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Grah Dosh Nivarak

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Academic year: 2021

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(1)

SARV BADHA NIVARAK BHAGVATI CHAMUNDA PRAYOG

ॎ सत्यं च श्रिये िद्धे जन्मश्रन व्रते कायय कायायती प्रवद्धे हः|

तस्मै िी गुरुवै नमः, तस्मै िी गुरुवै नमः ||

जो ईश्वर मानव गर्भ से जन्म लेकर नर रूप धारण कर सर्ी प्रकार के

घात-प्रततघातों को सहन करते हुए यह स्पष्ट करते हैं तक मनुष्य जीवन संघषों में ही

तखलता है, हे गुरुदेव मुझे इन संघषों पर तवजय प्राप्त करने की शति प्रदान

करें

.”

र्ाइयो बहनों जीवन उतना सरल नहीं है तजतना हम सोचते हैं. दरअसल हम

जैसा चाहते हैं प्रकृतत वैसा होने नहीं देती, उसका तवपरीत होता है. क्यों ?

क्यों हम जीवन को सहज और सरलता से जी नहीं पाते ? कर्ी धन है तो

स्वास््य नहीं और स्वास््य और धन है तो संतान नहीं . संतान है तो वह

स्वास््य नहीं या दुगुभणी है.क्यों ?

दरअसल प्रकृतत हमें हमारे पूवभ जीवन कृत इह जीवन कृत पाप दोष का

आर्ास कराती है , जो तक हम समझ ही नहीं पाते और कर्ी तकस्मत को या

कर्ी तकसी को दोष देते रहते हैं ...

र्ाइयो बहनों प्रकृतत कौन ? अरे र्ाई प्रकृतत यातन मा आतद शति ही न....

तो तिर कैसी तचंता जब मााँ है तो ....

और मााँ को मनाना सबसे सरल है न! यतद सच में तबलकुल तनश्छलता औए

पूणभ समपभण के साथ मााँ को याद र्ी करले तो ऐसा हो ही नहीं सकता की वो

प्रसन्न होकर वरदान देने के तलए बाध्य न हो...

(2)

र्ाइयो बहनों नवराति के पहले अमावस्य आती है और यतद इस अमावस्या

को ही हम अपने दुर्ाभग्य को दूर करने का प्रयास करें, और तिर तनतिन्त

होकर मााँ आतद शति के इन नव तदनों में जो शति के प्रततक माने गए हैं

तसति के प्रतीक माने गए हैं, हतषभत मन से न केवल साधना की जाये अतपतु

तसति र्ी हातसल की जाये तजससे मााँ का वरद हस्त सदैव आपके शीश पर

हो और आप जीवन के प्रत्येक क्षेि में पूणभ सिलता के साथ सवोपरर रह

सको ... तो

इस साधना के तलए तैयार हो जाओ, क्योंतक इससे यतद ---

ग्रह बाधा, तांतिक बाधा, तकसी कारणवश हरेक कायभ में बाधा आ रही हो,

साधना में बाधा आ रही हो, समस्त बाधाओ ं को तमटा कर पूणभ अनुकूलता

देने वाली दुलभर् साधना है और अत्यंत सहज र्ी

...

तकसी र्ी अमावश को राति में १० बजे के बाद स्नान कर उत्तर तदशा की

और मुह कर बैठ जाएाँ और सामने ही मााँ दुगाभ का सुन्दर तचि हो या दुगाभ यंि

हो या तवग्रह हो, साथ ही गुरु तचि र्ी आवश्यक है ही, जो की आप जानते ही

हैं

पीला आसन, पीली धोती और घी का दीपक जो साधना काल में जलना

चातहए, सबसे पहले गुरु, गणपतत और र्गवन र्ैरव का संतक्षप्त पूजन करें

तिर एक माला गणपतत मन्ि

(ॐ ग्लौं गं गणपतये नमः)

की एक माला गुरु

मन्ि की और एक गायिी मन्ि की जपना चातहए जो शाप तवमोचन हेतु है....

अब इसके पिात् एक कागज पर अपनी मनोकामना तलख कर सामने रख लें

और संकल्प लेकर तिर एक माला गुरुमंि की संपन्न करे, तथा उसके पिात्

(3)

रुद्राक्ष या मूंगा माला से पांच माला तनम्न मन्ि की करें,

ॎ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै श्रवच्चे | ॎ ग्लौं ग्लौं हूँ हूँ क्लीं क्लीं जूं जूं

सः सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं

चामुंडायै श्रवच्चे

|

अब इसके बाद तिर एक माला गुरु मन्ि की संपन्न कर दुबारा गुरु, गणपतत

और र्ैरव का पूजन संपन्न कर क्षमा याचना कर गुरुदेव को मन्ि समतपभत

करे ...

र्ाइयों बहनों उि साधना में चार से पांच घंटे लग सकते हैं तकन्तु दुर्ाभग्य

और बाधाओ ं को पूणभ रूप से तमटाने वाली साधना है जो की पहली बार में ही

अपना पूणभ प्रर्ाव तदखाती है .... तो कीतजये इस साधना को और रही बात

अनुर्व की तो वो स्वयं कररए और देतखये

PARAM DURLABH SOUBHAGYA VAASTU KRITYA MAHAYANTRA

स्त्रीपुत्रादि भोगसौरव्यजनन धर्ममाार्ाकामप्रिम |

जन्तनामयनम सुखास्पिमदमिं शीतार्मबुिाद्यमाायहम ||

वादपिेवगृहादिपुण्यमदखलं गेहात्सस्मुत्सपि््ते |

गेह पूवामुशदन्ततेन दवबुधााःश्रीदवस्वर्ममााियाः ||

स्त्री, पुत्र अदद के भोग,सुख,धमम,ऄथम,काम अदद देने वाला प्रादणयों का

सुखस्थल,सदी,गमी,वायु से रषा ा करने वाला गृह ही,दनयमानुसार गृह दनमामणकताम को

देवस्थान और बाबड़ी अदद दनमामण का भी पुण्य प्राप्त होता हैं.ऄतः दवश्वकमाम अदद देव

दिदपपयों ने सवमप्रथम गृह दनमामण का ही दनदेि ददया हैं.

