा .हमने तोग यक्षही पढ़ा यक्षा सुना है की इस साधना मे तोग बहुत किणीठन िणीनयक्षम है और और और ... पर सत्यक्ष के अनेकोग पहलिु होगते है सत्यक्ष िसफिर उतना ही नही िजतना हम जानते हैबि ल्क अनेकोग आयक्षाम िलिए होग सकता है.ठीक इसी तरह हमने सदगिुरुदेवि तत्विकोग िसफिर पूजा /कुछ मालिा मंत्र जप और जयक्ष सदगिुरुदेवि ..पर ऐसा नही है .. हमने दस महािणीविद्या कोग ही सब कुछ यक्षा अंत सा मान िलियक्षा है पर िणीमत्रोग ऐसा नही है, सदगिुरुदेवि ने तोग जब उन्होंने कृत्यक्षा साधना दी तोग उस विषिर के महािणीविशेषिांक मे उन्होगने कहा की यक्षह साधना तोग जगिदम्बा
साधना से भी श्रेष्ठ है ..दस महािणीविद्याओ से भी उचे स्तर की है ...तोग िणीनश्चयक्ष ही कुछ बात होगगिी . ठीक इसी तरह उन्होंने सौदयक्षर प्रधान साधनाए िजन्हे हम अप्सरा यक्षिणीक्षिणी ,िणीकन्नरी ,विन्श्यक्षकरी आिणीद अनेकोग विगिों की साधना सामने रखी .आप ही सोगिणीचए सदगिुरुदेवि जी ने तोग स्पस्ट कहा की कोगई साधारण गिुरूच तोग अप्सरा यक्षा यक्षिणीक्षिणी की बात भी नही करेगिा क्यक्षोंिणीक उसके िणीशष्यक्ष यक्षा भगित क्यक्षा सोगचेगिे .पर हमारे सदगिुरुदेवि ने हमे जीविन जीना िसखायक्षा .की िणीकस तरह आनंद्युक्त हम हर पलि रहे और िणीविपरीत पिरि स्थतयक्षों से भागिना नही बि ल्क उन्हे अपनी शतों पर अनुकूलि बनाते हुयक्षे पूणर उल्लास मयक्षता आनद मयक्षता के साथ जीविन जीना है. इन साधनाओ कोग काम भावि प्रविधरन की साधना समझने की भूलि नही करना चािणीहए ..विास्तवि मे विासना और काम मे अंतर समझना होगगिा .सदगिुरुदेवि जी ने बहुत बहुत बार हमे यक्षह समझायक्षा पर यक्षह इतना कहा आसान है ... िणीकसी शब्द कोग समझ लिेना और सही अथो मे उसका भाविाथर अपने जीविन मे उतार लिेना िणीबलिकुलि दोग अलिगि बाते है . हम िणीकतना भी कहे की हम समझते है पर ...विास्तिणीविकता सत्यक्ष से कोगसों दूर है. यक्षे साधनाए जीविन का हेतु है .सदगिुरुदेवि जी ने स्वियक्षं अपना उदहारण सामने रखा एक केसेट्स मे विह कहते है की उन्होंने भी पहलिे यक्षह साधना सीखने कोग मना कर िणीदयक्षा की विह गिृहस्थ है और यक्षह तोग मयक्षारदा के अनुकूलि नही तब उनके गिुरूचजी ने कहा की मै देख रहा हूँ की आगिे तुम्हेिणीकतनी िणीविकट पिरि स्थयक्षों का सामना करना पड़ेगिा .उस समयक्ष यक्षह अिणीनविायक्षर होगगिी ...उन्होंने आगिे कहा की नारा यक्षण तुम स्विणर होग पर उसमे सुगिंध भरने का काम यक्षह साधना करेगिी .. पर सदगिुरुदेवि आगिे कहते हैिणीक इस साधना कोग करने के बाद जैसी ही विह अप्सरा प्रगिट हुयक्षी ..सदगिुरुदेवि ने बहुत ही मन कोग हरने विालिे स्विर मे विह बात कहीं है आप स्वियक्षं सुने तोग कहीं जायक्षदा आनन्द आएगिा .. जब हमारे सदगिुरुदेवि ने हमारे िलिए इन साधनाओ की अिणीनविायक्षरता बताई है तोग भलिा अब कोगई और संदेह ...??
