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Aayushi International Interdisciplinary Research Journal (AIIRJ)

VOL- VII ISSUE- VIII AUGUST 2020 PEER REVIEW

e-JOURNAL IMPACT FACTOR

6.293 ISSN

2349-638x

Email id’s:- [email protected],[email protected] I Mob.08999250451 website :- www.aiirjournal.com

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हिंदी व्यंग्य निबंध और शरद जोशी का सानिंत्य

डॉ. प्रकाश निष्णु काम्बले

सहायक प्राध्यापक, महावीर महाववद्यालय, कोल्हापुर शोधसार :

साहित्य का उद्देश मानव जीवन को स्वस्थ, स ुंदर तथा उद्दात्त बनाना रिा िै। साहित्यकार अपनी सामाहजक दृष्टि से समाज में व्याप्त हवसुंगहतयों, हवषमताओुं, अमानवीयता, अहनटि रूहि-प्रथा-परम्पराओुं की आलोचना कर समाज को जीवनापन की सिी हदशा हदखाता िै। इस दृष्टि से अन्य हवधाओुं की त लना में व्युंग्य का हवशेष मित्त्व िै। व्युंग्य की प्रेरणा िी समाजव्याप्त हवसुंगहतयाुं िोती िै। व्युंग्य का उद्देश स धार या पहरवततन िी िोता िै। हिदी व्युंग्य हनबुंध की परुंपरा समृद्ध रिी िै। इसके प्रवततक भारतेंद िहरश्चुंद्र रिे िैं। भारतेंद य ग के प्रतापनारायण हमश्र, बालकृटण भट्ट, बालम क ुंद ग प्त आहद रिे िैं। हिवेदी तथा श क्ल य ग में भी हिदी व्युंग्य हनबुंध का हवकास ि आ। हिदी व्युंग्य को समृद्ध तथा

हवकहसत करने का कायत आजादी के बाद के काल के परसाई, जोशी, घोंघी, त्यागी, कोिली, प णताम्बेकर आहद व्युंग्यकारों िारा हकया गया।

शरद जोशी ने अपने समय तथा सुंमाज में व्याप्त हवसुंगहतयों को अपने हनबुंधों के िारा अहभव्यक्त हकया। उनके साहित्य में अहधकतर राजनीहतक व्युंग्य नजर आता िै।

बीज शब्द : व्युंग्य, व्युंग्य हनबुंध, शरद जोशी

मूल आलेख :

भा

रतीय सावहत्य ववशेष रूप में संस्कृत सावहत्य में व्यंग्य का वववेचन ध्ववन, व्यंजना और वक्रोक्तत के अर्थ में प्रयुतत होता नजर आता है। हहदी सावहत्य के समीक्षकों तर्ा

व्यंग्यकारों ने अपनी पवरभाषाओं द्वारा व्यंग्य के स्वरुप को

वनक्चचत करने का प्रयास वकया। व्यंग्य समीक्षक हजारीप्रसाद वद्ववेदी1 अपनी पवरभाषा में व्यंग्य के लक्ष्य, प्रयोजन तर्ा

प्रभाव की चचा करते हैं। शेरजंग गगथ2 व्यंग्य की प्रेरक शक्तत के सार् उसकी शैली पर ववचार करते हैं। चयामसुंदर घोष3 व्यंग्य को बौविक वस्तु मानकर इसके मानवीय संवेदना

तत्त्व की चचा करते हैं। डॉ. मलय4 व्यंग्य की प्रहार करने की

क्षमता तर्ा आलोचना तत्वों की चचा करते हैं। हवरशंकर परसाई वलखते हैं वक व्यंग्य जीवन के प्रचनों से टकराए, जीवन से साक्षात्कार करें और जीवन की आलोचना करे। शरद जोशी की दृक्टट से व्यंग्य सामान्य मनुटय के अन्याय, अत्याचार की अवभव्यक्तत का माध्यम है। व्यंग्यकारों तर्ा

समीक्षकों की पवरभाषाओं से व्यंग्य की ववशेषताएं स्पटट रूप से नजर आती है। व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, आलोचना इसका मूल तत्त्व है, समाजव्याप्त ववसंगवतयां

तर्ा ववषमताएं व्यंग्य की प्रेरणा है, व्यंग्य का वरचता

सामावजक यर्ार्थ तर्ा सत्य से जुडा है, व्यंग्य ववधा भी है

और अवभव्यक्तत की सशतत शैली भी है।

डॉ. मलय5 व्यंग्य के स्वरुप के चचा करते हुए उसके

ववववध रूपों की भी चचा करते हैं। तीक्ष्ण वैदग्ध, ववडम्बना, उपहास, हेयहास, हनदा ववनोद, कटाक्ष, आक्षेप, वखल्ली