(4)

यह श्लोक ही ऄपने अप में गृह की महत्वता को समझाने दलए पयामप्त हैं पर अज के समय में

एक पूणम रूप से दोष मुक्त गृह का दनमामण क्या हो सकता हैं? ,और आस पररपेषा में दजस दवज्ञानं

से हम पररदित हुए हैं वह हैं वास्तु दवज्ञान .

पहले हम देखते हैं की की वास्तु दोषः युक्त दनवास में रहने वाले व्यदक्तयों पर दकन दकन दोष

का अरोपण संभव हैं .

हर समय घर में ऊणात्मक उजाम का कहीं जयादा ऄसर व्यापत होना.

पररवार के सदस्यों में अपसी स्नेह का लगातार कम होते जाना और तनाब युक्त वातावरण का

हमेिा बने रहना.

पाररवार के सदस्यों की अदथमक ईन्नदत में लगातार वाधा अना.

साधना करने के दलए अधा ऄधूरा मन और साधना को बीि में ही छोड़ देने की प्रवृदि का

लगतार होना.

पररवार में ऄसमय मृत्यु हो जाना.

पररवार के सदस्यों का नैदतक और सममदजक दनयम का पालन नहीं करना.

पररवार में योग्य सदस्यों के दववाह में वाधा.

पदत पत्नी के अपसी व्यदक्तगत सबंधो में तनाव.

लगातार बीमाररयों का बने रहना.

अत्महत्या जैसी हीन प्रवृदतयों की और लगातार झुकाव.

जीवन के प्रदत ईत्साह हीन,ईमंगरदहत दृष्टी कोण.

मानदसक ऄवसाद का लगातार बने रहना.

साधना करने पर भी यथोदित मनोकुल पररणाम का न दमलना.

आस तरह से देखा जाए

तो सभी समस्याओं के मूल में कहीं न कहीं यह वास्तु दोष होता ही

हैं.

और यही ही नहीं,एक

ओर महत्वपूणम तथ्य हैं की आस कारण स्वत ही ग्रह वाधाएं भी

दनमामदणत होने लगती हैं कारण स्पस्ट हैं दक हमारे अवास स्थान में भी समस्त नवग्रहों का

अवास भी तो माना जाता हैं ,यह दबलकुल वैसा ही हैं जैसा की हमारे िरीर में नवग्रह का वास

होना.ऄतः ग्रह वाधा भी एक कारण बन जाता हैं.

(5)

िोष पूर्ा घर में रहने पर स्वत ही पञ्च महाभुतो की दस्र्दत में असंतुलन होने लगता हैं

और जो सारे सृष्टी का आधार हैं जब उनमे ही असंतुलन होगा तो आप ही सोचें की

दिर कहााँ से सौभाग्य आएगा? आप कैसे साधना कर पायेंगे.?

साधना करने के दलए तो एक मनोकुल वातावरण होना भी तो अवश्यक हैं,दबना ईसके साधना

करना कैसे संभव होगा?,और मान लीदजये दृढ दनश्चय से संपन्न कर ली भी यी तो भीईनको जो

साधनात्मक ईजाम प्राप्त हुयी भी हैं तो ईस वातावरण की ऊणात्मक उजाम से नष्ट हो जाएगी

और बहुत कम ही अपको पररणाम दमलेगा

.

यह एक सुदविाररत और वैज्ञादनक दृष्टी से युक्त कथन हैं की वातावरण व्यदक्त के मनोबल से

कहीं जयादा प्रभाव करता हैं.

उपर दलखे कुछ मूलभुत तथ्यों से अप जान सकते हैं की घर वास्तु दृष्टी से दोषयुक्त हैं या

नहीं ..

और जहााँ

तक जन्म कुंडली की बातअती हैं तो वहां भी दकसी व्यदक्त की तरह, ईस अवास

स्थान की भी कुंडली बनायीं जा सकती हैं.ईस पर से भी दकतना दोष हैं यह पता लगाया जा

सकता हैं, एक सामान्य सी बात हैं की ितुथम भाव व्यदक्त की ऄिल संपदि या ईसके अवास

का भी पररिायक होता हैं हैं ,वहां पर राहू ,िदन,मंगल जैसे ग्रहों का दस्थत होना या ईनकी

दृष्टी पढ़ना या ईनका योग होना भी आस बात का पररिायक हैं की आस ओर से व्यदक्त को

वाधाये होगी ही . यह नहीं तो गोिर के काल में भी ऄनेको ऄिुभता वाली दस्थदत ईत्पन्न हो

सकती हैं .

और यह ऄवस्था िुभ तो नहीं कहीं जा सकती हैं .

एक व्यदक्त जीवन भर की पूंजी संदित करके ऄपने दलए एक अवास का दनमामण करवाता हैं

और कइ कइ बार तो ईनके घर प्रवेि या कुछ ऐसे नषा त्रो का योग भी हो जाता हैं दजस कारण

ईनके दलए एक से एक बढ़कर समस्याए ईत्पन्न होती रहती

हैं वह एक ज्योदतष से दुसरे

ज्योदतष के पास भागता रहता हैं पर संतोष जनक हल भी कहााँ ईसे दमलता हैं .ऄगर दमले

भी तो आतना व्यय करना पड़ता हैं की.

ऄब आसका एक सरल सा ईपाय सामने अय हैं की फेंगसुइ जैसे दवधाओ का प्रयोग ,यूाँ तो हर

दकसी को ऄपने दहसाब से ईसे दजसमे ऄनुकूलता दमले ईस दवज्ञानं का प्रयोग करना ही

िादहये, यह दवज्ञानं बहुत ज्यादा ईपयोगी ईन देिो में हुअ हैं, जहााँ से यह अया हैं कारण ईन

देि की जलवायु और ऄन्य भौगोदलक कारण ..जैसे हमारे दलए दहमालय ईिर में हैं तो हमारे

(6)

दलए ईिर ददिा का जो महत्त्व हैं वह क्या िीन देि या ईन देिों में भी होगा जो दहमालय

के दूसरी और हैं.??

पर दनराकरर् के दलए दकया क्या जाए??