पर ऐसा कहाँ ?? सन्देह तोग हमारे पीढ़ी के खून मे है,बस कुछ िणीगिने चुने है जोग इससे मुक्त है बाकी हम सभी कोग िणीविश्विास होग यक्षा न होग पर संदेह जरुर होग जायक्षेगिा . सदगिुरुदेवि कहते है की यक्षह तुम्हारा दोगषि नही क्यक्षोंिणीक कई कई पीिणीढ़यक्षों की गिुलिामी के कारण से यक्षह हमारे खून मे ही समां गियक्षा है . सदगिुरुदेवि जी ने अनेकोग उदहारण सामने रखे और समझायक्षा और यक्षह भी कहा की यक्षह साधना गिृहस्थ जीविन मे िणीकसी भी तरह से बाधक नही है .यक्षह िणीकसी भी तरह से आपकी पत्नी के कोगई भी अिधकार कोग िणीछनती नही है , यक्षह िसफिर आपके िलिए आपकी मिणीहलिा िणीमत्र है .बस प्रेयक्षसी के रूचप मे है . यक्षह सही है की यक्षह इस रूचप मे कहीं जयक्षादा आसानी से िसद्ध होग जािणीत है पर इन्हे बिणीहन यक्षा माँ के रूचप मे भी िसद्ध िणीकयक्षा जा सकता है और सािधकाओ के िलिए यक्षह उनकी परम िणीमत्र के रूचप मे आती है. और इनके आगिमन से आपके जीविन का तनाब और परेशानी उदासी तकलिीफि अविसाद सब समाप्त सा होग जाता है क्यक्षोंिणीक यक्षह जीविन मे स्नेह और प्रेम क्यक्षा होगता है समझाती है शब्दों से नही बि ल्क अपने िणीनश्छलि स्नेह से ... और जीविन का आधार है प्रेम ... जीविन का एक अिणीमट िणीहस्सा है.. स्नेह ...जोग की िणीमत्र से . पिणीत से पत्नी से, भाई से .... िणीपता से.... बेटी से ...बेटे से ....माँ से .... िणीकसी से भी होग सकता है जहाँ िणीनश्छलिता है.... विहां है यक्षह स्नेह ..विहीँ है इश्विर और... इसी िणीनश्छलिता मे ही सदगिुरुदेवि रहते है . अब हमारा तोग िणीनश्छलिता से कोगई सबंध है नही तब ?? ..यक्षह साधनाए ही हमारा पिरचयक्ष कराती है की स्नेह तत्वि है क्यक्षा ??.यक्षह िणीनश्छलिता है क्यक्षा ?? और िणीमत्रोग काम भावि की आलिोगचना भी उिणीचत नही क्यक्षोंिणीक यक्षह भी एक आधार है ...जीविन मे जोग भी प्रसन्नता उमंगिता .आलिाह्द्ता और उत्साह है विह काम भावि के कारण ही है ..अगिर काम भावि नष्ट कर दे तोग िणीफिर शेषि बचेगिा क्यक्षा ..