उडाना, पवरहास आवद। व्यंग्यकार अपने उद्देश के अनुसार इन हवर्यारों का प्रयोग करता है। मूलतः व्यंग्य आत्मानुभूवत का सावहत्य न होकर वह लोकमंगल का सावहत्य है। व्यंग्य का मूल उद्देचय ‘बदलाव’ है। हवरशंकर परसाई6 सुधार के

वलए नहीं बक्ल्क बदलने के वलए वलखते हैं। इसी कारण वे

शाचवत सावहत्य के पीछे दौड़ने के बजाय अपने सावहत्य के

वमटने की बात करते हैं। यहां वमटने का मतलब सावहत्य से

नहीं बक्ल्क उन पवरक्स्र्वतयों से हैं जो सावहत्य में वचवित हुयी

हैं। शरद जोशी भी व्यंग्य का उद्देचय समाज में बदलाव या

पवरवतथन मानते हैं। वे वलखते हैं वक, “मेरा इरादा तो यह है वक वजसे में ठीक नहीं पाता हूूँ उसे अपने लेखन के जवरये शमथ के

उस हबदु तक ले जाऊं वक वह अपना गलत स्वीकार करें। मैं

उससे नफ़रत नहीं करता, चाहता हूूँ वक वह बदल जाए।” इससे स्पटट है वक व्यंग्य का उद्देचय बदलाव ही है।

वैसे तो भारतीय सावहत्य में व्यंग्य परंपरा बहुत ही

प्राचीन रही है। कबीर के पूवथ हहदी कववता में व्यंग्य वक्रोक्तत के रूप में ववद्यमान र्ा। आधुवनक अर्थ में व्यंग्य का सबसे

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167 पहला प्रयोग कबीर सावहत्य में देखा गया है। कबीर ने व्यंग्य

को आधार बनाकर तत्कालीन समाजव्याप्त ववसंगवतयों तर्ा

बाह्ांडबर पर प्रहार कर समाज को सही राह वदखने का प्रयास वकया। आधुवनक काल के पूवथ तक व्यंग्य का आधार काव्य ही रहा है। कबीर की व्यंग्य परंपरा को भारतेंदु हवरचचंद्र ने

ववकवसत वकया। उन्होंने व्यंग्य को अपनी अवभव्यक्तत का

आधार बनाकर इसे प्रवतक्टठत तर्ा ववकवसत वकया। भारतेंदु

काल में ही वनबंध ववधा का ववकास हुआ। भारतेंदु काल की

‘ब्राह्मण’, ‘हहदी प्रदीप’, ‘कवव वाचन सुधा’ आवद पविकाओं

ने व्यंग्य को अवभव्यक्तत का माध्यम बनाया। भारतेंदु युग के

प्रतापनारायण वमश्र, बालकृटण भट्ट, बालमुकुंद गुप्त, बदरीनारायण चौधरी आवद वनबंधकारों ने सामवजक तर्ा

धार्ममक ववसंगवतयों पर कड़े प्रहार वकए तर्ा अंग्रेजी शासन की कड़ी आलोचना की। वद्ववेदी युग वद्ववेदी जी की नैवतकता

तर्ा शैली की इवतवृतात्मकता ने व्यंग्य की धरा को बावधत वकया। शुतल युग भी वैचावरक, समीक्षात्मक, मनोवैज्ञावनक वनबंधों में व्यस्त रहा, पवरणामस्वरूप व्यंग्य का ववकास न हुआ।

सही मायने में स्वातंिोत्तर युग में हहदी व्यंग्य को

प्रवतटठा तर्ा ववधा का दजा वमला। इस युग की ववषमताओं ने

व्यंग्य के पनपने में उवथर भूवम तैयार की। स्वातंत्र्योत्तर युग की

राजनीवत, समाज, धमथ, अर्थ, संस्कृवत, प्रशासन क्षेि की

ववसंगवतयों ने इस युग के व्यंग्यकारों को लेखन के हेतु बाध्य वकया। इस युग के हवरशंकर परसाई, शरद जोशी, लतीफ़ घोंघी, रवीन्द्रनार् त्यागी, श्रीलाल शुतल, प्रेम जनमेजय, ज्ञान चतुवेदी आवद व्यंग्यकारों ने समाजव्याप्त ववसंगवतयों की