एक तरफ तो वास्तु िादस्त्रयों द्वारा जो तोड़ फोड़ की दवधा ऄपनाइ जाती हैं ईसका तो

सदगुरुदेव जी भी ऄपनी ऄसहमदत दे िुके हैं की यह भवन बनबाने के बाद ईदित नहीं

हैं.और वैसे भी आन ईपायों में जो धन रादि लगती हैं वह आतनी ऄदधक होती हैं की एक

सामान्य मध्यम वगीय पररवार ईस व्यवय को वहन करने की सोि भी नहीं सकता हैं .वही ाँ

फ्लेट में रहने वालों के दलए तो यह भी संभव नही हैं की वह तोड़फोड़ ऄपनी मजी से कर

सकें.

तब एक सामान्य सा सरल सा ईपाय सा अमने अता हैं दजसके बारे में सदगुरुदेव जी ने भी

बताया हैं वह

हैं एक

“अष्ट संस्काररत पारि दशवदलंग”

का स्र्ापन जो की

आवश्यक समस्त तांदत्रकऔर अन्य उपयोगी दियाओं द्वारा आपके दलए उपयोगी हो

सकें पर इस पारि दशवदलंग पर इतनी अदधक लागत आ जाती हैं की यह भी संभव

नहीं हैं दक हर व्यदि इसे प्राप्त भी कर सकें

.

तो ऄब क्या व्यदक्त दसफम हाथ पर हाथ धरे बैठा ही रहे??

ऐसा नहीं हैं सदगुरुदेव जी ने आन दवषमताओ को देखकर १९९१ की नवरादत्र में एक ऄदत

दवदिष्ट प्रयोग दजसे

“वास्तु सौभाग्य कृत्या साधना”

के बारे में बताया और आस साधना के

यन्त्र का दनमामण तो कदठन हैं ही

पर आसके पूणम रूप से फलीभुत होने के दलए जो भी अवश्यक

जड़ी बूदटयों के साथ ऄन्य बहुमूपय पदाथो सदममश्रण का हवन भी तो करना पड़ता हैं,आसके

साथ अवश्यक मंत्र जप करना पड़ता हैं.आस सभी को देखा जाए तो ईस पर एक यन्त्र की

लागत में 22 से 25 हज़ार का का खिम बैठता हैं .

ऄभी हाल ही में अररफ भाइ जी और मेरे साथ रघु भाइ जी भी आसी बात पर, अपसी दविार

दवमिम कर रहे थे, दक कैसे कोइ एक ऐसा यन्त्र ऄपने भाइ बदहनों को ईपलब्ध कराया जाए ,

जो दसफम ईस यन्त्र ईपलब्ध कराने के नाम पर कोइ तामबे का टुकड़ा नहीं बदपक जब वह ईसे

ऄपने हाथ में लें तो ईसकी ईजाम स्वयम भी ऄनुभव कर सकें, ऄपने भौदतक और

अध्यादत्मक जीवन में ऄसर स्वयम भी ऄनुभूत कर सकें.तब तो ऄथम हैं

.और हम सभी ने

दनश्चय दकया की क्यों न आस ऄद्भुत वास्तु सौभाग्य कृत्या यन्त्र को अपने भाइ बदहनों के दलए

ईपलब्ध कराया जाए,और

आस हेतु दजतना भी व्यव हो वह हम ही वहन करें क्योंदक लक्ष्मी

(7)

का स्थापन होना ऄगर जरुरी हैं तो सौभाग्य भी तो लक्ष्मी का ही एक रूप हैं और जब तक

सौभाग्य ही न बने, तब क्या ऄथम रखता हैं जीवन की ऄन्य ऄवस्था का??? पर जब

सौभाग्य की बात हो रही हो, तब दकसी एक व्यदक्त के दलए नहीं बदपक ईसके सारे पररवार के

दलए ही कोइ ऐसा दवधान हो तब न ऄथम हैं

ऄन्यथा जदटल कादममक दनयमो के कारण दकसी

एक का भाग्य भी दकसी ऄन्य ईसके दनकट पाररवार जनो के खराब भाग्य के कारण भी तो

प्रभादवत होगा ही.

क्योंदक पाररवार तो एक आकाइ हैं तो ईसके सारे भागों का ,सारे ऄंगो का

सौभाग्य युक्त होना भी अवश्यक हैं,तभी तो जीवन का एक ऄथम हैं और दफर साधना ऄसर

ईन्हें दमलेगा .

ऄतः यह जब दनदश्चत हो गया की आस यन्त्र का दनमामण करना हैं,

पर आस यन्त्र के दनमामण में यह

अवश्यक हैं की व्यदक्त दविेष के नाम से ईसके पाररवार के दलए संकदपपत करके आसकी

समस्त तांदत्रक और मादन्त्रक दियाओं के साथ ऄदत दवदिष्ट हवानात्मक जो भी

प्रदिया हैं

वह भी पूणमता के साथ समपन्न की जाए .

यह भाग ऄथामत यन्त्र का पूणमता के साथ समष्ट दियाओं युक्त दनमामण और प्राण प्रदतष्ठा अदद

कायम तो हम कर लेंगे पर दजसके पास यह यन्त्र होगा ईसे

21 अप्रैल 2013

को ही यह

आस यन्त्र पर प्रयोग भी करना हैं और

यह प्रयोग प्राताः काल ही होगा .इसमें मात्र तीन

घंटे का आदधकतम समय लगेगा.यह दसिा एक दिवसीय प्रयोग हैं.

२१ ऄप्रैल की

महत्वता हम सभी जानते हैं ही .आस जैसा दुलमभ और ऄदत महत्वपूणम समय, एक दिष्य के

दलए दफर कहााँ .

इस बार २१ अप्रैल को “कामिा एकािशी दिवस” हैं, इसका नाम

ही आपको इसका अर्ा समझाने के दलए पयााप्त हैं दक

समस्त मनोकामना पूदता दिवस

. वह भी शुक्ल पक्ष अर्ाात दजसमे चन्र कलाओं में लगातार बढ़ोत्तरी होती हैं, इस

तरह से शुक्ल पक्ष का यह गुर् भी इस दिवस पर संगुदित हो गया .अप्रेल मॉस में

इस समय, सूया जो आत्समा का प्रतीक हैं, जो जीवन में आगे बढ़ने का प्रतीक है जो

नवग्रहों के प्रार् भी कहे जा सकते हैं, जो नव ग्रहों को दनयंदत्रत भी करने में समर्ा हैं

वह अपनी उच्च रादश में होंगे.और भवन, भूदम के प्रतीक मंगल ग्रह का भी अपनी ही

रादश में होना अत्सयंत हो सौभाग्यिायक हैं .