हाँ ...पर हम कैसे विासना और उच्च स्नेह मे अंतर समझ पाए ..इसी के िलिए तोग सदगिुरुदेवि जी ने िणीकतनी न आलिोगचना सहन करते हुयक्षे यक्षह परम गिोगपनीयक्ष साधनाए हम सब के सामने रखी . और हम सभी इन साधनाओ के प्रिणीत आकिणीषिरत भी है ...और हम मे से िणीकतनोग ने बार बार की भी ...पर ऐसा क्यक्षों हममे से आिधकांश के हाथ असफिलिता से ही टकराए. आिखर गिलिती कहा हुयक्षी .?? क्यक्षा कारण रहे ही हम असफिलि लिगिातार होगते रहे .?? हमने सारी िणीनयक्षम माने िणीफिर भी हमारे हाथ खालिी... ऐसा क्यक्षों है .??? सदगिुरुदेवि नािणीभ दशरना अप्सरा केसेट्स मे कहते है की जब गिुरूच कोग ज्ञान नही होगता और आप जाओ की मुझे सफिलिता नही िणीमलि रही है तोग विह कोगई न कोगई कारण देगिा की... िणीदयक्षे की ...लिौं ठीक नही थी यक्षा तुम ऐसे बैठे थे .विेसे जैसे िणीकसी भी डॉक्टर के पास जाओ तोगकोगई न कोगई िणीबमारी िणीनकालि ही देगिा, यक्षह ठीक नही है .. पर हम सभी ने कम से कम एक बार यक्षह साधना की ही होगगिी .... पर सफ्लिता ..??? ऐसा क्यक्षों.??? यक्षूँ तोग कारण िणीगिनने पर आ जाए तोग शायक्षद िलिस्ट बढती ही जायक्षेगिी पर .अब क्यक्षा करे यक्षा तोग असफिलिता कोग ही सब कुछ मान कर बैठे रहे ..यक्षा िणीफिर.हम सभी िणीकतने उत्साह से साधना करने बैठते है पर मन के िणीकसी न िणीकसी कोगने मे यक्षह रहता है की शायक्षद हमे कुछ सेक्रेट नही मालिूम और बस यक्षही से असफिलिता की शुरुआत होग गियक्षी . पर यक्षह सोगचना गिलित भी तोग नही . एक बार मैने भाई से कहा की िणीकसी साधना िणीविशेषि के बारे मे .... साधना तोग सरलि है पर िणीकसी ने करी है क्यक्षा.भाई बोगलिे मैने की है .मैने कहा कैसे ,जबिणीक यक्षह तोग मात्र एक यक्षा दोग मालिा मंत्रा जप की साधना है . उन्होंने मुझसे कहा की भैयक्षा ठीक यक्षही बात हमारे मन मे भी आई जब सदगिुरुदेवि जी ने िणीशिणीविर मे
कहा की इस साधना की बस १ मालिा जप करना है .और आप आसानी से दोग घिंटे मे कर लिोगगिे. हम सभी आश्चयक्ष मे पड़ गिए की इतना सा मंत्र और दोग घिंटे ..जबिणीक मात्र दस िणीमिणीनट मे ही जप होग जायक्षेगिा . पर कोगई उनसे पूंछने नही गियक्षा .मै गियक्षा और कहा की सदगिुरुदेवि ऐसा क्यक्षों ..इतना समयक्ष क्यक्षों.??? सदगिुरुदेवि ने बहुत ही प्रसन्नता से कहा की मैने तोग बात बस रखी की कोगई तोग आ के पुन्छेगिा तोग उसके िणीविधान और अन्यक्ष तथ्यक्ष मै उसे व्यक्षिणीक्तगित रूचप से बताऊर्ंगिा .पर कोगई आयक्षा ही नही . और भाई कहते है की अनु भैयक्षा सच मे दोग /तीन घिंटे का िणीविधान है भलिे ही मालिा एक ही करना थी .