कड़ी आलोचना की। इस युग के व्यंग्य का नेतृत्त्व परसाई जी ने वकया। स्वातंत्र्योत्तर युग की ववषम पवरक्स्र्वतयों के सार्

व्यक्ततत्व की बेबाकी उनके व्यंग्य की प्रेरणा रही है। परसाई जी अपने कथ्य की ववसंगवतयां तर्ा ववषमताओं को इस अंदाज में प्रस्तुत करते हैं वक पाठक के मन में बैचैनी उत्पन्न होकर वह सोचने के वलए बाध्य हो जाता है। उनका रचना

संसार ववशाल तर्ा ववववधता से भरा है। उनमें कथ्य के सार्

शैली की भी ववववधता नजर आती है। व्यंग्य के लगभग सभी

रूपों को इनके सावहत्य में देखा जा सकता है। इन्हें आधुवनक कबीर के नाम से ही जाना जाता हैं। ज्ञानपीठ पुरस्कार से

सम्मावनत श्रीलाल शुतल अपने लेखन की शुरुआत व्यंग्य से

करते हैं। शुतल जी अवधकतर राजनीवतक तर्ा प्रशावनक

ववसंगवतयों को अपने व्यंग्य का कथ्य बनाते हैं। स्वयं

सरकारी नौकरी में रहकर प्रशासन पर व्यंग्य करना उनकी

लेखकीय प्रवतबिता दशाती है। रवीन्द्रनार् त्यागी अपनी

अवभव्यक्तत में व्यंग्य के सार् हास्य को भी अपनाते हैं। उनके

250 से अवधक व्यंग्य वनबंध प्रकावशत हैं। ववषयों की

ववववधता के सार् भाषा एवं शैली में भी ववववधता है। वे

अपने वनबंधों में नए प्रतोकों, वबम्बों तर्ा उपमानों का प्रयोग करते हैं। मुसलमान पवरवार में जन्मे लतीफ़ घोंघी अपने धमथ में व्याप्त ववसंगवतयों को अपना कथ्य बनाते हैं। वे अपने

व्यंग्य में आक्रामकता के स्र्ान पर मीठे ददथ को अपनाते हैं।

नरेंद्र कोहली के व्यंग्य में हमेशा ववषयों की नवीनता नजर आती हैं। वे स्वयं मानते हैं वक मैं तभी वलखता हूूँ जब व्यंग्य वलखने के वलए मेरे पास कुछ नया हो। वे व्यंग्य को गंभीर ववधा मानते हैं और व्यंग्य में हास्य की सत्ता को पूरी तरह से

नकारते हैं। अपने कथ्य को गहन, गंभीर बनाने के वलए वे

व्यंग्य के सभी हवर्यारों को अपनाते हैं। शंकर पुणताम्बेकर ने

व्यंग्य वनबंधों के सार् व्यंग्य के सौंदयथशास्ि पर भी अपनी

लेखनी चलायी। बालेन्दुशेखर वतवारी जीवन की लगभग सभी ववसगवतयों पर व्यंग्य प्रहार करते हैं। इनके सार् ही

सुदशथन मजीवठया, बरसानेलाल चतुवेदी, के.पी. सतसेना, प्रेम जनमेजय, ज्ञान चतुवेदी, मधुबाला, इंद्रनार् मदान आवद व्यंग्यकारों ने स्वातंिोत्तर काल के वनबंध को ववकवसत करने

में योगदान वदया।

शरद जोशी की व्यंग्य संबंधी धारणा बड़ी स्पटट र्ी।

उनका व्यंग्य अपमावनत नहीं करता, बेचैन करता है। जीवन का सूक्ष्म वनवरक्षण और वचिण उनकी रचना में नजर आता

है। उनके व्यंग्य का उद्देचय समाज में बदलाव या पवरवतथन ही

र्ा। उनके व्यंग्य में हास्य की सत्ता को देख उनकी आलोचना

भी की गयी। लेवकन मूलतः शरद जोशी की यह प्रवतभा र्ी

वक उन्होंने हास्य-व्यंग्य की रूढ़ सीमाओं को तोड़कर उन्हें

एकात्म करने का प्रयास वकया।6 उन्होंने लगभग हर ववधा में

अपनी कलम चलायी। वे स्तंभ लेखन के सार् विल्म लेखन तर्ा दूरदशथन धारावावहक का भी लेखन करते हैं। लेवकन उनकी व्यंग्यकार की छवव उनके व्यंग्य वनबंधों में ही नजर आती हैं। उनकी वैचावरकता तर्ा कलात्मकता वनबंधों में ही

