Aayushi International Interdisciplinary Research Journal (AIIRJ)
VOL- IX ISSUE- VIII AUGUST 2022 PEER REVIEW
e-JOURNAL IMPACT FACTOR
7.331 ISSN
2349-638x
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Chief Editor: - Pramod P. Tandale (Mob.08999250451) website :- www.aiirjournal.com
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राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के हिकास में मिात्मा गाांधी का योगदान :
प्रा. डॉ.रमेश हिठोबा काांबळे
(अध्यक्ष, हिन्दी हिभाग ) िसंतराि काळे मिाहिद्यालय, ढोकी ता.हि.उस्मानाबाद
रा
ष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी के हिकास में मिात्मागांधी का योगदान अभूतपूिव रिा िै। उन्िोंने किा था हक 'राष्ट्रभाषा के हबना कोई भी राष्ट्र गूंगा िो सकता िै'।
भारतीय भाषाओं के प्रहत हिशेषत: हिन्दी के प्रहत उनका
लगाि भारत आने से पिले दहक्षण अहिका के
प्रिासकाल के दौरान िी था। दहक्षण अहिका के पत्र 'इंहियन ओपीहनयन' 1906 में उन्िोंने अपनी बात स्पष्ट्ट करते िुए हिन्दी को नम्र, और ओिस्िी के रूप में
स्िीकार हकया था। मिात्मा गांधी की मातृभाषा गुिराती
थी और उन्िें अंग्रेिी भाषा का उच्च कोटी का ज्ञान था
हिर भी सभी भारतीय भाषाओं के प्रहत उनके मन में
हिहशष्ट्ट सम्मान की भािना थी। प्रत्येक व्यक्तत अपनी
मातृभाषा में हशक्षा प्राप्त करे, उसमें कायव करें हकन्तु देश में सिाहधक बोली िाने िाली हिन्दी भाषा भी िि सीखे
यि उनकी प्रबल इच्छा थी।
गांधीिी भाषा को माता मानते थे तथा हिन्दी का
सबल समथवन करते थे। उन्िोंने 'हिन्द स्िराि'(सन्
1909ई.) में अपनी भाषा-नीहत की घोषणा इस प्रकार की
थी- "सारे हिन्दुस्तान के हलए िो भाषा चाहिए, िि तो
हिन्दी िी िोना चाहिए। उसे उदूव या नागरी हलहप में हलखने
की छूट िोना चाहिए। हिन्दू-मुसलमानों के संबंध ठीक रिें, इसहलए हिन्दुस्ताहनयों को इन दोनों हलहपयों को िान लेना िरूरी िै। ऐसा िोने से िम आपस के व्यििार में
अंग्रेिी को हनकाल सकेंगे।"1
मिात्मा गांधीिी ने भारत आकर अपना पिला
मित्िपूणव भाषण 6 िरिरी 1916 को बनारस में हदया
था। उस हदन भारत के िायसराय लािव िाहििंग ििााँ
बनारस हिन्दू हिश्िहिद्यालय का हशलान्यास करने आए थे। मदन मोिन मालिीय के हिशेष हनयंत्रण पर मिात्मा
गांधी भी इस समारोि में शाहमल िुए थे। मंच पर लािव
िाहििंग के साथ एनी बेसेंट और मालिीयिी भी थे।
समारोि में बिी संख्या में देश के रािा-मिारािा भी
शाहमल िुए थे। ये लोग देश के कोने-कोने से तीस हिशेष रेलगाहियों से आए थे। मालिीयिी के आग्रि पर िब मिात्मा गांधी बोलने खिे िुए तो सभी लोग उनका
भाषण सुनकर अिाक् िो गए।