ऄगर आन षा णों का प्रयोग करके मात्र तीन घटें का यह एक ददवसीय प्रयोग संपन्न कर दलया

जाए तो अपके पररवार के दलए यह साधना पूरी होती हैं और यह सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र

पूणम फलदायी हो जाता हैं .

(8)

आस ददन के ऄलावा कोइ और ददवस आस प्रयोग के दलए नहीं हैं .

और जब हम यह यन्त्र दनिुक्ल ईपलब्ध करवा रहे हैं तो कुछ दनयम भी हैं .

पहला तो यह की आस हेतु अपको आ मेल

nikhilalchemy2@yahoo.com पर अप भेज

दें और subject /दवषय में स्पष्ट दलखे की “ सौभाग्य वास्तु कृत्या यन्त्र हेतु “.

अप ऄपना पूरा नाम और पता दपन कोड के साथ ईसी आ मेल में भेज दें .

हमने आस हेतु जो ऄंदतम समय सीमा रखी हैं वह हैं 1 ऄप्रैल 2013.आस ददन के बाद अने

वाली दकसी भी प्रकार की कोइ भी request आस यन्त्र के दलए दकसी भी हाल में स्वीकायम

नहीं होगी .

यह यन्त्र पूणमतया दनिुपक हैं आसके दलए अपसे भी दकसी भी प्रकार का कोइ भी िुपक

नहीं दलया जा रहा हैं यह NPRU पररवार की ओर से अप सभी स्नेदहयों को ईपहार स्वरुप

हैं.

हमारे द्वारा आसे रदजस्टडम डॉक से भेजा जायेगा ,यह सारा खिम भी हम वहन करेंगे .और

ऄगर दकसी को कोररयर से यह यंत्र ऄपने पते पर मगवाना िाहता हैं तो ईस हेतु अपको

कोररयर िाजम लगेगा .(यह स्वाभादवक सी बात हैं )

आस यन्त्र के दनमामण/प्राण प्रदतष्ठा /और हवानात्मक,मादन्त्रक तांदत्रक प्रदियाओं में आतना

ऄदधक व्यव अता हैं की आसे दकसी भी हालत में दुबारा नहीं भेजा जायेगा.

दमत्रो, अपका स्नेह और सहयोग हमारे आस पररवार के प्रदत आतना ऄदधक हैं ,ईस स्नेह की

ईष्मा के कारण, हम भी यह संभव कर पाते हैं .

और ऄंत में आतना सदवनय दनवेदन हैं ही. दकसी ऄदत बुदिमान को आस यन्त्र के बारे में कोइ

संदेह हो तो वह कृपया आसे न मगवाये .वह ऄन्यत्र ऄपने दहसाब से योग्य जगह से प्राप्त कर लें

तो ईनके दलए दलए भी कहीं ज्यादा ईदित रहेगा .

CHANDRINI PRAYOG

नवग्रह की साधना ईपासना हमारी संस्कृदत का एक ऄदभन्न ऄंग है, तथा सभी ग्रह का ऄपना

एक ऄलग ही महत्त्व है. ज्योदतष गणना तथा तंत्रज्योदतष जैसी ईच्ितम दवद्याओ का अधार

(9)

ग्रह ही तो है. हमारे जीवन की दनत्य दिया कलापों का अधार भी आन ग्रहों की दस्थदत ही है यह

एक दनदवमवाददत सत्य है, सभी व्यदक्तयो के जीवन िम का अधार आन ग्रहों की द्रदष्ट एवं स्थान

से प्रमाण से होता है यही ज्योदतष दवज्ञान का भी दसिांत है. कइ बार दवदवध कारणों से आन

ग्रहों से सबंदधत नकारात्मक ईजाम के कारण व्यदक्त के जीवन में सबंदधत ग्रह जन्य कइ प्रकार

की समस्याओ का सामना भी करना पड़ सकता है यह तथ्य ज्यादातर व्यदक्त अज स्वीकार

करने लगे है.

तांदत्रक वाग्मय में कइ प्रकार के ऐसे दुलमभ दवधान है दजसके माध्यम से ग्रहों के कारण होने

वाली समस्याओ का दनराकरण दकया जा सकता है तथा ईससे भी अगे, आन ग्रहों तथा ईनकी

िदक्तयों से सबंदधत साधनाओ का सहारा ले कर ईनकी कृपा प्राप्त कर दवदवध लाभ को प्राप्त

दकया जा सकता है. आस द्रदष्ट से सूयम तथा िदन ग्रह से सबंदधत साधनाओ का बहोत ही प्रिार

प्रसार रहा है. लेदकन आसका ऄथम यह नहीं है की दूसरे ग्रह तथा ईनसे सबंदधत दवधान का

प्रिलन में नहीं है, भले ही जनमानस के मध्य यह दवधान प्रस्तुत न हो लेदकन तंत्र दसिो के

मध्य आस प्रकार के दुलमभ दवधानों का प्रिलन ज़रूर रहा है. आसी िम में एक दुलमभ िम है

िदन्द्रदण साधना. पौरादणक द्रदष्ट से िन्द्र की कइ पदत्नयों का दववरण प्राप्त होता है तथा ईनकी

दवदवध कला िदक्तयों के बारे में भी ज्ञात होता है.

िदन्द्रदण िन्द्र ग्रह की एक एसी ही कला

िदक्त है जो की ऄपने अप में मनुष्य के जीवन को पूणम रूप से परावदतमत करने में समथम है.

जल गमन जेसी दुलमभतम साधना भी देवी िदन्द्रदण के माध्यम से सम्पन की जाती है. कुछ

दवद्वान तादन्त्रको का यह मत है की िदन्द्रदण देवी वस्तुतः भगवती काली की ही खंड ऄंि

िदक्त है. आस द्रदष्ट से ईनको योदगनी स्वरुप में भी देखा जाता है तथा कइ बार भगवती की सेवा

में सतत रत देवी के स्वरुप में भी. पुरातन काल में देवी से सबंदधत कइ तीक्ष्ण प्रयोग जलगमन

की दसदि प्रादप्त के दलए दकये जाते थे,

लेदकन प्रस्तुत प्रयोग राजदसक भाव से युक्त प्रयोग है

दजसको सम्पन करने के बाद साधक कइ लाभों की प्रादप्त कर सकता है. साधक ऄपने दलए या

दफर दूसरे दकसी व्यदक्त के दलए यह प्रयोग सम्पन कर सकता है.