कई आविश्यक्षक िणीविधान और मुद्रायक्षे और तंत्रात्मक तथ्यक्ष सदगिुरुदेवि जी ने उन्हे उस साधना के स्वियक्षं ही स्पस्ट िणीकयक्षे . तोग क्यक्षा पिणीत्रका मे िणीविधान पुरे नही होगते थे ??? भाई बोगलिते है िणीक नही ऐसा नही है पर स्वियक्षं सदगिुरुदेवि जी ने कहा की कुछ अिणीत महत्विपूणर तथ्यक्षों कोग िसफिर इसिलिए नही सामने रखा जा सकता की आपने पिणीत्रका लिी है यक्षा िणीशिणीविर मे आयक्षे है ....बि ल्क आपकी स्वियक्षं की ...िणीकतना सीखने की इच्छा है और क्यक्षा आप सच मे उस साधना कोग िसद्ध करे के िलिए बेताब है इतना जनून है तब ..अगिर है तोग ...आप उन िणीविधानों कोग जानेगिे ही .. िणीमत्रोग , परमहंस स्विामी िणीनग्मानद जी महाराज कोग स्विपन मे एक बीज् मंत्र िणीमलिा था .पर िणीवििध नही ...और उन्होंने उसकी िणीवििध जान ने के िलिए सारा भारत पैदलि छान मरा था ,कभी आप उनके बारे पढ़े िणीकक्यक्षा क्यक्षा नही सहा उन्होंने ...तोग आखों मे आसूं आ जायक्षेगिे की यक्षह होगती है तड़प ..यक्षह होगता है एक साधक ...िणीकमुझे सीखना है हीं हर हालि मे .. क्यक्षोंिणीक साधक नाम ही है जोग ज्ञान कोग प्राप्त करने के िलिए उसे आत्मसात करने केिलिए सदैवि तैयक्षार होग .. क्यक्षोंिणीक अगिर घिर बैठे बैठे तोग बहुत कुछ संभवि होग जाए पर... सब कुछ.... तोग नही संभवि है. एक भाई की मेलि आई की उन्होंने िणीपछलिे सात सालि मे ५०० बार लिगिभगि यक्षह साधना की पर
सफिलिता नही िणीमलिी .अब मै यक्षह नही कह सकता है विे सही कह रहे है यक्षा नही .इस पर मै कुछ नही कह सकता हूँ पर आप सभी जानते होग की अनेकोग फिोगरम और ग्रुप मे यक्षही बात होगती हीं की काश कोगई तोग इन साधनाओ के सबंिधत दुलिरभ सूत्र .िणीक्रयक्षाए समझा दे .मुद्रायक्षे तःन्त्रत्मक और मंत्रात्मक िणीविधान समझ दे.पर कहाँ .. पर एक बात उठती है की आिखर हमे इन िणीविधानों कोग िसख ने की आविश्यक्षकता है ही क्यक्षों.? इसका उत्तर यक्षही की एक सफिलिता जैसी ही साधना क्षिेत्र मे िणीमलिती है .... व्यक्षिणीक्त की उन्निणीत कई कई गिुणा बढ़ जािणीत है क्यक्षोंिणीक विह अब सफिलिता पाना है यक्षह जानता है विह एक सामान्यक्ष साधक से सफिलि साधक की श्रेणी मे आ जाता है . और इन साधनाओ के लिाभ तोग आप सभी जानते है ही . पर यक्षह भी बहुत बहुत कठोगर तथ्यक्ष है की जब तक पुरे िणीबस्विास और सभी तथ्यक्षों के साथ साधना न की जायक्षे तोग सफिलिता कैसे िणीमलिेगिी .?? उअदहरण भलिे होग लिोगगि दे दे की ...उलिटा नाम जप कर भी महा ऋषिणीषि विाि ल्कमी सफिलि होग अगियक्षे पर विह यक्षुगि और आज का यक्षुगि बहुत अतर है . ऐसा अब बहुत मुि श्कलि है . पर क्यक्षों मुि श्कलि है.?? इस बात कोग तोग हम सभी समझते है .की आज क्यक्षा पिरि स्थिणीतयक्षाँ है .पर जब सदगिुरुदेवि जी ने कहा की कह दोग ब्रम्हांड से हमे भिणीक्त नही बि ल्क साधना चिणीहयक्षे . तोग कोगई तोग अथर रहा होगगिा ,,उनका यक्षह तोग अथर नही रहा होगगिा की हम् साधना करे और बस जीविन भर असफिलि बने रहे यक्षह तोग संभवि ही नही एक स्थान पर सदगिुरुदेवि कहते है की हम एक बार असफिलि होग तोग दुबारा उसी साधना कोग करे .