सिवप्रथम उन्िोंने समारोि की कारविाई एक हिदेशी भाषा अंग्रेिी में चलाए िाने पर आपहि की ओर दु:ख िताया। हिर उन्िोंने काशी हिश्िहिद्यालय मंहदर की गहलयों में व्याप्त गंदगी की आलोचना की। इसके
बाद उन्िोंने मंच पर और सामने बैठे रािा-मिारािाओं
की उपक्स्थहत में देश के असंख्य दहरद्रों की दारून क्स्थहत का ध्यान हदलाया। िब तक देश का अहभिात िगव इन मूल्यिान अभूषणों को उतारकर उसे देशिाहसयों की
अमानत समझते िुए पास निीं रखेगा, तब तक भारत की
मुक्तत संभि निीं।
इसके बाद गांधीिी ने 20 अततुबर 1917 इ.को
गुिरात के हितीय हशक्षा सम्मेलन में हदए गए अपने
भाषण में राष्ट्रभाषा के कुछ हिशेष लक्षण बताए थे, िे
इस प्रकार िै –
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1) िि भाषा रािकमवचाहरयों के हलए आसान िो।
2) उस भाषा के िारा भारत िषव के परस्पर धार्ममक, आर्मथक और रािनैहतक व्यििार िो सके।
3) उस भाषा को देश के अहधकांश लोग बोलते िो।
4) िि भाषा राष्ट्र के हलए सरल िो।
5) िि भाषा क्षहणक या अल्पस्थायी क्स्थहत के ऊपर हनभवर न िो।
अत: किा िा सकता िै हक पााँच लक्षणों से युतत हिन्दी भाषा की समता करनेिाली कोई और भाषा िै िी
निीं। हिसे उिर में हिन्दू और मुसलमान बोलते िै और देिनागरी या िारसी में हलखते िैं। 20 अततुबर के बाद 11 निम्बर 1917 को हबिार के मुिफ्िरपूर शिर में
भाषण करते समय गांधीिी ने किा, "मैं किता आया िूाँ
हक राष्ट्रीय भाषा एक िोनी चाहिए और िि हिन्दी िोनी
चाहिए। िमारा कतवव्य यि िै हक िम अपना राष्ट्रीय कायव हिन्दी भाषा में करें। िमारे बीच िमें अपने कानों में हिदी
के िी शब्द सुनाई दें, अंग्रेिी के निीं। इतना िी निीं,
िमारी धारा सभाओं में िो िाद-हििाद िोता िै, िि भी
हिन्दी में िोना चाहिए। ऐसी क्स्थहत लाने के हलए मै
िीिन-भर प्रयत्न करूंगा।"2 इस दृक्ष्ट्ट से गांधीिी पिले
व्यक्तत थे, हिन्िोंने हिन्दी के राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार के
हलए सुहिचाहरत योिना प्रस्तुत की और हिन्दी प्रचार के
कायव को हमशनरी स्िरूप प्रदान हकया।
सन् 1918 में गांधीिी ने इंदौर हिन्दी साहित्य सम्मेलन के आठिें अहधिेशन के अपने भाषण में किा
था "भाषा माता के समान िै। माता पर िमारा िो प्रेम
िोना चाहिए,िि लोगों में निीं िै। हशहक्षत िगव अंग्रेिी के
मोि में िाँस गया िै और अपनी राष्ट्रीय मातृभाषा से उसे
असंतोष िो गया िै। पिली माता से ( अथात् अंग्रेिी से)
िो दूध हमलता िै, उसमें ििर और पानी हमला िुआ िै
और दूसरी माता से (अथात् हिन्दी से) शुद्ध दूध हमलता
िै। हबना इस शुद्ध दूध के िमारी उन्नती िोना असंभि िै।
पर िो अन्धा िै, िि देख निीं सकता और गुलाम निी
िानता हक अपनी बेहियााँ हकस तरि तोिे। पचास िषों