देखी जाती है। शरद जोशी ने अपने समय (1953-1991) की

समस्त ववसंगवतयों तर्ा ववषमताओं पर खुलकर व्यंग्य बाण चलाए। उनका लेखन स्वतंिता प्राक्प्त के बाद के भारत वषथ में

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168 बदलती ववषम पवरक्स्र्वतयों का आलेखन है। उनके वनबंधों में

वचवित समाज अपनी समस्त ववसंगवतयों के सार् अवभव्यतत हुआ है। आम आदमी का अभावग्रस्त तर्ा संघषथपूणथ जीवन उन्होंने बहुत ही नजदीक से देखा है। इस वगथ के प्रवत उनके

सावहत्य में अपार सहानुभूवत नजर आती है। वे इस वगथ के

समर्थक हैं। इसके ववपरीत अवसरवादी, लालची, सुववधाभोगी तर्ा संघषथ से कतरानेवाले मध्यवगथ के प्रवत वे

बड़े कठोर नजर आते हैं। वे समाज में व्याप्त जातीयता, धमांधता तर्ा छुआछूत आवद को देश एवं भारतीयता के वलए अवभशाप मानते हुए इसकी कठोर आलोचना करते हैं, भारतीयता को अहवमयत देते हैं। उन्होंने समाज के बदलते

नैवतक मापदंडों जैसे- भ्रटटाचार, अवसरवाद, बेईमानी, चापलूसी आवद की आलोचना कर नैवतकता की पहल की है।

वे प्रेम के पववि रूप को समाज के आमने दशाते हुए खोखले

तर्ा अवसरवादी प्रेम की कड़ी आलोचना करते हैं। स्िी - पुरुष संबंधों के सार् दाम्पत्य जीवन में आए बदलावों के

पवरणामस्वरूप पवरवार व्यवस्र्ा में आए ववघटन को दशाते

हैं।

स्पटट है वक एक समाज के सजग प्रहरी की तरह वे

समाज की हर इकाई का तटस्र् वनवरक्षण कर उसमें व्याप्त ववषमताओं पर व्यंग्य बाण चलाते हैं।

शरद जोशी के व्यंग्य वनबंधों का केन्द्रीय ववषय राजनीवत रहा है। उन्होंने सावहत्य के क्षेि में जब कदम रखा

(1953) तब देश अंग्रेजों की गुलामी को तोड़कर लोकतंि की

नीव बांधने की प्रवक्रया से गुजर रहा र्ा। सामान्य आदमी को

लोकतंि से मोह हुआ र्ा। वह चाहता र्ा वक लोकतंि में

वकसी भी प्रकार की ववषमता न हो तर्ा सभी को सभी क्षेिों में

उन्नवत के समान अवसर वमले। लोकतंि का यही उद्देचय भी

है। शरद जोशी वकसी राजनीवतक पाटी या ववचारधारा से न वजदाकर आम आदमी के जीवन को बदलने वाली राजनीवत से अपने आप को जोड़ते हैं। उनकी दृक्टट से ऐसी राजनीवत से

जुड़ना मानव जीवन को बेहतर बनाने की लडाई से जुड़ना है।

अपनी इसी दृक्टट के कारन सत्ता में रहने वाली हर राजनीवतक पाटी उनकी आलोचना का लक्ष्य बनी। चवरि की

अनैवतकता, झूठ तर्ा िरेब, भाई- भतीजावाद, दलबदल के

सार् जनता के शोषक बने नेता को शरद जोशी िटकारते हैं।

नेता द्वारा चुनाव में अपनाए गए असंववधावनक कायों की वे

आलोचना करते हैं। आपातकाल की वे खुलकर आलोचना

कर इसे वैयक्ततक स्वार्थ के हेतु उठाया गया गलत कदम मानते हैं। भारतीय राजनीवत के सार् ही अंतरराटटीय राजनीवत भी अपनी समस्त ववसंगवतयों के सार् उनके वनबंधों

में वचवित है। वद्वतीय ववचवयुि की ववभीवषका, हवर्यारों की

दौड़, अमरीका की साम्राज्यवादी नीवत उनके व्यंग्य का ववषय रही हैं। राजनीवतक व्यंग्य की दृक्टट से उनके ‘वोट ले दवरया में