िणीफिर भी असफिलि होग तोग पुनः करे पर तीसरी बार मेरा कोगई सन्यक्षाशी िणीशष्यक्ष असफिलि हुआ होग यक्षह तोग हुआ ही नही और तुम लिोगगि बार बार करके भी असफिलि होगते होग तोग मै भी सोगच मे पड जाता हूँ की शायक्षद मुझ पर यक्षा साधना पर तुम्हारा भरोगषिा ही नही होगगिा . िणीमत्रोग हम सभी हम यक्षा जयक्षादा इस बात कोग तोगमानते है ही की िजतना सदगिुरुदेवि तत्वि का स्थान हमारे
जीविन मे होगना चािणीहए विह कहीं नही है साथ ही साथ हम सब मे िणीकसी भी साधना कोगआत्मसात करने का भावि िजतना होगना चािणीहए विह भी कहीं कुछ तोग कम है . साथ ही साथ उस साधना से सबंिधत सारी तथ्यक्ष सारी बात जान लिेना चािणीहए तभी उस साधना कोग हम पुरे िणीबस्विास से कर पायक्षेगिे अन्यक्षथा कहीं न कहीं मन मे लिगिा रहेगिा की शायक्षद कुछ ओर तथ्यक्ष है इसिलिए हम सफिलि नही होग पाए यक्षा पा रहे है जब .हम सारे तथ्यक्ष जान जाते है तोग हम िणीनि श्चंत होग जाते है की अब सफिलिता और मुझमे िसफिर प्रयक्षास की दुरी है ,अब कोगई भी बहाना नही क्यक्षोंिणीक एक ओर सद्गिुरु देवि साथ है और उस साधना से बंिधत सारे तथ्यक्ष ,सारी मुद्रायक्षे , आविश्यक्षक िणीक्रयक्षाए तोग अब सफिलिता कैसे दूर रह सकती हीं बस अब मुझे झपट्टा मार कर साधना मे सफिलिता हािसलि कर ही लिेना है . पर क्यक्षा इतने मात्र से होग जायक्षेगिा ??? नही िणीमत्रोग इसके साथ कुछ िणीविशेषि सामग्री कुछ िणीविशेषि यक्षंत्रोग का होगना आविश्यक्षक है ,िजनके माध्यक्षम से ही सफिलिता संभवि होग पातीहै .. क्यक्षा है विह िणीविशेषि सामग्री?? ...क्यक्षा है विह िणीविशेषि यक्षन्त्र .जोग की आपकोग सफिलिता के द्वार पर लिा कर खड़ा ही कर दे ....यक्षह बहुमूल्यक्ष साधनात्मक सामग्री है क्यक्षा ...िजनकोग बारे मे सदगिुरुदेवि ने कई कई बार बतायक्षा .... विह जानकारी आपके सामने ..आने ही विालिी है ... और आने विालिी १२ अगिस्त के एक िणीदविसीयक्ष सेमीनार मे ऐसी ही अनेकोग बातों कोग हम सभी िसख्नेगिे ...साथ मे समझेगिे और उन सामग्री कोग स्वियक्षं प्राप्त करेगिे ... आिरफि भाई िणीदन रात पिरश्रम मे लिगिे है िणीक .यक्षे दुलिरभ सामग्री और दुलिरभ यक्षन्त्र ..कैसे आपकोग उपलिब्ध करा सके ...(क्यक्षोंिणीक सदगिुरुदेवि जी ने स्वियक्षं कहा और देव्यक्षोगपिणीनषिद से उदहारण देते हुयक्षे समझायक्षा की िणीबना प्रामािणीणक सामग्री के साधना मे सफिलिता संभवि ही नही है ....) आिरफि भाई की पूरी कोगिणीशश है ...िजससे की हम सभी और भाई बिणीहन सफिलिता के पास पहुँच सके. और बस िणीफिर सफिलिता और हमारे मध्यक्ष िसफिर प्रयक्षास की आविश्यक्षकता होगगिी .और सदगिुरुदेवि
कीकृपा कटाक्षि से हमसब भी सफिलि होंगिे ही .... तोग जोग भी इस अविसर का लिाभ उठाना चाहे ...विह यक्षिणीक्षिणी साधना के पिरपेक्षि मे कुछ आविश्यक्षक तथ्यक्ष