(10)

दजन व्यदक्तयो का िन्द्र कमजोर हो या यथायोग्य पररणाम न देता हो यह प्रयोग करने पर ईनको

ऄनुकूलता की प्रादप्त होती है.

जो भी व्यदक्त को मानदसक प्रताडना होती हो, मानदसक रोग है तथा दहन् भावना से ग्रस्त है,

ईनके दलए यह प्रयोग श्रेष्ठ है. ऄगर व्यदक्त िाहे तो संकपप ले कर यह प्रयोग ऄपने दकसी भी

सुपररदित व्यदक्त के दलए भी सम्पन कर सकता है.

मानदसक तुदष्ट तथा पाररवाररक िांदत के दलए यह प्रयोग ईिम है. कपपनायोग के ऄभ्यासी

साधको के दलए यह एक ऄमूपय प्रयोग है दजसे सम्पन करने के बाद योगाभ्यास में तीव्रता

अती है.

भावनात्मक ऄसंतुलन से बिने के दलए तथा िोध अदद ऊण भावो का नकारात्मक पररणाम

से भदवष्य को बिाने के दलए भी यह साधना ऄत्यंत ईपयोगी है.

यह साधना साधक दकसी भी पूदणममा को सम्पन करे ऄगर यह संभव न हो तो िुक्ल पषा के

सोमवार से िुरू करे. समय सूयामस्त के बाद का रहे.

आस साधना में साधक सफ़ेद वस्त्र तथा सफ़ेद असन का प्रयोग करे.

साधक स्नान अदद से दनवृत हो कर ईिर की तरफ मुख कर बैठ जाए. आसके बाद साधक एक

बड़ा सा तेल का दीपक स्थादपत करे.

साधक गुरुपूजन, गणेि पूजन सम्पन कर सवम प्रथम न्यास करे.

1 माला मूल िन्द्र मंत्र की करे. आस साधना के दलए साधक रुद्राषा , या स्फदटक की माला का

प्रयोग करे.

करन्यास

-श्रां अङ्गुष्ठाभयां नमाः

(11)

श्रीं तजानीभयां नमाः

श्रूं मध्यमाभयां नमाः

श्रैं अनादमकाभयां नमाः

श्रौं कदनष्टकाभयां नमाः

श्राः करतल करपृष्ठाभयां नमाः

अंगन्यास

-श्रां हृियाय नमाः

श्रीं दशरसे स्वाहा

श्रूं दशखायै वषट्

श्रैं कवचाय हूम

श्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्

श्राः अस्त्राय िट्

मन्त्र -

ॎ िां िीं िौं सः चन्राय नमः

(

OM SHRAAM SHREEM SHRAUM SAH CHANDRAAY NAMAH)

आसके बाद साधक दनमन िंदद्रदण मन्त्र का 11 माला जाप करे.

(12)

(

OM SHREEM CHANDRINI CHAARUMUKHI VIDYAAMAALINI HREEM

OM

)

जाप पूणम होने पर साधक िन्द्र तथा देवी िंदद्रनी को श्रिा सह वंदन करे तथा सफलता की प्रादप्त

के दलए प्राथमना करे. साधक माला का दवसजमन न करे आसको भदवष्य में भी िन्द्र समबंदधत

साधना के दलए प्रयोग में लाया जा सकता है.

CHANDRA GRAH ANUKOOL YANTRA SADHNA

नवग्रह में चन्द्र का स्थान बहोत ही महत्वपूर्ण है. व्यक्ति पर चंर का प्रभाव मानस, भावनाये, मातृभाव एवं मातृसुख, तथा कल्पना शक्ति पर क्तवशेष रूप से होता है. ऄगर व्यक्ति पर चन्द्र ग्रह का प्रभाव क्तवपरीत है तो एसी क्तस्थक्तत में व्यक्ति को क्तन्न समस्या का सामना क्तवशेष रूप से करना पतता है. मातृसुख का क्षय और मातृपक्ष में रोग मानक्तसक संतुलन का ऄयोग्य संचार तथा क्तहन् भावना मानक्तसक रोगों से ग्रक्तसत होना क्तनष्ठुरता का प्रवेश और मानव समुदाय से घृर्ा

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ऄज्ञात अशंका से ग्रक्तसत रहना अज के युग में व्यक्ति के जीवन में मानक्तसक समस्या का सामना कइ प्रकार से करना ही पतता है लेक्तकन कइ बार आस प्रकार के प्रभाव कइ प्रकार के मानक्तसक रोग को जन्द्म देता है. मानक्तसक रोग कइ प्रकार के मानक्तसक क्तवकास को रोक देता है और व्यक्ति का तथा ईसके पररवार का जीवन कष्टमय बन जाता है. ऄगर व्यक्ति आससे सबंक्तधत प्रयोग स््पन करता है तो चन्द्र ग्रह की कृपा प्राप्त होती है तथा आससे सबंक्तधत पक्षों में व्यक्ति को ऄनुकूलता क्तमलती है. यह प्रयोग साधक क्तकसी भी ग्रहर्काल या सोमवार को कर सकता है यन्द्र क्तकसी भी सफ़ेद कागज़ या भोजपर पर बनाया जा सकता है साधक सूयाणस्त के बाद यह प्रयोग करे तो ईत्तम है; वैसे साधक सोमवार को क्तदन में भी यह प्रयोग कर सकता है. सवण प्रथम साधक स्नान करे तथा सफ़ेद वस्त्र धारर् कर सफ़ेद असान पर ईत्तर क्तदशा की तरफ मुख कर बैठ जाए. ईसके बाद साधक कागज़ या भोजपर पर मूल ऄंक यन्द्र का क्तनमाणर् ऄष्टगंध से करे. ऄगर यह संभव ना हो तो साधक को हल्दी में पानी क्तमला कर ईस स्याही से यह यन्द्र बनाए. आसमें क्तकसी भी प्रकार की कलम का ईपयोग क्तकया जा सकता है. यन्द्र को धुप दे या ऄगरबत्ती प्रज्वक्तलत करे. आसके बाद साधक यन्द्र को ऄपने सामने रख कर क्तन्न ध्यान का ११ बार ईच्चारर् करे. ध्यान : श्वेत श्वेतांबरधरः श्वेताश्व: श्वेतवाहन | गदापाक्तर्क्तिबाहुश्च कतणव्यो वरद शशी. ध्यान के बाद व्यक्ति को चंर मंर की ११ माला मंर जाप सफ़ेद हकीक माला से स््पन करे. मन्त्र : ॐ श्वेत शुभ्राय शशश चन्त्राय सर्ााभीष्ट साधन कुरु कुरु नमः प्रयोग के बाद साधक भोज पर या कागज को पूजा स्थान में स्थाक्तपत कर दे तथा माला को भी रख दे. ऄगर साधक चाहे तो आस माला से व्यक्ति भक्तवष्य में आस यंर के सामने यही प्रयोग कइ बार कर सकता है.