डाल’, ‘जादू की सरकार’, ‘हम भ्रटटन के भ्रटट हमारे’, ‘जीप पर सवार इक्ल्लयां’, ‘यर्ासंभव’ आवद वनबंध संग्रह ववशेष हैं। वे राजनीवत के सार् प्रशासन व्यवस्र्ा में व्याप्त भ्रटटाचार, लालिीताशाही, तानाशाही को भी अपने व्यंग्य का ववषय बनकर उसकी आलोचना करते हैं।

शरद जोशी धमथ में व्याप्त ववसंगवतयों पर खुलकर व्यंग्य करते हैं। कभी समाज को जीवनयापन का सही रास्ता

वदखाने वाला धमथ जब स्वयं अपने कतथव्य से ववमुख जाता है

तो एक सजग व्यंग्यकार धमथ के ठेकेदारों को आड़े हार्ो लेता

है। साधु- संतों का भ्रटट आचरण, ऐयाशी, कामुकता, साधारण जीवनयापन से अवधक भौवतकता को वदया गया

महत्त्व आवद को देख व्यंग्यकार इसकी आलोचना ही नहीं

करता बक्ल्क संतों-मुल्लाओं के आचरण में सुधार की भी

अपेक्षा करते हैं। वतथमान समय में धमथ राजनीवत का एक आवचयक अंग बना नजर आता है। धमथ राजनीवत में

महत्वपूणथ भूवमका वनभा रहा है। राजनेता तर्ा राजनीवतक पार्मटयां धमथ का आधार लेकर जनता को उनकी मूल समस्याओं से भटकाकर धार्ममक राजनीवत कर रहे हैं जो

व्यंग्यकार की दृक्टट से सशतत लोकतंि के वलए बड़ा खतरा

है। वे इसका खुलकर ववरोध करते हैं। व्यंग्यकार का ध्यान सांस्कृवतक अधपतन की यर्ार्थता से दशाना रहा है।

निष्कर्ष :

वनटकषथ के रूप में यही कहेंगे वक शरद जोशी

स्वातंिोत्तर हहदी व्यंग्य वनबंध के सशतत हस्ताक्षर हैं। उनके

व्यंग्य वनबंधो में उनके समय की राजनीवतक, सामवजक, धार्ममक, आर्मर्क, सांस्कृवतक तर्ा प्रशासवनक आवद क्षेिों की

पवरक्स्र्वतयां अपनी समस्त ववसंगवतयों के सार् वचवित हुयी

हैं। व्यंग्यकार इन ववसंगवतयों को कभी केवल यर्ार्थ रूप में

दशाता है तो कभी बड़ी बेबाकी के सार् कठोर आलोचना

करता है। शरद जोशी के व्यंग्य के केंद्र में राजनीवतक ववसंगवतयां अपनी समस्त बुराईयों के सार् वचवित हैं। वे

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169 समाज के सजग पहरी बनकर न केवल इन पवरक्चतवतयों की

कड़ी आलोचना करते हैं याने इनके बदलाव की संभावनाओं

को ध्यान में रखाकर ही इस्सकी आलोचना करते हैं। हहदी

व्यंग्य वनबंध के ववकास में आशय, ववषय, भाषा एवं शैली की

दृक्टट से सभी प्रकार की ववववधता शरद जोशी के सावहत्य में

देखी गयी हैं।

संदभष ग्रंथ:

1. वद्ववेदी हजारीप्रसाद, कबीर, नई वदल्ली, राजकमल प्रकाशन, 1951, पृ.164

2. गगथ शेरजंग, स्वातंिोत्तर हहदी कववता में व्यंग्य, वदल्ली, वदनमान प्रकाशन, 1973, पृ.23

3. सं.चयामसुन्दरदास, हहदी शब्द सागर, खण्ड 22, वदल्ली,नेशनल पक्ब्लहशग हाउस, पृ.421

4. मलय, व्यंग्य का सौदयथशास्ि, इलाहबाद, सावहत्यवानी

प्रकाशन, 1983, पृ.121 5. वही, पृ.90-98

6. परसाई हवरशंकर, सदाचार का तावीज, नई वदल्ली, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1985, पृ.9

Referensi

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Aayushi International Interdisciplinary Research Journal AIIRJ VOL- VIII ISSUE- IX SEPTEMBER 2021 PEER REVIEW e-JOURNAL IMPACT FACTOR 7.149 ISSN 2349-638x Email id’s:-

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Aayushi International Interdisciplinary Research Journal AIIRJ VOL- VIII ISSUE- VI JUNE 2021 PEER REVIEW e-JOURNAL IMPACT FACTOR 7.149 ISSN 2349-638x Email id’s:-

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