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यक्षिणीक्षिणी साधना के पिरपेक्षि मे अब तक हमने जाना की िणीकस प्रकार आकाश मंडलि की आविश्यक्षकता क्यक्षा है तथा इसमे क्रोगध बीज और क्रोगध मुद्रा का िणीकस प्रकार से संयक्षोगगि होगता है. तथा जैन तंत्र पद्धिणीत मे यक्षक्षि तथा यक्षिणीक्षिणी के सबंध मे िणीकस प्रकार अनेकोग तथ्यक्ष है. इसके अलिाविा भगिविान मिणीणभद्र की साधना का यक्षिणीक्षिणी साधना से क्यक्षा सबंध है. अब हम यक्षहाँ पर िणीविशेषि चचार करेगिे यक्षक्षिमंडलि स्थापन प्रयक्षोगगि की. क्यक्षों की यक्षह प्रयक्षोगगि जैन तंत्र पद्धिणीत का गिुप्त तथा महत्विपूणर प्रयक्षोगगि है. इस प्रयक्षोगगि के माध्यक्षम से साधक िणीनि श्चत रूचप से यक्षिणीक्षिणी साधना मे सफिलिता की और अग्रसर होग सकता है. यक्षह प्रयक्षोगगि भी यक्षिणीक्षिणी साधना संयक्षुक्त अथारत क्रोगध बीज यक्षुक्त विायक्षु मंडलि पर िणीकयक्षा जाता है. इस प्रयक्षोगगि के अंतगिरत साधक कोग सविर प्रथम २४ यक्षक्षि, २४ यक्षिणीक्षिणी तथा २४ तीथरकरों का स्थापन यक्षन्त्र मे करना रहता है. यक्षह स्थापन िणीविशेषि मंत्रोग के द्वारा होगता है. यक्षह पूणर यक्षक्षि मंडलि है. २४ यक्षक्षि िजनके बारे मे जैन तन्त्रोग मे उल्लेख है विह सभी यक्षक्षि के बारे मे यक्षही धारणा है की उन सभी देविोग का यक्षक्षिलिोगक मे महत्विपूणर स्थान है. यक्षही बात २४ यक्षिणीक्षिणी के बारे मे भी है. तथा २४ तीथरकर अथारत जैन धमर के आिणीद महापुरुषिों के आशीषि के िणीबना यक्षह कैसे संभवि होग सकता है. अतः उनका स्थापन भी िणीनतांत आविश्यक्षक है ही. इसके बाद यक्षक्षि मंडलि स्थापन प्रयक्षोगगि मंत्र का जाप िणीकयक्षा जाता है िजसके माध्यक्षम से यक्षन्त्र मे स्थािणीपत देविता कोग स्थान प्राप्त होगता है तथा यक्षन्त्र पूणर चैतन्यक्षता कोग प्राप्त कर सके. इसके बाद साधक कोग यक्षिणीक्षिणी िसिणीद्ध मंत्र का जाप करना रहता है. इस मंत्र जाप से आकाश मंडलि मे स्थािणीपत यक्षक्षिमंडलि कोग साधक की अिणीभलिाषिा का ज्ञान होग जाता है तथा साधक एक रूचप से मंत्रोग के माध्यक्षम से यक्षिणीक्षिणी िसिणीद्ध की कामनापूिणीतर हेतु प्राथरना करता है. इस मंत्र जाप के बाद साधक पूजन आिणीद प्रिणीक्रयक्षाओ कोग करता है तथा इस प्रकार यक्षह प्रयक्षोगगि पूणर होगता है. यक्षा यक्षु कहे की यक्षह क्रम पूणर होगता है. िजसमे आकाशमंडलि का िणीनमारण और स्थापन, इसके बाद मिणीणभद्र देवि प्रशन्न प्रयक्षोगगि तथा अंत मे यक्षक्षि मंडलि स्थापन प्रयक्षोगगि िणीकयक्षा जाता है. यक्षह प्रिणीक्रयक्षा साधक के यक्षिणीक्षिणीसाधना के द्वार खोगलि देती है. और यक्षह काम्यक्ष प्रिणीक्रयक्षा है अथारत जब भी कोगई भी यक्षिणीक्षिणी साधना करनी होग तोग इस आकाशमंडलि