Yantra Process to Make Saturn Planet Favourable ( ऱ ऱ य )

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सफलता पाने के श्रलए जीवन मे अत्म श्रवश्वास एक सबसे बडी अवश्यकता हैं , ऄब यह सफलता चाहे अध्याश्रत्मक क्षेत्र मे हो या भौश्रतक क्षेत्र मे ...पर श्रबना अत्मश्रवश्वास के .... बडे बडे वाक्य कह देने से तो अत्म श्रबश्वास नही बन जाता हैं जब सब कुछ सही चल रहा हो तब बात ऄलग हैं तब जो कहें सब ठीक हैं, पर जब सब टूट रहा हो ....नष्ट हो रहा हो जीवन के प्रश्रत श्रनराशा सी अ रही हो तब .. आस समय साधना ही एक ऐसा मागय सामने रखती हैं जो जीवन मे पुनः अशा का संचार कर देती हैं . साधक सामान्य रूप से नव ग्रह का महत्त्व श्रजतना होना चाश्रहए ईनके जीवन मे...खासकर साधना क्षेत्र ईतना नही समझते हैं आसे बस मात्र ज्योश्रतष तक ही सीश्रमत रख देते हैं जबकक वस्तु श्रस्थश्रत बहुत ही श्रवपरीत हैं . ग्रह राज्यं प्रयच्छनश्रत ग्रहा राज्यं हरश्रन्त च | ग्रहेस्तु व्याश्रपतम सवय जगदेतच्चराचराम ||

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ग्रह ही राज्य देते हैं और ग्रह ही राज्य का हर ण कर लेते हैं ,आन ग्रहों के प्रभाव मे सम्पूणय चर और ऄचर हैं , सभी ओर आनका प्रभाव व्याप्त हैं . नव ग्रह ही हमारे जीवन मे सुख दुःख , लाभ हाश्रन और अशा , ईमंग और अत्मश्रवश्वास का का रण होते हैं या बनते हैं. सदगुरुदेव जी ने एक साधक का ऄनुभव पश्रत्रका मे कदया था श्रजन्होंने ककसी श्रवशेष साधना मे छ या सात बार ऄसफल होने पर ऄपने गुरु से पूंछ कर नव ग्रह शांश्रत का ऄनुष्ठान ककया और साधना मे सफलता पायी .आस बात का पररचायक हैं कक नव ग्रहो का महत्त्व ककतना हैं . ठीक आसी तरह जीवन मे जब भी कुछ ऐसे श्रवपरीत ग्रहो का समय अये या गोचर वत ऄवस्था श्रजनकी श्रस्थश्रत साधक की कुंडली मे ठीक नही हैं तब स्वाभाश्रवक रूप से मन मे गहन श्रनराशा का अश्रवभायव होना स्वाभाश्रवक सा हैं . ज्योश्रतष मे सूयय को नव ग्रहो मे ग्रह राज की ईपाश्रध से श्रवभूश्रषत कर रखा हैं और यह ईश्रचत भी हैं सूयय देव की ईपयोश्रगता को ध्यान मे रखने पर . साथ ही साथ सूयय देव अत्मा के भी प्रतीक हैं ऊग्वेद कहते हैं .. “सूयय अत्मा जगतस्तस्थषचश ||” सूयय सबकी अत्मा हैं . श्रजनकी भी कुंडली मे यह सूयय तत्व कमजोर हैं स्वाभाश्रवक हैं कक ईनमे जल्दी ही श्रनराशा का बार बार अगमन होना , और यह श्रस्थश्रत ककसी भी दृष्टी से ठीक नही हैं . शांकर भाष्य कहता हैं ..

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“रश्मीना प्राणां ना रसानां च स्वीकर णा त सूययः ||” सूयय रश्रश्म ही समस्त प्राश्रणयों की शश्रि हैं . पर यह भी सच भी हैं कक जब अत्मा मे ही ईमंगयुि नही होगी तो शरीर तो ऄनुचर मात्र हैं ऄकेले शरीर कुछ भी नही कर सकता हैं . “ अरोग्यम भास्कराकदच्छेत “ मानश्रसक और बाह्य दोनों रोगों की श्रनवृश्रत सूयय ईपासना से हो जाती हैं . ऄगर सूयय से संबंश्रधत रत्न पश्रहने जाए तो कुछ और नयी समस्याए सामने अ सकती हैं कक वह ककस भाव के माश्रलक हैं या ईनको श्रस्थश्रत कैसी हैं आन सब बातों मे न जा कर यकद सूयय देव के तांश्रत्रक मंत्रो का सहारा श्रलया जाए तो पररश्रस्तश्रथयाूँ बहुत ही जल्दी ऄनुकूल मे अ सकती हैं यह अवश्यक भी हैं क्योंकक जीवन के हर क्षेत्र मे अत्मश्रवश्वास और ईत्साह ईमंग की अवश्यकता होती हैं और जीवन मे भी वहीूँ लोग ज्यादा सफल होंगे जो की गहन अत्मश्रवश्वास से युि होंगे .दुखी और श्रनराश लोगों के साथ कोइ भी नही रहना चाहता हैं . सूयय तत्व प्रधान व्यश्रि जीवन मे श्रनश्चय ही ईचाइया छूते जाते हैं ,भगवान हनुमान , अकद शंकराचायय , सदगुरुदेव , भगवान राम अकद सभी व्यश्रि सूयय प्रधान ही रहे हैं और आनका अज तक क्या प्रभाव और योग दान रहा हैं वह ककसी से छुपा नही हैं , नही कोइ पररचय का मोहताज हैं . सूयोपश्रनषद स्पस्ट करता हैं की