से िम अंग्रेिी के मोि में िाँसे िै। िमारी प्रिा अज्ञान में
िूबी िै…. िमें ऐसा उद्योग करना चाहिए हक एक िषव में
रािकीय सभाओं में, कांग्रेस में, प्रांतीय सभाओं आहद में
अंग्रेिी का व्यििार हबल्कुल त्याग दें। अंग्रेिी
सिवव्यापक भाषा िै पर यहद अंग्रेि सिवव्यापक न रिेंगें, तो अंग्रेिी भी सिवव्यापक न रिेगी। अब िमें अपनी
मातृभाषा को नष्ट्ट करके उसका खून निीं करना चाहिए।
आपसे प्राथवना करता िूाँ हक आप हिन्दी को भारत की
राष्ट्रभाषा बनाने का गौरि प्रदान करें।''3 इस प्रकार इंदौर साहित्य- सम्मेलन के अिसर पर गांधीिी ने हिन्दी
के प्रचार के हलए एक बिुत िी मित्िपूणव कायव का
आरंभ कराया हिसका संबंध दहक्षण भारत में हिन्दी के
प्रचार से था।
सन 1920 में गांधीिी ने मद्रास प्रेसीिेंसी की
िनता से अपील की हक िि लोगों िारा हिन्दी हसखने की
राष्ट्रीय आिश्यकता को स्िीकार कर ले। इसके बाद मुख्यता: हिन्दी साहित सम्मेलन के तत्िाधान में कई अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी के प्रसाराथव संगठन बनाए गए। गांधीिी ने िनता से यिी किा हक मेरे िीिन में
मूलभूत रूप से दो हसद्धान्त िै - "अगर मुझे अकेले िी
छोि हदया आए तो आप मुझे अपनी शक्तत भर सूत कातने और दिहचि िोकर हिन्दुस्तानी की पुस्त कों को
पढ़ने िुए पाएंगें।"4 इस प्रकार से लोगों को हिन्दी के
प्रहत हिश्िास हदलाते िुए तानाशािी के हिरोध में खिे
िोकर किते िै- अगर मेरे िाथों में तानाशािी सिा िो, तो
मैं आि से िी हिदेशी माध्यम के िहरए दी िानेिाली
िमारे लिकों और लिहकयों की हशक्षा बन्द कर दूाँ और सारे हशक्षकों और प्रोिेसरों से यि माध्यम तुरन्त बदलिा
दूाँ या उन्िें बखास्त करा दूाँ"5
गांधीिी हिन्दी को लोगों को समझने के हलए आसान मानते थे और हिदी के प्रहत अहधक लगाि रखते
िुए किते िै- "हिदी िी भारत की राष्ट्रभाषा िो सकती िै।
हकसी भी भाषा को राष्ट्रभाषा पद पर आरूढ िोने के
हलए ऐसा िोना चाहिए, हिससे उसको सिव साधारण आसानी से समझ सके"6 हिदी के सिाल को गांधीिी
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केिल भािात्मक दृष्ट्टी से िी मित्िपूणव निीं मानते थे, अहपतु उसे एक राष्ट्रीय आिश्यकता के रूप में भी देखने
पर िोर देते थे। 10 निम्बर 1921 के 'यंग इंहिया' में
उन्िोंने हलखा ," हिन्दी के भािनात्मक अथिा राष्ट्रीय मित्ि की बात छोि दें तो भी यि हदन-प्रहतहदन अहधकाहधक आिश्यक मालूम िोता िा रिा िै हक तमाम राष्ट्रीय कायवकताओं को हिन्दी सीख लेनी चाहिए और राष्ट्र की तमाम कायविािी हिन्दी में िी की िानी
चाहिए।"7 इस प्रकार असियोग आंदोलन के दौरान गांधीिी ने पूरे देश में हिन्दी का राष्ट्रभाषाके रूप में प्रचार कािी िोरदार ढंग से हकया और उसे राष्ट्रीय एकता, अखंिता, स्िाहभमान का पयाय-सा बना हदया। गांधीिीने