के सामने इससे सबंिधत एक िणीविशेषि मंत्र का ११ मालिा उच्चारण कर साधना करने से साधक सबंिधत यक्षिणीक्षिणी का विशीकरण करने मे समथर होग जाता है. यक्षिणीक्षिणी साधना से सबंिधत ऐसे कई दुलिरभ तथा गिुह्यतम िणीविद्धान है िजनकोग अपना कर साधक अपने लिक्ष्यक्ष की और अपनी पूणर क्षिमता के साथ गििणीतशीलि होग सकता है. ऐसे कई िणीविधान जोग िसफिर गिुरु मुखी है तथा उनका ज्ञान मात्र गिुरुमुखी प्रणालिी से ही होग सकता है. हमारी सदैवि कोगिणीशश रही है की हम िणीमलि कर उस प्रकार के ज्ञान कोग सब के सामने लिा पाए. और जहां तक बात सेमीनार की है तोग कुछ तथ्यक्ष िणीनि श्चत रूचप से हरएक व्यक्षिणीक्त के सामने रखने के यक्षोगग्यक्ष नहीं होगते है, िजनकी रूचिणीच होग, िजनका लिक्ष्यक्ष होग उनके सामने मात्र ही उन तथ्यक्षों कोग रखा जाए तब साधक की , उस साधना की, उस प्रिणीक्रयक्षा की तथा उस गिुरुमुख से प्राप्त प्रिणीक्रयक्षा से सबंिधत रहस्यक्षविाद की गििरमा बनी रह सकती है, क्यक्षों की अगिर यक्षह महत्विपूणर नहीं होगता तोग आज कुछ भी गिुप्त होगता ही नहीं, और अगिर सब कुंजी यक्षा गिुढ़ प्रिणीक्रयक्षाए प्रकाश मे होगती तोग विोग भी उपेक्षिा ग्रस्त होग कर एक सामान्यक्ष सी प्रिणीक्रयक्षा मात्र बन जाती तथा उसकी ना कोगई महत्ता होगती न ही िणीकसी भी प्रकार गिूढाथर. रहस्यक्षों कोग प्रकाश मे लिाना उतना ही ज़रुरी है िजतना की उनकी प्रिणीक्रयक्षाओ कोग समजना और इन सब के मूलि मे होगता है यक्षोगग्यक्ष पात्र. िजनमे लिोगलिुपता है विह ज्ञान प्राप्त करने के िलिए िणीकसी भी िणीविपरीत पिरि स्थिणीत यक्षोग मे भी कैसे भी गििणीतशीलि होग कर ज्ञान कोग अिजरत करता ही है. और ऐसे साधक कोग रहस्यक्षों की प्रािणीप्त होग जाती है तथा विह अपना नाम सफिलि साधकोग की श्रेणी मे अंिणीकत कर लिेता है. लिेिणीकन इन सब के मूलि मे भी एक तथ्यक्ष है, ज्ञान प्रािणीप्त के तृष्णा. िजसकोग िजतनी ज्यक्षादा प्यक्षास होगगिी विोग उतना ही ज्यक्षादा प्रयक्षत्नशीलि रहता है. और ज्ञान के क्षिेत्र मे तोग अनंत ज्ञान है अतः जोग आगिे बढ़ कर िजतना प्राप्त करने का प्रयक्षत्न करेगिा उसकोग उतना ज्ञान अविश्यक्ष रूचप से िणीमलिता ही है, िणीफिर सदगिुरुदेवि का आशीषि तोग हम सब पर है ही. तोग साधनामयक्ष बन सफिलिता कोग प्राप्त कर हम उनके अधरों पर एक मुस्कान का कारण ही बन जायक्षे तोग एक िणीशष्यक्ष के िलिए उससे बड़ी िसिणीद्ध होग भी नहीं सकती. यक्षिणीक्षिणी साधना के पिरपेक्षि मे अब तक हमने जाना की िणीकस प्रकार आकाश मंडलि की आविश्यक्षकता क्यक्षा है तथा इसमे क्रोगध बीज और क्रोगध मुद्रा का िणीकस प्रकार से संयक्षोगगि होगता है. तथा जैन तंत्र पद्धिणीत मे यक्षक्षि तथा यक्षिणीक्षिणी के सबंध मे िणीकस प्रकार अनेकोग तथ्यक्ष है. इसके अलिाविा भगिविान मिणीणभद्र की साधना का