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सूयायद भवश्रन्त भूताश्रन सूयेण पाश्रलतानी च | सूयं लयं प्रापुयु य: सूययः सो sमेव च || सूयय ही जगत की ईत्पश्रि पालन और नाश के का रण बनते हैं . आन सूयय देव को ऄनुकूल करने के श्रलए यन्त्र श्रवज्ञानं मे भी एक प्रयोग हैं ईसे ईपयोग मे लाया जा सकता हैं . भोज पत्र मे लाल चन्दन से आस यंत्र का लेखन करना हैं , और कदन श्रनश्चय हीकदन सूयय वार मतलब रश्रववार होगा ,और ताम्बे के ताबीज मे आसे रखकर धारण ककया जा सकता हैं .यन्त्र की पहले पूजा ऄचयन जरुर कर ले धूप अकद से और पुरुष वगय आसे दाश्रहनी भुजा मे और स्त्री वगय आसे बायीं भुजा मे धारण कर ले .. यंत्र श्रनमायण के सभी सामान्य श्रनयम कइ कइ बार पोस्ट मे बताये गए हैं . ऄतः पुनः ईल्लेख ठीक नही हैं . अप सभी के जीवन मे सूयय तत्व प्रबल हो श्रजससे कक अप अत्मश्रवश्वास से लबालब भरे हो और एक योग्य साधक बन कर जीवन मे लाभ ईठाए .

- (BEEJOKT TANTRAM- ANU PARIVARTAN SOUBHAGYA TARINI PRAYOG)

“राश्रज्ञ चामात्यजो दोषः पत्नीपापं स्वभियरर |

तथा श्रशष्यार्जजतम् पापं गुरु: प्राप्नोश्रत श्रनश्रश्चतं ||”

सार संग्रह में कहा गया है की मंश्रत्रयों के द्वारा की गयी त्रुरटयों का फल राजा को भोगना पडता है,पत्नी के पाप से पश्रत ऄछूता नहीं रह सकता ईसी प्रकार श्रशष्य श्रजस भी पाप में संलग्न होता है ईसके

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ईपरोि ईश्रि को सदैव ही हृदयंगम करके तदनुरूप श्रवचार और व्यवहार करना ही श्रशष्यत्व की साथयकता कहलाती है | ककन्तु ये सब आतना सहज नहीं है,मनुष्य गलश्रतयों का पुतला होता है और लाख प्रयास करने पर भी प्रारब्ध,संश्रचत कमों से वो ऄछूता नहीं रह सकता है | रही बात कयमायमाण ऄथायत वतयमान के कमों की तो शायद ईसे हम बेहतर तरीके से सम्पाकदत करने का प्रयास कर सकते हैं ककन्तु ऄन्य दो पर ऄंकुश लगा पाना सरल कायय नहीं है | ईन्ही कमों की भुश्रि हेतु कालाश्रग्न हमारा क्षय करती है और ईसकी ऄश्रग्न में हमारा क्षरण होते होते एक ऐसा समय अता है जब हम समाप्त हो जाते हैं | ऄथायत हमारे प्रयत्नों की चरम पराकाष्ठा के बाद भी हम श्रजन पाप फलों को भोगते हैं हमारे ईन्ही पाप फलों को नष्ट करने में सद्गुरु की तपस्या का बडा श्रहस्सा लग जाता है | वस्तुतः हमारे शरीर का श्रजन ऄणुओं से या कणों से श्रनमायण होता है,ईपरोि तीन प्रकार के कमों की वजह से आन ऄणुओं का एक बडा भाग श्रवकृत अवरण से ढका रहता है और आस अवरण रुपी मल को नष्ट करने में हमारे पुण्य कमय लगातार कायय करते रहते हैं और यकद भाग्य ऄच्छा रहा और आसी जीवन में सद्गुरु की प्राश्रप्त हो गयी तो वे ऄपनी साधना शश्रि या प्राण ईजाय से श्रशष्य या साधक की ज्ञानाश्रग्न को प्रज्वश्रलत कर देते हैं और श्रशष्य ईस ज्ञानाश्रग्न में श्रनरंतर मंत्र का ग्रास देता हुअ ईस ऄश्रग्न की तीव्रता को बढा कर श्रवकृत अवरण को भस्मीभूत करने की और ऄग्रसर हो जाता है और यकद ईस ऄश्रग्न को वो सतत तीव्र रख पाया तो वो ऄपने लक्ष्य को प्राप्त ही कर लेता है,तब शेष रह जाते हैं तो ईसकी श्रवशुद्धता और श्रवशुद्धता का श्रनमायण करने वाले श्रवशुद्ध ऄणु | “यत् पपडे तत् ब्रह्ांडे” की ईश्रि पर क्या कभी श्रवचार ककया है,ऄरे भाइ ईसी में तो सारा रहस्य श्रनश्रहत है,बस अवश्यकता है ईस ईश्रि के गूढाथय को समझने की | और श्रजस कदन हम आस ऄथय को समझ गए तब हमें ज्ञात हो जायेगा की अश्रखर मनुष्य को इश्वर की सवोिम कृश्रत क्यूूँ कहा जाता है | जी हाूँ मनुष्य ही तो सवोिम कृश्रत है नहीं तो ईपरोि ईश्रि की जगह “यत् देवे तत् ब्रह्ांडे” भी कहा जा सकता था, क्योंकक मनुष्य की दृश्रष्ट में देव वगय सवोिम योश्रन हैं| ककन्तु ये पूणय सत्य नहीं है वस्तुतः देव योश्रन भोग योश्रन है,ईन्हें श्रजन कायों के श्रलए ईस परम तत्व ने श्रनर्जमत ककया है वे मात्र ईन्ही कायों के श्रलए ईकिष्ट होते हैं कभी भी ईससे कम या ज्यादा कायय वो सम्पाकदत नहीं कर सकते हैं,ऄथायत जल का कायय मात्र श्रभगोना है वो दहन करने या सुखाने का कायय नहीं कर सकता है,प्राकृश्रतक शश्रि का रूप होने के कारण ईनकी आच्छा शश्रि,कयमाया शश्रि और ईनकी ज्ञान शश्रि श्रनश्रश्चत होती है | सम्पूणय ब्रह्ाण्ड श्रशव और शश्रि के सश्रम्मश्रलत रूप से ईपजा है और आसके प्रत्येक कण और ईस कण का श्रनमायण करने वाले सभी ऄणुओं में ईनकी ही तो ईपश्रस्थश्रत है क्यूंकक वे ही सत्य हैं और हैं श्रवशुद्ध भी | जीवन की तीन ही तो ऄवस्था हैं सृजन,पालन और संहार | जन्म का कायय सृजन तत्व का है श्रजसे ज्ञान शश्रि श्रनष्पाकदत करती है और ब्रह्ा आसे गश्रत देते है,सृजन के पश्चात पालन तत्व की ऄवस्था की ईत्प्रेरणा आच्छाशश्रि प्रदान करती है और संहार तत्व की ईपश्रस्थश्रत पररणाम है कयमाया शश्रि का | मात्र मनुष्य में ही ये क्षमता है की वो आन तीनों शश्रि की मात्र प्रचुर से प्रचुरतम कर सके,क्योंकक ईसकी देह ऄथायत पपड का श्रनमायण