अपने पुत्र देिदास गााँधी को हिन्दी-प्रसार के हलए दहक्षण भारत भेिा था। दहक्षण भारत हिन्दी प्रचार सभा की
स्थापना उन्िी की पहरकल्पना का पहरणाम िै। उन्िोंने
िधा में राष्ट्रभाषा प्रचार सहमहत की स्थापना हिन्दी के
प्रचार-प्रसार के उदेश्य से िी की थी तथा िन नेताओं को
भी हिन्दी में कायव करने के हलए प्रेहरत और प्रोत्साहित हकया था। उनकी प्रेरणा के िी पहरणामस्िरूप हिन्दीतर भाषा-भाषी प्रदेशों के स्ितंत्रता सेनाहनयों ने हिन्दी को
हसख हलया था और उसे व्यापक िन-सम्पकव का माध्यम बनाया था।
सन् 1925 में कांग्रेस के कानपूर अहधिेशन में
गांधीिी की, प्रेरणा से कांग्रेस की भाषाहनहत तय िो गई।
उसमें उन्िोंने आन्तरप्रान्तीय के हलए हिदी का प्रयोग करने की बात करते िुए किते िै -"आपकी अपनी
राष्ट्रभाषा िै, िो हिन्दी िै। आप आन्तरप्रान्तीय मामलों
में आसानी से उसका प्रयोग कर सकते िै। भले िी िि
टूटी-िूटी िो।”8 मिात्मा गांधी ने सभी भारतीय भाषाओं
का उहचत आदर और हिन्दी प्रहत सम्मान प्रकट करते िुए 17 मई 19942 तथा अगस्त 1946 में को किा
था,"मिान प्रांतीय भाषायों को उनके स्थान से च्युत करने
की कोई बात निीं िै तयोंहक राष्ट्रीय भाषा की इमारत प्रांतीय भाषाओं की नींि पर िी खिी की िानी िै। दोनों
का लक्ष्य एक-दूसरे की िगि लेना निीं, बक्ल्क एक-
दूसरे की कमी को पूरा करना िै।"9 इस प्रकार मिात्मा
गांधी के हिचार, मिान् भारतीय नेताओं की भािना और हिदी भाषा -भाषी िनता की हिशाल संख्या को दृक्ष्ट्टगत रखते िुए पयाप्त हचन्तन-मनन के उपरान्त भारतीय संहिधान हनमाताओं ने हिन्दी को भारतीय संहिधान में
रािभाषा की प्रहतष्ट्ठा प्रदान की थी।
िब भारत को स्ितंत्रता हमली थी, ऐसे मािौल में एक हिदेशी पत्रकार मिात्मा गााँधी से हमला और अपना संदेश अंग्रेिी में किने के हलए किा। थोिी देर तक गांधी िी शांत बने रिे और उस पत्रकार को उिर हदया हक- 'दुहनया से कि दो हक गांधी अंग्रेिी निीं
िानता'। गांधी िी के अहभयान का पहरणाम यि िुआ हक उिर प्रदेश, हबिार तथा अन्य क्षेत्रों के साहित्यकारों ने
िनपदीय भाषा को भूलकर राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी
के हिकास के हलए अपनी कलम चलाई तथा हिन्दी के
हिकास में योगदान देना अपना राष्ट्रीय धमव समझा।
सांदभभ :
1) आिकल - अततूबर 2015 कुमार कृष्ट्णण का
लेख, पृ.7
2) आिकल - अततूबर 2015 कुमार कृष्ट्णण का
लेख, पृ.9
3) हिन्दी राष्ट्रभाषा, रािभाषा, िनभाषा- शंकर दयाल हसि प्र.45
4) यंग इंहिया 2 िरिरी 1921 5) नििीिन 2 हसतम्बर 1921 6) हलिर 21 अततूबर 1925 7) यंग इंहिया 10 निम्बर 1921 8) अिकल अततूबर 2015 पृ. 9 9) आिकल अतटूबर 2015 प्र.9