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श्रजन ऄणुओं से होता है वे ऄणु आन्ही त्रयी शश्रियों से पररपूणय होते हैं,ककन्तु मात्र मल अवरण से ढके होने के कारण मनुष्य ईन शश्रियों का समुश्रचत प्रयोग नहीं कर पाता है,देव वगय भी आन्ही कणों से बनते हैं ककन्तु श्रजस कायय के श्रलए वे ईकिष्ट हैं ईससे कम या ज्यादा की न तो ईनमे कयमाया शश्रि ही होती है न आच्छा शश्रि ही | वस्तुतः कुंडश्रलनी की गुप्तता के कारण ही देव वगय की शश्रि की सीमा होती है, वे ऄपनी आच्छाओं को ना ही बढा सकते हैं और ना ही कयमाया को तीव्रता दे सकते हैं,हाूँ ये ऄवश्य है की जो शश्रि ईनमे होती है वो श्रवशुद्ध रूप में होती है और रूप भी कमय गत मल से मुि होता है |मात्र हम में ही कुंडश्रलनी का स्वरुप प्रकट ऄवस्था में होता है और हम ज्ञान,आच्छा और कयमाया शश्रि की तीव्रता या मात्र को बढा या घटा सकते हैं,आसी कारण ईस परम तत्व को भी ऄवतार के श्रलए नर देह ही चुनना पडता है |मनुष्य का सम्पूणय शरीर आन्ही ईजाय और शश्रि कणों से श्रनर्जमत होता है | अवशयकता है आन शश्रि ऄणुओं द्वारा श्रनर्जमत कणों को कमयगत मलावरण से मुि कर देने की |तब मात्र श्रवशुद्धता ही शेष रह जायेगी और आसके बाद सफलता,ऐश्वयय, सौभाग्य और पूणयत्व की प्राश्रप्त तो होगी ही| श्रजस दुभायग्य के कारण पग पग पर ऄपमान,श्रनधयनता,ऄवसाद,ऄवनश्रत और ऄपूणयता की प्राश्रप्त होती है यकद ईस दुभायग्य को ही भस्मीभूत कर कदया जाये तो श्रशवत्व की प्रखरता और श्रनखर कर हमारे सामने दृश्रष्टगोचर होती है | तब ना तो पग पग पर कोइ ऄपमान होता है और न श्रतल श्रतल कर मरना ही,तभी “मृत्योमाय ऄमृतं गमय” का वाक्य साथयक होता है | होली का पवय ऐसा ही पवय होता है जो श्रवश्रवध सफलतादायक योगों से श्रनर्जमत होता है और आस रात्री को जब होश्रलका दहन का मुहतय होता है तो वस्तुतः वो मुहतय दुभायग्य दहन का मुहतय है,सदगुरुदेव बताते थे की ये संयमाांश्रत काल है,ये मुहतय है ब्रह्ांडीय जागृश्रत और ब्रह्ांडीय चेतना प्राश्रप्त का,आस काल श्रवशेष में साधनाओं के द्वारा जहाूँ मनोकामना पूती में सफलता पायी जा सकती है वही यकद गुरु कृपा हो तो ईन रहस्यों का भी ज्ञान प्राप्त ककया जा सकता है श्रजनके द्वारा ऄणुओं को मलावरणों से मुि कर ईनकी नकारात्मकता को हटाया जा सकता है और ईन का पररवतयन सकारात्मकता में करके पूणय चेतना और श्रवशुद्धता की प्राश्रप्त की जा सकती है | आस संयमाांत काल में पररवतयन से सम्बंश्रधत साधनाओं को कही ऄश्रधक सरलता से संपन्न कर सफल हुअ जा सकता है | भगवती तारा का एक स्वरुप ऐसा भी है श्रजसे सहस्त्रश्रन्वत्देहा तारा या सौभाग्य ताररणी कहा जाता है और ये स्वरुप श्रशवऄवतार जगद्गुरु अद्य शंकराचायय जी द्वारा प्रणीत है,आस स्वरुप का ऄथय है श्रजनकी सहस्त्र देह हो और जो ऄपनी ऄनंत वेधन कयमाया द्वारा साधक के ऄणु-ऄणु में पूणय पररवतयन कर देती है चाहे ईसका कैसा भी दुभायग्य हो प्रारब्ध कमय जश्रनत दोष और िाप से वो शाश्रपत हो तब भी ये प्रयोग ईसके दोषों को श्रनमूयल कर ईसे पूणयत्व,सौभाग्य,सम्मोहन,ऐश्वयय और सफलता की प्राश्रप्त करवाता ही है.आसे संपन्न करने के दो तरीके मुझे मास्टर से श्रमले हैं और ईन्होंने सदगुरुदेव से प्राप्त दोनों पद्धश्रतयों का प्रयोग कर स्वयं ऄनुभव ककया हैं ईनमे से जो ऄत्यश्रधक सरल और मात्र एक कदवसीय पद्धश्रत को मैं यहाूँ

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